सलीम अख्तर सिद्दीकी
पाकिस्तान के कराची एयरपोर्ट पर फिल्म डायरेक्टर कबीर खान के साथ बदसलूकी की गई, उन्हें जूता दिखाया गया। हालांकि ऐसा करने वाले चंद लोग थे, लेकिन उन्होंने एक ऐसे शहर के चेहरे पर कालिख पोती है, जो जिंदादिल कहलाता है और एक प्रगतिशील शहर है। वैसे भी कबीर खान वहां अपनी मर्जी से नहीं गए थे, बल्कि उन्हें एक कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए बुलाया गया था। कुछ पाकिस्तानियों की इस पर आपत्ति है कि कबीर खान अपनी फिल्मों में पाकिस्तान की गलत छवि पेश करते हैं। सवाल यह है कि ऐसा हुआ ही क्यों कि एक फिल्म डायरेक्टर को पाकिस्तान की ऐसी छवि दिखानी पड़ी? ऐसा नहीं है कि कराची के जो हालात हैं, उससे हिंदुस्तान के लोग नहीं जानते हैं। रोशनियों के शहर को तारीकियों में किसने डुबोया? ऐसे ही लोगों ने जो अपनी थोड़ी सी भी आलोचना बर्दाश्त नहीं करते।
क्या अब पाकिस्तान के कट्टरपंथी यह तय करेंगे कि भारत के फिल्म निर्माता अपनी फिल्में किस कहानी पर बनाएं? पाकिस्तान में भी ऐसी फिल्में बनती हैं, जिनमें भारत को ‘विलेन’ के रूप में दिखाया जाता है। क्या भारत के लोग इस पर आपत्ति दर्ज कराए कि उसने ऐसा क्यों किया? पाकिस्तान के कट्टरपंथियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान के कई कलाकर बॉलीवुड में काम करते हैं, मोटा पैसा कमाते हैं। उन्हें यह दौलत, इज्ज्त और शोहरत तीनों चीजें मिलती हैं। यह ठीक है कि भारत में भी शिवसेना सरीखी कुछ पार्टियां हैं, जो पाकिस्तानी कलाकारों को विरोध करती हैं। पिछले दिनों ही पाकिस्तान के गजल गायक गुलाम अली का कार्यक्रम शिवसेना ने करने नहीं दिया था। लेकिन शिवसेना का विरोध भी जबरदस्त तरीके से यहीं के लोगों ने किया था। कराची में कुछ लोगों ने जो शिवसेना वाली जो हरकत की है, वह निंदनीय है।
ऐसा नहीं है कि कराची एयरपोर्ट पर कबीर खान के साथ जो बदतमीजी की गई, उसके समर्थन में पूरा कराची शहर होगा। यकीनी तौर पर उन चंद कट्टरपंथियों की जबरदस्त आलोचना की गई होगी, जिन्होंने ऐसा किया। यह भारत के बॉलीवुड की हिम्मत है कि उसने ऐसी फिल्में भी बनाई हैं, जिनमें भारत के अल्पासंख्यकों के साथ होने वाली ज्यादती को मुखर होकर फिल्माया है। कश्मीर में सेना किस तरह कश्मीरियों पर जुल्म करती है, उसे भी फिल्न्माया है। हमेें यकीन है कि पाकिस्तान में ऐसी कोई फिल्म नहीं बनी होगी, जिसमें यह दिखाया गया हो कि वहां किस तरह अल्पसंख्यकों को सताया जाता है, उन्हें धर्मपरिवर्तन करने पर मजबूर किया जाता है।
पाकिस्तान के कराची एयरपोर्ट पर फिल्म डायरेक्टर कबीर खान के साथ बदसलूकी की गई, उन्हें जूता दिखाया गया। हालांकि ऐसा करने वाले चंद लोग थे, लेकिन उन्होंने एक ऐसे शहर के चेहरे पर कालिख पोती है, जो जिंदादिल कहलाता है और एक प्रगतिशील शहर है। वैसे भी कबीर खान वहां अपनी मर्जी से नहीं गए थे, बल्कि उन्हें एक कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए बुलाया गया था। कुछ पाकिस्तानियों की इस पर आपत्ति है कि कबीर खान अपनी फिल्मों में पाकिस्तान की गलत छवि पेश करते हैं। सवाल यह है कि ऐसा हुआ ही क्यों कि एक फिल्म डायरेक्टर को पाकिस्तान की ऐसी छवि दिखानी पड़ी? ऐसा नहीं है कि कराची के जो हालात हैं, उससे हिंदुस्तान के लोग नहीं जानते हैं। रोशनियों के शहर को तारीकियों में किसने डुबोया? ऐसे ही लोगों ने जो अपनी थोड़ी सी भी आलोचना बर्दाश्त नहीं करते।
क्या अब पाकिस्तान के कट्टरपंथी यह तय करेंगे कि भारत के फिल्म निर्माता अपनी फिल्में किस कहानी पर बनाएं? पाकिस्तान में भी ऐसी फिल्में बनती हैं, जिनमें भारत को ‘विलेन’ के रूप में दिखाया जाता है। क्या भारत के लोग इस पर आपत्ति दर्ज कराए कि उसने ऐसा क्यों किया? पाकिस्तान के कट्टरपंथियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान के कई कलाकर बॉलीवुड में काम करते हैं, मोटा पैसा कमाते हैं। उन्हें यह दौलत, इज्ज्त और शोहरत तीनों चीजें मिलती हैं। यह ठीक है कि भारत में भी शिवसेना सरीखी कुछ पार्टियां हैं, जो पाकिस्तानी कलाकारों को विरोध करती हैं। पिछले दिनों ही पाकिस्तान के गजल गायक गुलाम अली का कार्यक्रम शिवसेना ने करने नहीं दिया था। लेकिन शिवसेना का विरोध भी जबरदस्त तरीके से यहीं के लोगों ने किया था। कराची में कुछ लोगों ने जो शिवसेना वाली जो हरकत की है, वह निंदनीय है।
ऐसा नहीं है कि कराची एयरपोर्ट पर कबीर खान के साथ जो बदतमीजी की गई, उसके समर्थन में पूरा कराची शहर होगा। यकीनी तौर पर उन चंद कट्टरपंथियों की जबरदस्त आलोचना की गई होगी, जिन्होंने ऐसा किया। यह भारत के बॉलीवुड की हिम्मत है कि उसने ऐसी फिल्में भी बनाई हैं, जिनमें भारत के अल्पासंख्यकों के साथ होने वाली ज्यादती को मुखर होकर फिल्माया है। कश्मीर में सेना किस तरह कश्मीरियों पर जुल्म करती है, उसे भी फिल्न्माया है। हमेें यकीन है कि पाकिस्तान में ऐसी कोई फिल्म नहीं बनी होगी, जिसमें यह दिखाया गया हो कि वहां किस तरह अल्पसंख्यकों को सताया जाता है, उन्हें धर्मपरिवर्तन करने पर मजबूर किया जाता है।
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