सलीम अख्तर सिद्दीकी
दिल्ली पुलिस ने 12 ‘खूंखार आतंकवादियों’ को पकड़ने का दावा किया है, जो न सिर्फ दिल्ली को दहलाना चाहते थे, बल्कि पठानकोट एयबेस की तर्ज पर हिंडन एयरबेस पर हमला करने की साजिश कर रहे थे। जब भी इस तरह के आतंकवादी पकड़े जाते हैं, तब मीडिया में उन्हें इस तरह पेश किया जाता है, मानो अदालत ने उन्हें आतंकवादी मानकर सजा सुना दी हो। पकड़े गए आतंकवादियों का पूरा परिवार एक अनजाने में खौफ में जीने के साथ ही लोगों की हिकारत की नजरों का शिकार भी होता है। खूंखार आतंकवादियों पकड़ने जाने के इसी बीच यह खबर भी आती है कि कोई फलां आतंकवादी, जिसे 20-25 साल पहले सिमी या किसी आतंकवादी संगठन का मानकर भारी मात्रा में असलाह के साथ पकड़ा गया था, वो बेकसूर था और अदालत ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया है। उसके बेकसूर होने की खबर कहीं अंदर के पेजों पर चार लाइन की खबर छप जाती है। बाज अखबार तो छोटी खबर छापने की जहमत भी नहीं उठाता। सवाल यह है कि जब किसी कथित आतंकवादी के पकड़े जाने पर दुनिया भर की बातें उसके बारे में प्रचारित की जाती हैं, तो उसके बेकसूर साबित होने पर मीडिया चुप्पी क्यों साध लेता है? जिन सुरक्षा एजेंसियों ने उसे पकड़ा था, उन पर सवाल क्यों नहीं उठाए जाते? सुरक्षा एजेंसियों की ‘फुल प्रुफ थ्योरी’ अदालत में क्यों दम तोड़ देती है? डेढ़-दो दशक तक जेल में बिताए उसके बुरे दिनों का मुआवजा क्यों नहीं दिया जाता? हमारी सुरक्षा एजेंसियां कितनी ‘मुस्तैद’ हैं, इसका उदाहरण देश पठान कोट मामले में तो देख ही चुका है। अब हिंडन एयरबेस मामले में भी उसकी भयंकर चूक उजागर हुई है। जब सुरक्षा एजेंसियां यह प्रचारित करने में लगी हैं कि पकड़े गए आतंकवादी हिंडन एयरबेस को निशाना बनाना चाहते थे, उसी में एक शख्स घूमता हुआ पकड़ा गया। आखिर हिंडन एयरबेस को खुला क्यों छोड़ दिया गया? जो सोनू नाम का आदमी पकड़ा गया है, वह कौन है, इसका अभी पता नहीं चला है। यकीनन अगर वह मुसलिम नहीं हुआ तो उसे मानसिक बीमार बताकर छोड़ा भी जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह पकड़े गए आतंकवादियों का साथी तो हो ही जाएगा। आतंकवादी पर दोगली नीति बंद होनी चाहिए।
दिल्ली पुलिस ने 12 ‘खूंखार आतंकवादियों’ को पकड़ने का दावा किया है, जो न सिर्फ दिल्ली को दहलाना चाहते थे, बल्कि पठानकोट एयबेस की तर्ज पर हिंडन एयरबेस पर हमला करने की साजिश कर रहे थे। जब भी इस तरह के आतंकवादी पकड़े जाते हैं, तब मीडिया में उन्हें इस तरह पेश किया जाता है, मानो अदालत ने उन्हें आतंकवादी मानकर सजा सुना दी हो। पकड़े गए आतंकवादियों का पूरा परिवार एक अनजाने में खौफ में जीने के साथ ही लोगों की हिकारत की नजरों का शिकार भी होता है। खूंखार आतंकवादियों पकड़ने जाने के इसी बीच यह खबर भी आती है कि कोई फलां आतंकवादी, जिसे 20-25 साल पहले सिमी या किसी आतंकवादी संगठन का मानकर भारी मात्रा में असलाह के साथ पकड़ा गया था, वो बेकसूर था और अदालत ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया है। उसके बेकसूर होने की खबर कहीं अंदर के पेजों पर चार लाइन की खबर छप जाती है। बाज अखबार तो छोटी खबर छापने की जहमत भी नहीं उठाता। सवाल यह है कि जब किसी कथित आतंकवादी के पकड़े जाने पर दुनिया भर की बातें उसके बारे में प्रचारित की जाती हैं, तो उसके बेकसूर साबित होने पर मीडिया चुप्पी क्यों साध लेता है? जिन सुरक्षा एजेंसियों ने उसे पकड़ा था, उन पर सवाल क्यों नहीं उठाए जाते? सुरक्षा एजेंसियों की ‘फुल प्रुफ थ्योरी’ अदालत में क्यों दम तोड़ देती है? डेढ़-दो दशक तक जेल में बिताए उसके बुरे दिनों का मुआवजा क्यों नहीं दिया जाता? हमारी सुरक्षा एजेंसियां कितनी ‘मुस्तैद’ हैं, इसका उदाहरण देश पठान कोट मामले में तो देख ही चुका है। अब हिंडन एयरबेस मामले में भी उसकी भयंकर चूक उजागर हुई है। जब सुरक्षा एजेंसियां यह प्रचारित करने में लगी हैं कि पकड़े गए आतंकवादी हिंडन एयरबेस को निशाना बनाना चाहते थे, उसी में एक शख्स घूमता हुआ पकड़ा गया। आखिर हिंडन एयरबेस को खुला क्यों छोड़ दिया गया? जो सोनू नाम का आदमी पकड़ा गया है, वह कौन है, इसका अभी पता नहीं चला है। यकीनन अगर वह मुसलिम नहीं हुआ तो उसे मानसिक बीमार बताकर छोड़ा भी जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह पकड़े गए आतंकवादियों का साथी तो हो ही जाएगा। आतंकवादी पर दोगली नीति बंद होनी चाहिए।
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