Tuesday, April 26, 2016

जुमला नहीं है ‘भगवा आतंकवाद’

सलीम अख्तर सिद्दीकी
मालेगांव में 2006 को हुए बम विस्फोट के आठ आरोपियों को बरी कर दिया गया। यह वह दौर था, जब लगातार बम धमाके हो रहे थे और मुसलिम युवा जेल की सीखचों के पीछे भेजे जा रहे थे। तब मैंने अपने एक लेख में शक जाहिर किया था कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बम धमाकों के पीछे किसी और का हाथ हो और बदनाम मुसलमानों को किया जा रहा है। इस शक के पीछे की वजह यह थी कि आंध्र प्रदेश समेत कुछ दूसरे राज्यों में आरएसएस के कार्यकर्ता तब मारे गए थे, जब वे बम बना रहे थे और वह फट गया था। हालांकि तब पुलिस ने मामले को रफा-दफा कर दिया था। जब 2008 में मालेगांव में फिर धमाके हुए और मुंबई एटीएस चीफ स्वर्गीय हेमंत करकरे ने उसकी छानबीन की तो सब कुछ साफ हो गया। बम धमाकों के तार अभिनव भारत नाम के हिंदू संगठन से जुड़े पाए गए। जिसमें साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित के नाम सामने आए थे। तब पहली बार ‘भगवा आतंकवाद’ सामने आया था। इससे पहले हर आतंकवादी घटना के पीछे इसलामी आतंकवाद का ठप्पा लग जाता था। हैरतअंगेज तौर पर घटना के चंद घंटों बाद ही उसके तार कभी सिमी से, कभी हूजी से तो कभी लश्करे तौयबा से जोड़कर मुसलिम युवाओं की धरपकपड़ की जाती थी। उनमें से ही किसी एक को ‘मास्टर माइंड’ प्रचारित किया जाता था। मीडिया भी सुरक्षा एजेंसियों के हवाले से अतिरंजित खबरें चलाकर मामले को संगीन बनाने में पीछे नहीं रहता था। भगवा आतंवाद की परतें और उघड़तीं अगर मुंबई एटीएस चीफ हेमंत करकरे की मुंबई हमलों के दौरान हत्या नहीं होती। वे भगवा आतंवाद का ऐसा चेहरा सामने लाने वाले थे, जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की होगी। कहा तो यहां तक जाता है कि मुंबई हमले की आड़ में करकरे की हत्या इसलिए कर दी गई थी, ताकि भगवा आतंकवाद का पूरा सच सामने न आ सके। अभी इसकी पूरी कोशिश की जा रही है कि साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित समेत अभिनव भारत के पूरे गैंग को किसी तरह बचा लिया जाए।  इसके लिए न केवल वकीलों को बल्कि जजों को भी धमकाने की खबरें आ रही हैं। गवाहों को गवाही बदलने के लिए मजबूर किया जा रहा है। बहरहाल, मालेगांव के आरोपियों की रिहाई से यह बात तो साफ हो गई कि ‘भगवा आतंकवाद’ महज जुमला नहीं था। 

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