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सलीम अख्तर सिद्दीकी
संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर को अपनाने की होड़ लगी हुई है। इस होड़ में सबसे ज्यादा आगे है भारतीय जनता पार्टी और पूरा संघ कुनबा। यह बेवजह नहीं है कि अचानक संघ परिवार में अंबेडकर के प्रति उमड़ी श्रद्धा और प्रेम भाव जाग गया है। आज भले ही आरएसएस संविधान को एक धार्मिक ग्रंथ सरीखा महत्व देने पर आमादा है, लेकिन सच तो यह है कि उसने कभी भारतीय संविधान में सिर्फ इसलिए विश्वास जताया था, ताकि उस पर गांधी की हत्या के बाद जो प्रतिबंध लगा था, उसे हटाया जा सके। यही शर्त सरदार पटेल ने उसके सामने रखी थी। वैसे उनका विचार तो हमेशा से यही था कि मनुस्मृति से बेहतर कोई संविधान नहीं हो सकता। इतना ही नहीं, इस संगठन ने जो आज तिरंगा-तिरंगा चिल्लाकर देशभक्त होने का नाटक करता है, तिरंगा ध्वज को अपनाने से इंकार कर दिया था। उसका मानना था कि तीन रंग अशुभ होने के साथ स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, तिरंगे के चक्र पर लालकृष्ण आडवाणी ने इसलिए ऐतराज जताया था, क्योंकि यह उन्हें बौद्ध धर्म का प्रतीक लगता था। दलित चिंतक चंद्रभान प्रसाद ने कुछ सवाल उठाए हैं। संघ परिवार उनका जवाब शायद ही कभी दे पाएगा। चंद्रभान लिखते हैं-डॉक्टर अंबेडकर और उनके समर्थकों ने 25 दिसंबर, 1927 को सामाजिक बंटवारे और भेदभाव का आधार तैयार करने वाली किताब मनुस्मृति को फूंका था। क्या संघ परिवार भी ऐसा करेगा?
क्या संघ डॉक्टर अंबेडकर की बात का समर्थन करेगा कि ‘अंग्रेजी शेरनी का दूध है, विजेता बनने के लिए इसे पियो।’ डॉक्टर अंबेडकर मांसाहारी थे, क्या संघ परिवार उनके पसंद के खाने का समर्थन करेगा? यह खाने के बंटवारे का मुद्दा जानबूझकर उठाया जा रहा है, क्योंकि खाने के साथ भाषा, कपड़े और जीवनशैली संस्कृति नाम की चीज के मूल पहलू हैं। हिंदुत्व के बारे में क्या होगा? डॉक्टर अंबेडकर ने बुद्धत्व को चुना, क्योंकि उनके लिए हिंदुत्व बकवास है। क्या संघ इस मुद्दे पर उनका समर्थन करेगा और राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, वेद, गीता आदि को छोड़ देगा?
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