सलीम अख्तर सिद्दीकी
‘आकाश में सूरज निकल रहा है, मेरा देश बदल रहा है।’ ये लाइनें उस थीम सॉन्ग है, जिसे मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर जारी किया गया है। गीत की अगली लाइनों में मोदी सरकार का ऐसे बखान किया गया है, जैसे मात्र दो साल में देश पूरी तरह बदल गया है। वैसे जब सूरज निकलता है, तो दुनिया को पता चल जाता है कि सूरज निकल गया है। सूरज को यह ऐलान करने की जरूरत कभी नहीं पड़ती मैं निकल रहा हूं। ऐसे ही अगर मोदी सरकार के दौरान देश वाकई बदल रहा है, तो उसका बखान क्यों गा-गाकर किया जा रहा है? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि दो साल में क्या देश वाकई इतना बदल गया है कि उसके गुणगान किए जाएं।
मोदी सरकार ने देशभर में स्वच्छता अभियान शुरू किया था। उसका क्या हश्र है, यह सभी जानते हैं। नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में 3,500 घरों में शौचालय बनाए जाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अभी तक मात्र 779 शौचालयों का ही काम शुरू हुआ है। ध्यान दें काम शुरू हुआ है, पूरा नहीं हुआ। 205 सामुदायिक व सार्वजनिक शौचालयों के लक्ष्यों की तुलना में केवल 46 शौचालय ही बनाए गए हैं। अंदाजा लगाइए कि जब प्रधानमंत्री के क्षेत्र का यह आलम है, तो अन्य क्षेत्रों का क्या आलम होगा। इसी तरह गंगा का साफ करने के लिए नमामि गंगे अभियान पूरे जोर शोर से शुरू किया गया था। उसमें क्या प्रगति हुई है, यह कोई नहीं जानता। सरका बताती नहीं है। जनता आरटीआई के तहत पूछने जाएगी तो उसे जवाब नहीं मिलेगा। क्योंकि मोदी सरकार की एक अलिखित नीति है कि जानकारी किसी को मुहैया न कराई जाए। यही वजह है कि सूचना आयोग के पास हजारों आवेदन ऐसे पड़े हैं, जिनमें कोई जानकारी मांगी गई, लेकिन नहीं दी जा रही है।
जैसे अटल सरकार ने ‘फील गुड’ का स्लोगन दिया था और जनता ने उसे नकार दिया था, ऐसे ही मोदी सरकार जमीनी हकीकत से बेखबर अपने गुणगान में लगी है। अगर वाकई देश बदल रहा है, तो उसका पता जनता को भी पता चलेगा, जैसे सूरज निकलने पर सबको पता चल जाता है कि दिन निकल आया है।
‘आकाश में सूरज निकल रहा है, मेरा देश बदल रहा है।’ ये लाइनें उस थीम सॉन्ग है, जिसे मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर जारी किया गया है। गीत की अगली लाइनों में मोदी सरकार का ऐसे बखान किया गया है, जैसे मात्र दो साल में देश पूरी तरह बदल गया है। वैसे जब सूरज निकलता है, तो दुनिया को पता चल जाता है कि सूरज निकल गया है। सूरज को यह ऐलान करने की जरूरत कभी नहीं पड़ती मैं निकल रहा हूं। ऐसे ही अगर मोदी सरकार के दौरान देश वाकई बदल रहा है, तो उसका बखान क्यों गा-गाकर किया जा रहा है? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि दो साल में क्या देश वाकई इतना बदल गया है कि उसके गुणगान किए जाएं।
मोदी सरकार ने देशभर में स्वच्छता अभियान शुरू किया था। उसका क्या हश्र है, यह सभी जानते हैं। नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में 3,500 घरों में शौचालय बनाए जाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अभी तक मात्र 779 शौचालयों का ही काम शुरू हुआ है। ध्यान दें काम शुरू हुआ है, पूरा नहीं हुआ। 205 सामुदायिक व सार्वजनिक शौचालयों के लक्ष्यों की तुलना में केवल 46 शौचालय ही बनाए गए हैं। अंदाजा लगाइए कि जब प्रधानमंत्री के क्षेत्र का यह आलम है, तो अन्य क्षेत्रों का क्या आलम होगा। इसी तरह गंगा का साफ करने के लिए नमामि गंगे अभियान पूरे जोर शोर से शुरू किया गया था। उसमें क्या प्रगति हुई है, यह कोई नहीं जानता। सरका बताती नहीं है। जनता आरटीआई के तहत पूछने जाएगी तो उसे जवाब नहीं मिलेगा। क्योंकि मोदी सरकार की एक अलिखित नीति है कि जानकारी किसी को मुहैया न कराई जाए। यही वजह है कि सूचना आयोग के पास हजारों आवेदन ऐसे पड़े हैं, जिनमें कोई जानकारी मांगी गई, लेकिन नहीं दी जा रही है।
जैसे अटल सरकार ने ‘फील गुड’ का स्लोगन दिया था और जनता ने उसे नकार दिया था, ऐसे ही मोदी सरकार जमीनी हकीकत से बेखबर अपने गुणगान में लगी है। अगर वाकई देश बदल रहा है, तो उसका पता जनता को भी पता चलेगा, जैसे सूरज निकलने पर सबको पता चल जाता है कि दिन निकल आया है।
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