सलीम अख्तर सिद्दीकी
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कल ही अपने ब्लॉग में लिखा था कि क्यों उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला संविधान सम्मत है? लेकिन नैनीताल हाईकोर्ट ने 31 मार्च को विधानसभा में शक्ति परीक्षण करने का फैसला देकर उनकी दलीलों को दरकिनार कर दिया है। 31 मार्च को हरीश रावत सरकार अपना बहुमत साबित कर पाएगी या नहीं, यह अलग सवाल है, लेकिन कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार को करारा झटका देकर उसे बता दिया है कि धारा 356 का दुरुपयोग नहीं होने दिया जाएगा। इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस के उन बागी 9 विधायकों के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है, जो संभवत: भाजपा के कहने पर बागी हुए थे। भले ही भाजपा यह कहती रहे कि कांग्रेस में हुई बगावत से उसका कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन भाजपा शासित राज्य हरियाणा के गुड़गांव के पांच सितारा होटल में उनकी खातिरदार कौन कर रहा है? सबसे बड़ा सवाल यह है कि बागी कांग्रेसी नौ विधायकों का भविष्य क्या होगा? क्या वे माफी मांगकर कांग्रेस में आएंगे? क्या वे भाजपा में शामिल होंगे? या अपनी कोई नई पार्टी बनाएंगे? यह मुमकिन नहीं लगता कि इतनी बड़ी बगावत के बाद कांग्रेस आलाकमान उन्हें माफी दे देगा। भाजपा उन्हें लेने से इसलिए कतराएगी, क्योंकि विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट देना पड़ेगा। इससे खुद भाजपा में बगावत होने का डर पैदा हो जाएगा। आखिर वे भाजपा नेता क्यों ऐसे नेताओं को स्वीकार करेंगे, जिनसे उन्हें अपना हक छिनता हुआ दिखाई देगा? रही बात नई पार्टी बनाने की, तो हो सकता है कि ऐसा हो जाए। लेकिन क्या वे नौ विधायक इतने बड़े कद के हैं कि उन्हें जनता स्वीकार कर लेगी? यकीनन 31 मार्च उत्तराखंड की सियासत में नया अध्याय लिखेगी। यदि कांग्रेस अपना बहुमत साबित करने में कामयाब हो जाती है, तो केंद्र की मोदी सरकार पर यह करारा तमाचा होगा। यदि हरीश रावत विश्वास मत हासिल करने में नाकाम रहते हैं, तो यह तय है कि भाजपा महज चंद महीनों की सरकार बनाने से परहेज करेगी। इस सूरत में यही बचता है कि उत्तराखंड में नए चुनाव कराए जाएं। केंद्र की मोदी सरकार की यही मंशा लगती है। ताज्जुब नहीं होना चाहिए इस साल पांच राज्य के साथ उत्तराखंड में चुनाव की घोषणा हो जाए। हाईकोर्ट का फैसला कांग्रेस को यह राहत भी दे सकता है कि केंद्र सरकार अब अन्य कांग्रेसी सरकारों से छेड़छाड़ करने से परहेज करेगी।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कल ही अपने ब्लॉग में लिखा था कि क्यों उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला संविधान सम्मत है? लेकिन नैनीताल हाईकोर्ट ने 31 मार्च को विधानसभा में शक्ति परीक्षण करने का फैसला देकर उनकी दलीलों को दरकिनार कर दिया है। 31 मार्च को हरीश रावत सरकार अपना बहुमत साबित कर पाएगी या नहीं, यह अलग सवाल है, लेकिन कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार को करारा झटका देकर उसे बता दिया है कि धारा 356 का दुरुपयोग नहीं होने दिया जाएगा। इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस के उन बागी 9 विधायकों के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है, जो संभवत: भाजपा के कहने पर बागी हुए थे। भले ही भाजपा यह कहती रहे कि कांग्रेस में हुई बगावत से उसका कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन भाजपा शासित राज्य हरियाणा के गुड़गांव के पांच सितारा होटल में उनकी खातिरदार कौन कर रहा है? सबसे बड़ा सवाल यह है कि बागी कांग्रेसी नौ विधायकों का भविष्य क्या होगा? क्या वे माफी मांगकर कांग्रेस में आएंगे? क्या वे भाजपा में शामिल होंगे? या अपनी कोई नई पार्टी बनाएंगे? यह मुमकिन नहीं लगता कि इतनी बड़ी बगावत के बाद कांग्रेस आलाकमान उन्हें माफी दे देगा। भाजपा उन्हें लेने से इसलिए कतराएगी, क्योंकि विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट देना पड़ेगा। इससे खुद भाजपा में बगावत होने का डर पैदा हो जाएगा। आखिर वे भाजपा नेता क्यों ऐसे नेताओं को स्वीकार करेंगे, जिनसे उन्हें अपना हक छिनता हुआ दिखाई देगा? रही बात नई पार्टी बनाने की, तो हो सकता है कि ऐसा हो जाए। लेकिन क्या वे नौ विधायक इतने बड़े कद के हैं कि उन्हें जनता स्वीकार कर लेगी? यकीनन 31 मार्च उत्तराखंड की सियासत में नया अध्याय लिखेगी। यदि कांग्रेस अपना बहुमत साबित करने में कामयाब हो जाती है, तो केंद्र की मोदी सरकार पर यह करारा तमाचा होगा। यदि हरीश रावत विश्वास मत हासिल करने में नाकाम रहते हैं, तो यह तय है कि भाजपा महज चंद महीनों की सरकार बनाने से परहेज करेगी। इस सूरत में यही बचता है कि उत्तराखंड में नए चुनाव कराए जाएं। केंद्र की मोदी सरकार की यही मंशा लगती है। ताज्जुब नहीं होना चाहिए इस साल पांच राज्य के साथ उत्तराखंड में चुनाव की घोषणा हो जाए। हाईकोर्ट का फैसला कांग्रेस को यह राहत भी दे सकता है कि केंद्र सरकार अब अन्य कांग्रेसी सरकारों से छेड़छाड़ करने से परहेज करेगी।
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