Wednesday, May 18, 2016

मुगलकालीन इमारतों को ही ढहा दीजिए

सलीम अख्तर सिद्दीकी
भाजपा जिन चीजों के लिए जानी जाती है, उसे वह सब खूब करना आता है। उसका एजेंडा हमेशा की सांप्रदायिक और विभाजनकारी रहा है। कभी-कभी तो यह ख्याल आता है कि यदि भारत में मुसलमान नाम का जीव न होता तो न आरएसएस होता और न ही भारतीय जनता पार्टी। इनका वजूद मुसलमानों से ही कायम है। अगर भारत से मुसलमान माइनस कर दिए जाएं तो इनकी मौत निश्चित है। इन्हें वह हर इमारत गुलामी की निशानी लगती है, जिन्हें मुगल शासकों ने बनाया था। वह हर सड़क अपवित्र लगती है, जिसका नाम किसी मुगल शासक के नाम पर रखा गया है। औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम पर कर दिया गया, बहुत अच्छा किया। औरंगजेब था ही ऐसा कि उसका नाम कहीं नहीं आना चाहिए। इतिहास में से उसका नाम खुरच देना चाहिए। जैसे राजस्थान सरकार पाठ्यपुस्तकों से जवाहर लाल नेहरू का नाम खुरचने में लगी है। कहा जाता है कि औरंगजेब सवा लाख जनेऊ रोज जलाता था। यानी सवा लाख हिंदुओं को मुसलमान बनाया जाता था। लेकिन आज तक यह गणित अपनी समझ में नहीं आया कि जब सवा लाख जनेऊ रोज जलाए जाते थे, तो उसके शासक रहते कितने जनेऊ जलाए गए होंगे? मेरा गणित बहुत कमजोर है। कोई गणित का माहिर हिसाब लगाकर बताए कि अगर सवा लाख जनेऊ रोज जलाए जाते थे, तो भारत में मुसलमान आज भी सिर्फ 20 प्रतिशत क्यों है?
अब सुब्रमण्यम स्वामी ने मांग रखी है कि अकबर रोड का नाम बदलकर महाराणा प्रताप रोड रखा जाए। रख दीजिए। किसने रोका है? मैं तो यहां तक कहता हूं मुगलकालीन सभी इमारतों को ध्वस्त कर दीजिए। लाल किला, ताजमहल, जामा मसजिद, कुतुबमीनार वगैरहा-वगैरहा। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। अब तो वैसे भी एक हिंदूवाद राष्ट्रवादी आदमी का शासन है। अब यह संभव हो सकता है। दुनिया का क्या है, वह तो शोर मचाकर चुप बैठ जाएगी। देश उनका है, वह चाहे जो करें। उन्हें कौन रोक सकता है। पूर्ण बहुमत की सरकार है। पहली बार आई है। दोबारा मौका मिले ना मिले, कौन जानता है। इसलिए देर नहीं होनी चाहिए।

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