Sunday, April 10, 2016

गिद्ध


रामदीन ने दो साल पहले ही तो अपने घर की उस छत को सही कराया था, जो थोड़ी बरसात में टपकने लगती थी। जब से छत ठीक कराई है, वर्षा रानी ने मुंह मोड़ लिया है। अगर उसे पता होता कि छत ठीक कराते ही आसमान से पानी गिरना बंद हो जाएगा तो वह छत ठीक ही नहीं कराता। उस पैसे से महाजन का थोड़ा कर्ज उतार देता। सुसरा कर्ज भी तो सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता रहता है। मूल तो तब जाए, जब ब्याज पूरा हो। दो साल से खेत सूखे पड़े हैं। अब तो लग रहा है, जैसे शहर का रुख करना ही पड़ेगा। यह सोचते हुए वह जब बाहर निकला और आसमान की ओर सिर उठाया तो सूरज की तेज किरणों ने उसे आंखें बंद करने के लिए मजबूर कर दिया। दूर-दूर तक बंजर जमीन अकाल की आहट दे रही थी। 
उसकी पत्नी पानी लेने गांव से पांच किलोमीटर दूर गई है। सरकार ने वहां टैंकरों से पानी भेजने की बात कही थी। वह सोच रहा था, पता नहीं पानी मिलेगा भी या नहीं। उसकी जबान प्यास की वजह से तालू से चिपकी जा रही थी। वह अपने सूखे होंठों पर बार-बार जबान फेरकर उन्हें तर करता रहता। बड़ी हसरत से कोने में रखे घड़े को देखता। उसमें पानी के चंद कतरे बचे थे। वे उन कतरों को पी लेगा तो पत्नी थककर आएगी तो वह क्या करेगी। फिर उसे ख्याल आता कि वह तो पानी लेकर आएगी। पीकर भी आएगी। यह सोचकर उसके हाथ घड़े की ओर बढ़ते। फिर अगले पल ही उसके जेहन में कई सवाल एक साथ कौंध जाते। अगर पानी का टैंकर किसी वजह से नहीं आया तो? उसे पानी भरने का मौका नहीं मिला तो? उसने किसी से सुना था कि कैसे टैंकर से पानी लेने के लिए लोग लड़ रहे थे। उसने एक बार फिर घड़े की ओर से मुंह फेर लिया।
बाहर आहट हुई। रामदीन बाहर निकला। पत्नी पसीने से तरबतर होकर हांफ रही थी। घड़ा खाली था। मतलब पानी नहीं मिला था। वह तेज धूप की वजह से बिल्कुल सूख गया था। बिल्कुल ऐसे, जैसे उसके खेत सूखे गए हैं। रामदीन ने एक बार फिर आसमान की ओर देखा। पत्नी ने भी उसका अनुसरण किया। सूरज कहर बरसा रहा था। जैसे सब कुछ जलाकर खाक कर देना चाहता हो। 
पत्नी के मुंह से बरबस निकला, अकाल है यह तो। फिर कुछ सोचकर रामदीन की ओर देखकर बोली, सुना है अकाल की आहट होते ही गिद्ध आसमान पर मंडराने लगते हैं। गिद्ध तो कहीं भी नहीं दिखाई दे रहे। रामदीन को पत्नी की बात जंची। उसके दिल के किसी कोने से आवाज आई। इसका मतलब अकाल नहीं आएगा। 
शाम हो चली थी। वह घड़ा बगल में दबाकर सरपंच के घर की ओर चल दिया। वहीं से थोड़ा बहुत पानी मिलने की उम्मीद थी। सरपंच की बैठक में रंगीन टीवी लगा है। सरपंच का बेटा शहर से आया हुआ है। वह उत्सुकता से टीवी पर नजर गड़ाए है। आइपीएल टूर्नामेंट का उद्घाटन होने वाला है। रामदीन की नजरें भी टीवी पर जम गर्इं। बहुत बड़ा मैदान है। बिल्कुल हरा-भरा। उसने बहुत दिनों बाद हरियाली देखी थी। 
मैदान पर एक पानी का टैंकर आया है। एक मोटे पाइप से पानी की मोटी धार मैदान पर बहने लगी। यह देखकर रामदीन को पानी याद आ गया। वह सरपंच के लड़के से बोला, साहब थोड़ा पानी मिल जाएगा क्या? पत्नी गई थी पानी लेने, लेकिन मिला नहीं। सरपंच के बेटे ने टीवी से नजरें हटाकर अपने पीछे की ओर देखा। रामदीन हाथ जोड़े खड़ा था। सरपंच के बेटे ने कुछ सोचा और बोला, हां...हां ले लो। लेकिन एक घड़े से ज्यादा मत लेना। और किसी को बताना भी मत। कल ही छह टैंकर पिताजी ने मुश्किल से मंगवाकर टंकियों में भरवाए हैं। यह कहते हुए उसने टीवी का चैनल बदल दिया। अब टीवी पर एक शहर का नजारा दिख रहा था। पुलिस के संरक्षण में पानी बांटा जा रहा था। लोग लड़ रहे थे। हरेक को सबसे पहले पानी लेने की जल्दी थी। पानी...जिसका कोई रंग नहीं होता, लेकिन जिंदगी होता है। बेशकीमती पानी। वही पानी, जिसे दूसरी जगह एक तमाशे के लिए बरबाद किया जा रहा था। वही पानी, जिस पर सबका हक है, लेकिन एक वर्ग उस पर डाका डाल रहा है।
रामदीन के जेहन में अपनी पत्नी के शब्द गूंज उठे। सुना है, अकाल की आहट होते ही आसमान में गिद्ध मंडराने लगते हैं, लेकिन गिद्ध तो दिखाई ही नहीं दे रहे। रामदीन ने अपने घड़े में पानी भरा। घर जाते हुए सोचने लगा कि पत्नी से बताऊंगा कि वह गलत कहती है कि गिद्ध दिखाई नहीं दे रहे हैं। बात बस इतनी सी है कि इंसान गिद्धों को मारकर खुद गिद्ध बन बैठा है। 

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