Sunday, May 8, 2016

भाजपा का वैचारिक दिवालियापन

सलीम अख्तर सिद्दीकी
खबर है कि राजस्थान की भाजपा सरकार ने आठवीं कक्षा की पुस्तक से देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू वाला पाठ हटा दिया है। यह समझ से परे है कि राजस्थान सरकार ऐसा करके क्या संदेश देना चाहती है? हालांकि लगता यह है कि भाजपा कांग्रेस के विरोध में इतने नीचे उतर आई है कि वह देश के उन नायकों से भी नफरत करती दिख रही है, जिन्होंने देश की आजादी दिलाने में मुख्य भूमिका निभाई। इसके बरअक्स भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस ने आजादी की लड़ाई से अपने आपको दूर ही रखा। कहा तो यहां तक जाता है कि संघ नहीं चाहता था कि अंगे्रज इस देश को छोड़कर जाएं। इसलिए वे न केवल जंग-ए-आजादी की लड़ाई से दूर रहे, बल्कि क्रांतिकारियों की मुखबरी तक की। शायद यही वजह है कि देश की जंग-ए-आजादी की लड़ाई में सिर कटाना तो दूर, उंगली तक कटाने वाला एक भी आरएसएस का नेता नजर नहीं आता। इसीलिए आजकल संघ उधार के उन नायकों पर जी रहा है, जो उसकी विचारधारा से सहमत नहीं थे।
जवाहर लाल नेहरू से संघ परिवार के वैचारिक मतभेद रहे हैं। उनकी नीतियों से भी असहमत रहे हैं। खासतौर से कश्मीर नीति पर भाजपा वाले आज तक उनकी जबरदस्त आलोचना करते हैं। कश्मीर समस्या को नेहरू की गलती मानते हैं। यहां तक तो सही है, लेकिन अगर भाजपा यह चाहती है कि देश के बच्चे जवाहर लाल नेहरू के बारे में न जानें तो इसे उसके वैचारिक दिवालियपन के अलावा और क्या कहा जा सकता है। भाजपा जवाहर लाल नेहरू का नाम कहां-कहां से हटाएगी? क्या वह भारत का इतिहास बदल देगी? मान लिया कि भारत का इतिहास बदल देगी, लेकिन क्या दुनिया के इतिहास में से भी जवाहर लाल नेहरू का नाम हटवा देगी? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि वह इतिहास के पन्नों से किस-किस कांग्रेस नेता का नाम खुरचेगी? क्या भाजपा उम्र भर के लिए सत्ता में रहने का बॉन्ड भरवाकर सत्ता में आई है? क्या वह अमर हो गई है, जो उसे मौत नहीं आएगी? अब सवाल यह है कि भाजपा नेहरू के जगह किसे रखेगी? नरेंद्र मोदी को या अमित शाह को? भाजपा जिस राह पर चल रही है, वह उसे सिर्फ गर्त में लेकर ही जाएगी। अगर वह समझती है कि छिछोरी हरकतों से जनता खुश हो जाएगी तो इस पर सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि वह मूर्खों की जन्नत में रहती है।

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