सलीम अख्तर सिद्दीकी
हिंदुस्तान की मिट्टी यह खासियत है कि तमाम झंझावतों के बावजूद धर्मनिरपेक्षता का ताना-बाना टूटता नहीं है, बल्कि और मजबूत होता है। चाहे 1984 के सिख विरोधी दंगे हों या राममंदिर-बाबरी मसजिद का खूरेंज मसला हो। इस झंझावतों से देश न सिर्फ निकला, बल्कि सांप्रदायिक तत्वों को मुंह की खानी पड़ी। सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा फैलाई गई असहिष्णुता बहुत खतरनाक होती है। यह हम कांग्रेस शासनकाल में सिखों के विरुद्ध की गई ज्यादतियों में देख सकते हैं। वे दिन हम भूले नहीं हैं, जब हर सिख पर आतंकवादी होने का ठप्पा लगा दिया गया था। किसी बस का कंडक्टर बस में निगाह डालकर जोर से बोलता था, बस में कोई आतंकवादी (सिख) तो नहीं है? कोई सिख यात्रा कर रहा होता था, तो कंडक्टर उसे बस से उतार देता था। ऐसा करने वाले वही लोग थे, जो आज हर मुसलमान को आतंकवादी बताने पर तुले हैं। सिखों को जलील करने का कोई मौका नहीं गंवाया जाता था। जब हम सिखों पर होने वाली ज्यादतियों का विरोध करते हुए अखबारों में संपादक के नाम पत्र लिखते थे, उनका विरोध ऐसे ही होतो था, जैसे आज असहिष्णुता का विरोध करने पर होता है। घर के पते पर सैकड़ों की तादाद में गाली भरे खत आते थे। 1984 का दौर नहीं रहा, राम मंदिर के नाम पर देश को खून में नहलाने वाले दर-बदर हो चुके हैं। आज उन्हें अपने ही लोगों के हाथों अपमान झेलना पड़ रहा है। देश का मौजूदा असहिष्णुता का माहौल भी अपवाद नहीं रहेगा। असहिष्णुता और नफरत फैलाने वाले लोग बर्फ में लगने शुरू हो चुके हैं। दिल्ली, बिहार और रतलाम ने संकेत दे दिए हैं। भारत धर्मनिरपेक्ष था, है और रहेगा। हार सांप्रदायिकत ताकतों की ही होगी, हमेशा की तरह।
हिंदुस्तान की मिट्टी यह खासियत है कि तमाम झंझावतों के बावजूद धर्मनिरपेक्षता का ताना-बाना टूटता नहीं है, बल्कि और मजबूत होता है। चाहे 1984 के सिख विरोधी दंगे हों या राममंदिर-बाबरी मसजिद का खूरेंज मसला हो। इस झंझावतों से देश न सिर्फ निकला, बल्कि सांप्रदायिक तत्वों को मुंह की खानी पड़ी। सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा फैलाई गई असहिष्णुता बहुत खतरनाक होती है। यह हम कांग्रेस शासनकाल में सिखों के विरुद्ध की गई ज्यादतियों में देख सकते हैं। वे दिन हम भूले नहीं हैं, जब हर सिख पर आतंकवादी होने का ठप्पा लगा दिया गया था। किसी बस का कंडक्टर बस में निगाह डालकर जोर से बोलता था, बस में कोई आतंकवादी (सिख) तो नहीं है? कोई सिख यात्रा कर रहा होता था, तो कंडक्टर उसे बस से उतार देता था। ऐसा करने वाले वही लोग थे, जो आज हर मुसलमान को आतंकवादी बताने पर तुले हैं। सिखों को जलील करने का कोई मौका नहीं गंवाया जाता था। जब हम सिखों पर होने वाली ज्यादतियों का विरोध करते हुए अखबारों में संपादक के नाम पत्र लिखते थे, उनका विरोध ऐसे ही होतो था, जैसे आज असहिष्णुता का विरोध करने पर होता है। घर के पते पर सैकड़ों की तादाद में गाली भरे खत आते थे। 1984 का दौर नहीं रहा, राम मंदिर के नाम पर देश को खून में नहलाने वाले दर-बदर हो चुके हैं। आज उन्हें अपने ही लोगों के हाथों अपमान झेलना पड़ रहा है। देश का मौजूदा असहिष्णुता का माहौल भी अपवाद नहीं रहेगा। असहिष्णुता और नफरत फैलाने वाले लोग बर्फ में लगने शुरू हो चुके हैं। दिल्ली, बिहार और रतलाम ने संकेत दे दिए हैं। भारत धर्मनिरपेक्ष था, है और रहेगा। हार सांप्रदायिकत ताकतों की ही होगी, हमेशा की तरह।
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