सलीम अख्तर सिद्दीकी
देश में ‘भारत माता की जय’ बोलना या ना बोलना, सबसे बड़ी समस्या बन गया है। इसके बोलने के पक्ष में दलील देने वाले कहते हैं कि ऐसा बोलना देशभक्ति की निशानी है। विरोध करने वाले कहते हैं कि देशभक्ति नारों से नहीं आती। इधर, दारुल देवबंद ने इसे इसलाम विरोधी बता दिया है। भागवत कह ही चुके हैं कि भारत माता की जय बोलना किसी पर जबरदस्ती थोपा नहीं जा सकता। भागवत सही कहते हैं, लेकिन उनके कुनबे के लोग ऐसा नहीं मानते। वे आए दिन इसे लेकर बखेड़ा करते रहते हैं। माहौल ऐसा बना दिया गया है, जैसे भारत माता की जय बोलना ही देशभक्ति मापने का एकमात्र पैमाना हो। वे ये नहीं समझ पा रहे हैं कि देशभक्ति का जज्बा अंदर से पैदा होता है। दिखावे के लिए बोला जाने वाला कोई भी नारा खोखला ही होता है। ऐसा नहीं है कि जो लोग भारत माता की जय नहीं बोल रहे, वे देशभक्त नहीं हैं? सच तो यह है कि जो लोग भारत माता की जय नहीं बोलते, वे शायद ऐसा कहने वालों से ज्यादा ही देशभक्त होंगे। वैसे भी देशभक्ति वक्त आने पर साबित की जाती है। जब-जब देश को जरूरत हुई है, तब-तब उन लोगों ने देश के लिए अपनी कुरबानियां दी हैं, जो भारत माता की जय या वंदेमातरम् बोलने से परहेज करते रहे हैं। दारूल उलूम देवबंद की जंग-ए-आजादी के लड़ाई में बहुत अहम भूमिका रही है। इसके विपरीत उन लोगों ने आजादी की लड़ाई से दूरी बनाकर रखी है, जो आज भारत माता की जय बोलकर या उसे दूसरों पर थोपकर देशभक्ति का दिखावा कर रहे हैं। दारूल उलूम ने सही कहा है कि अपने देश से प्यार करना, उसका वफादार रहना हर मुसलमान का फर्ज है, लेकिन वह देश की पूजा नहीं कर सकता, क्योंकि वह सिर्फ अल्लाह के सामने ही सिर झुका सकता है। सांप्रदायिक संगठनों ने जिस तरह से भारत माता की जय को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है, उससे सिवाय दिलों में दूरियां बनने के कुछ नहीं होगा। देश से सभी प्यार करते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ लोग इसका दिखावा करते हैं, कुछ वक्त आने पर देश के लिए जान दे देते हैं। वे संगठन जो भारत माता की जय बोलने पर कुछ ज्यादा की जोर दे रहे हैं, वे हालात को समझें और मान लें कि किसी पर कोई नारा थोपा नहीं जा सकता। लेकिन जब मकसद ही हंगामा खड़ा करना हो तो क्या किया जा सकता है।
देश में ‘भारत माता की जय’ बोलना या ना बोलना, सबसे बड़ी समस्या बन गया है। इसके बोलने के पक्ष में दलील देने वाले कहते हैं कि ऐसा बोलना देशभक्ति की निशानी है। विरोध करने वाले कहते हैं कि देशभक्ति नारों से नहीं आती। इधर, दारुल देवबंद ने इसे इसलाम विरोधी बता दिया है। भागवत कह ही चुके हैं कि भारत माता की जय बोलना किसी पर जबरदस्ती थोपा नहीं जा सकता। भागवत सही कहते हैं, लेकिन उनके कुनबे के लोग ऐसा नहीं मानते। वे आए दिन इसे लेकर बखेड़ा करते रहते हैं। माहौल ऐसा बना दिया गया है, जैसे भारत माता की जय बोलना ही देशभक्ति मापने का एकमात्र पैमाना हो। वे ये नहीं समझ पा रहे हैं कि देशभक्ति का जज्बा अंदर से पैदा होता है। दिखावे के लिए बोला जाने वाला कोई भी नारा खोखला ही होता है। ऐसा नहीं है कि जो लोग भारत माता की जय नहीं बोल रहे, वे देशभक्त नहीं हैं? सच तो यह है कि जो लोग भारत माता की जय नहीं बोलते, वे शायद ऐसा कहने वालों से ज्यादा ही देशभक्त होंगे। वैसे भी देशभक्ति वक्त आने पर साबित की जाती है। जब-जब देश को जरूरत हुई है, तब-तब उन लोगों ने देश के लिए अपनी कुरबानियां दी हैं, जो भारत माता की जय या वंदेमातरम् बोलने से परहेज करते रहे हैं। दारूल उलूम देवबंद की जंग-ए-आजादी के लड़ाई में बहुत अहम भूमिका रही है। इसके विपरीत उन लोगों ने आजादी की लड़ाई से दूरी बनाकर रखी है, जो आज भारत माता की जय बोलकर या उसे दूसरों पर थोपकर देशभक्ति का दिखावा कर रहे हैं। दारूल उलूम ने सही कहा है कि अपने देश से प्यार करना, उसका वफादार रहना हर मुसलमान का फर्ज है, लेकिन वह देश की पूजा नहीं कर सकता, क्योंकि वह सिर्फ अल्लाह के सामने ही सिर झुका सकता है। सांप्रदायिक संगठनों ने जिस तरह से भारत माता की जय को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है, उससे सिवाय दिलों में दूरियां बनने के कुछ नहीं होगा। देश से सभी प्यार करते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ लोग इसका दिखावा करते हैं, कुछ वक्त आने पर देश के लिए जान दे देते हैं। वे संगठन जो भारत माता की जय बोलने पर कुछ ज्यादा की जोर दे रहे हैं, वे हालात को समझें और मान लें कि किसी पर कोई नारा थोपा नहीं जा सकता। लेकिन जब मकसद ही हंगामा खड़ा करना हो तो क्या किया जा सकता है।
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