सलीम अख्तर सिद्दीकी
इससे ज्यादा हास्यास्पद और क्या हो सकता है कि पाकिस्तान की एक टीम, जिसमें वहां की बदनाम-ए-जमाना इंटेलीजेंस एजेंसी आईएसआई का भी नुमाइंदा शामिल है, पाठानकोट एयरबेस पर हुए हमले की जांच कर रही है। आखिर इस तरह की जांच का औचित्य क्या है? क्या पाकिस्तान मान जाएगा कि हां, हमने या हमारे यहां के नॉन एक्टर्स लोगों ने इसे अंजाम दिया था? मान भी गया तो क्या हो जाएगा? आखिर भारत सरकार अपनी कमजोरी को पाकिस्तान के पीछे क्यों छिपाना चाहता है। जब पठानकोट एयरबेस पर हमाल हुआ था, उससे तीन दिन पहले ही यह इनपुट मिल गया था कि आतंकवादी पठानकोट में प्रवेश कर चुके हैं। तीन दिन तक हमारी गुप्तचर एजेंसियां उन्हें ढूंढ नहीं पाई। क्या यह हमारी सुरक्षा और गुप्तचर एजेंसियों की नाकामी नहीं थी? हैरत की बात यह है कि पठानकोट में एयरबेस ही ऐसी जगह थी, जिसकी सुरक्षा कड़ी करनी चाहिए थी? पठानकोट में आतंकवादियों की दिलचस्पी वहां की बिरयानी खाने में तो नहीं ही रही होगी। उनका निशाना एयरबेस ही होना था। उसे खुला क्यों छोड़ दिया गया? बाद में पता चला कि एयरबेस में वहां इतने छेद हैं कि स्थानीय लोग उसमें आराम से चले और आ जाते हैं? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि पठानकोट के एसपी सलविंदर सिंह को क्यों क्लीन चिट दी गई? सुरक्षा एजेंसियों की इससे बड़ी नाकामी क्या होगी कि अब तक यह तय नहीं हो पाया है कि एयरबेस में कितने आतंकवादी घुसे थे? पाकिस्तान की जांच टीम आई जरूर है, लेकिन उसे किस तरह जांच करने दिया जा रहा है, यह इससे पता चलता है कि उसे चुनिंदा जगह ही जाने की अनुमति मिली है। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर कहती है कि पाकिस्तानी की जांच टीम जेआईटी के सदस्यों के साथ भारतीय वायुसेना के किसी भी अधिकारी से संपर्क नहीं कराया जाएगा। अभी यह नहीं पता कि जांच टीम अपने देश में जाकर क्या कहेगी? हो सकता है कि वह यह कह दे कि हमें जो सबूत दिखाये गए वो पर्याप्त नहीं हैं? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या पाकिस्तान भारत को हाफिज सईद से लेकर मसूद अजहर तक से पूछताछ करने की इजाजत दे देगा? यह जांच-वांच का ड्रामा बंद करके भारत को अपनी सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद करने की जरूरत है।
इससे ज्यादा हास्यास्पद और क्या हो सकता है कि पाकिस्तान की एक टीम, जिसमें वहां की बदनाम-ए-जमाना इंटेलीजेंस एजेंसी आईएसआई का भी नुमाइंदा शामिल है, पाठानकोट एयरबेस पर हुए हमले की जांच कर रही है। आखिर इस तरह की जांच का औचित्य क्या है? क्या पाकिस्तान मान जाएगा कि हां, हमने या हमारे यहां के नॉन एक्टर्स लोगों ने इसे अंजाम दिया था? मान भी गया तो क्या हो जाएगा? आखिर भारत सरकार अपनी कमजोरी को पाकिस्तान के पीछे क्यों छिपाना चाहता है। जब पठानकोट एयरबेस पर हमाल हुआ था, उससे तीन दिन पहले ही यह इनपुट मिल गया था कि आतंकवादी पठानकोट में प्रवेश कर चुके हैं। तीन दिन तक हमारी गुप्तचर एजेंसियां उन्हें ढूंढ नहीं पाई। क्या यह हमारी सुरक्षा और गुप्तचर एजेंसियों की नाकामी नहीं थी? हैरत की बात यह है कि पठानकोट में एयरबेस ही ऐसी जगह थी, जिसकी सुरक्षा कड़ी करनी चाहिए थी? पठानकोट में आतंकवादियों की दिलचस्पी वहां की बिरयानी खाने में तो नहीं ही रही होगी। उनका निशाना एयरबेस ही होना था। उसे खुला क्यों छोड़ दिया गया? बाद में पता चला कि एयरबेस में वहां इतने छेद हैं कि स्थानीय लोग उसमें आराम से चले और आ जाते हैं? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि पठानकोट के एसपी सलविंदर सिंह को क्यों क्लीन चिट दी गई? सुरक्षा एजेंसियों की इससे बड़ी नाकामी क्या होगी कि अब तक यह तय नहीं हो पाया है कि एयरबेस में कितने आतंकवादी घुसे थे? पाकिस्तान की जांच टीम आई जरूर है, लेकिन उसे किस तरह जांच करने दिया जा रहा है, यह इससे पता चलता है कि उसे चुनिंदा जगह ही जाने की अनुमति मिली है। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर कहती है कि पाकिस्तानी की जांच टीम जेआईटी के सदस्यों के साथ भारतीय वायुसेना के किसी भी अधिकारी से संपर्क नहीं कराया जाएगा। अभी यह नहीं पता कि जांच टीम अपने देश में जाकर क्या कहेगी? हो सकता है कि वह यह कह दे कि हमें जो सबूत दिखाये गए वो पर्याप्त नहीं हैं? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या पाकिस्तान भारत को हाफिज सईद से लेकर मसूद अजहर तक से पूछताछ करने की इजाजत दे देगा? यह जांच-वांच का ड्रामा बंद करके भारत को अपनी सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद करने की जरूरत है।
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