Monday, March 28, 2016

धारा 356 की चाबुक

सलीम अख्तर सिद्दीकी
अरुणाचल प्रदेश में धारा-356 के दुरुपयोग के बाद एक बार इस धारा का जबरदस्त तरीके से दुरुपयोग करे उत्तराखंड की सरकार को गिराकर केंद्र की मोदी सरकार अपना ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत का सपना पूरा करना चाहती है। दिल्ली और बिहार की हार से बौखलाई मोदी सरकार ने उन
छोट राज्यों पर अपनी गिद्ध नजरें गड़ा दी हैं, जहां पर कांग्रेस की सरकारे हैं। यह वही भाजपा है, जो धारा 356 के इस्तेमाल को गलत बताती रही है। हैरत इस बात की है कि एक शांत राज्य उत्तराखंड में उसे संवैधिानिक संकट नजर आता है, लेकिन पिछले दिनों हरियाणा में जाट आरक्षण के चलते हुई अभूतपूर्व हिंसा मामूली कानून व्यवस्था का मामला लगती है। मोदी सरकार ने राज्यों में चुन-चुनकर ऐसे राज्यपाल नियुक्त किए हैं, जो पूरी तरह से केंद्र सरकार के एजेंट बनकर राज्य सरकारों को अस्थिर करने का काम कर रहे हैं। त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत राय तो एक तरह से आरएसएस का एजेंडा लागू कर रहे हैं। वह फेसबुक और ट्विटर पर निहायत ही घृणास्पद सांप्रदायिक टिप्पणियां करते रहते हैं। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रामनाईक भी भाजपा नेता की तरह बर्ताव करके एक तरह से विपक्ष की नेता की भूमिका में हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के बोम्मई केस का फैसला देते समय धारा 356 के दुरुपयोग को रोकने की कोशिश की थी। उस फैसले में साफ कहा गया था कि ‘किसी सरकार की किस्मत का फैसला राजभवन में नहीं हो सकता है, बल्कि विधानसभा में शक्ति परीक्षण के जरिए ही हो सकता है।’ इस फैसले में यह भी साफ कर दिया गया था कि, ‘किसी राज्य सरकार के बर्खास्त किए जाने और राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के कारण, न्यायिक समीक्षा के दायरे में आते हैं।’
भाजपा भले ही कहती रहे कि वह दूसरी पार्टियों से अलग है, लेकिन लगता है कि वह कांग्रेस से भी गई गुजरी पार्टी बन चुकी है। अरुणाचल प्रदेश के बाद उत्तराखंड की सरकार गिराकर उसने साबित कर दिया है कि वह भी कांग्रेस सरकारों की तरह ही अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों के लिए धारा 356 जैसे काले कानून का सहारा लेने से नहीं चूकेगी। कांग्रेस ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को अदालत में चुनौती देने का फैसला किया है, जो उसे देनी भी चाहिए। आखिर कब तक धारा 356 का सहारा लेकर लोकतंत्र का गला घोटा जाता रहेगा? 

No comments:

Post a Comment