सलीम अख्तर सिद्दीकी
अनुपम क्या हैं? एक एक्टर ही ना। हालांकि जब से उनकी पत्नी किरण खेर भाजपा से सांसद बनी हैं, उन्हें ‘सांसद पति’ कह सकते हैं। आजकल देश में प्रधान पति से लेकर सांसद पति होते हैं। जिनका काम अपनी पत्नी के नाम पर अपना नाम चमकाना होता है। अनुपम खेर वही कर रहे लगते हैं। अचानक उनके दिल में कश्मीरी पंडितों के लिए दर्द जाग गया है। वे खुद भी कश्मीरी पंडित हैं। अच्छा है। अपने लोगों का दर्द बांटना भी चाहिए। लेकिन क्या कश्मीरी पंडितों के साथ अभी कोई ज्यादती हुई है। कश्मीर से उन्हें दर-बदर हुए लगभग बीस साल होने जा रहे हैं। हमने कोई ऐसी खबर नहीं सुनी कि अनुपम खेर ने कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ किया हो।
2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आती है। उनकी पत्नी सांसद बनती हैं। इसके बाद अनुपम खेर के दिल में न केवल विस्थापित कश्मीरी पंडितों के दर्द उभर आता है, बल्कि वे राष्ट्रवाद के प्रखर हिमायती के रूप में उभर कर आते हैं। इसलिए वे अपनी कर्मस्थली महाराष्ट्र में सूखे से दम तोड़ते किसानों, पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसते मराठवाड़ा के लोगों को तड़पता छोड़कर श्रीनगर की एनआईटी में जाने के लिए जोरआजमाइश करते हैं। इसकी भी वजह है, जो पब्लिसिटी एनआईटी में जाने पर मिलती, वह गरीब किसानों के बीच जाने पर कहां मिलने वाली थी।
जब उन्हें श्रीनगर हवाई अड्डे से ही कश्मीर छोड़ने का फरमान उस सरकार ने जारी किया, जिसमें उनकी राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा सत्ता में साझीदार है, तो वह एक फाइव स्टार होटल से एक तस्वीर सोशल मीडिया में पोस्ट करते हैं, जिसमें वह तिरंगा पकडेÞ हुए हैं। साथ में लिख रहे हैं, ‘डियर एनआईटी स्टूडेंट, मैं यह तोहफा आपके बीच आकर आपको देना चाहता था। कोई बात नहीं फिर सही। तिरंगा हमारे दिलों में है।’
यकीनन तिरंगा और देशभक्ति लोगों के दिलों में होती है। उसे जाहिर करने के लिए तिंरगा हाथ में लेकर भारत माता की जय बोलने की जरूरत नहीं होती। हम भी वही कहते हैं, जो अनुपम ने कहा है। लेकिन दुर्र्भाग्य से अनुपम खेर जैसे लोगों ने तिरंगे और देशभक्ति को बाजार की चीज बना दिया। दिखावे की चीज बना दिया। वैसे अनुपम खेर के पास अच्छा मौका है। वह एनआईटी की घटना के विरोध में अपना पद्म भूषण वापस कर सकते हैं। देशभक्ति दिखाने का सुनहरा मौका।
अनुपम क्या हैं? एक एक्टर ही ना। हालांकि जब से उनकी पत्नी किरण खेर भाजपा से सांसद बनी हैं, उन्हें ‘सांसद पति’ कह सकते हैं। आजकल देश में प्रधान पति से लेकर सांसद पति होते हैं। जिनका काम अपनी पत्नी के नाम पर अपना नाम चमकाना होता है। अनुपम खेर वही कर रहे लगते हैं। अचानक उनके दिल में कश्मीरी पंडितों के लिए दर्द जाग गया है। वे खुद भी कश्मीरी पंडित हैं। अच्छा है। अपने लोगों का दर्द बांटना भी चाहिए। लेकिन क्या कश्मीरी पंडितों के साथ अभी कोई ज्यादती हुई है। कश्मीर से उन्हें दर-बदर हुए लगभग बीस साल होने जा रहे हैं। हमने कोई ऐसी खबर नहीं सुनी कि अनुपम खेर ने कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ किया हो।
2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आती है। उनकी पत्नी सांसद बनती हैं। इसके बाद अनुपम खेर के दिल में न केवल विस्थापित कश्मीरी पंडितों के दर्द उभर आता है, बल्कि वे राष्ट्रवाद के प्रखर हिमायती के रूप में उभर कर आते हैं। इसलिए वे अपनी कर्मस्थली महाराष्ट्र में सूखे से दम तोड़ते किसानों, पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसते मराठवाड़ा के लोगों को तड़पता छोड़कर श्रीनगर की एनआईटी में जाने के लिए जोरआजमाइश करते हैं। इसकी भी वजह है, जो पब्लिसिटी एनआईटी में जाने पर मिलती, वह गरीब किसानों के बीच जाने पर कहां मिलने वाली थी।
जब उन्हें श्रीनगर हवाई अड्डे से ही कश्मीर छोड़ने का फरमान उस सरकार ने जारी किया, जिसमें उनकी राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा सत्ता में साझीदार है, तो वह एक फाइव स्टार होटल से एक तस्वीर सोशल मीडिया में पोस्ट करते हैं, जिसमें वह तिरंगा पकडेÞ हुए हैं। साथ में लिख रहे हैं, ‘डियर एनआईटी स्टूडेंट, मैं यह तोहफा आपके बीच आकर आपको देना चाहता था। कोई बात नहीं फिर सही। तिरंगा हमारे दिलों में है।’
यकीनन तिरंगा और देशभक्ति लोगों के दिलों में होती है। उसे जाहिर करने के लिए तिंरगा हाथ में लेकर भारत माता की जय बोलने की जरूरत नहीं होती। हम भी वही कहते हैं, जो अनुपम ने कहा है। लेकिन दुर्र्भाग्य से अनुपम खेर जैसे लोगों ने तिरंगे और देशभक्ति को बाजार की चीज बना दिया। दिखावे की चीज बना दिया। वैसे अनुपम खेर के पास अच्छा मौका है। वह एनआईटी की घटना के विरोध में अपना पद्म भूषण वापस कर सकते हैं। देशभक्ति दिखाने का सुनहरा मौका।
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