Tuesday, May 13, 2014

मीडिया ने ‘नमक का हक’ अदा किया


सलीम अख्तर सिद्दीकी
आखिरकार मीडिया ने आखिरी वक्त तक ‘नमक का हक’ अदा किया। एग्जिट पोल में अबकी बार मोदी सरकार बनवा ही डाली। हद यह है कि एक चैनल ने तो एनडीए को 340 सीटें तक दे डाली हैं। कोई अक्ल का अंधा भी कयास लगा सकता है कि ऐसा मुमकिन नहीं है। लेकिन वह भी बेचारा क्या कर सकता है। पैसा लिया है, तो ऐसा कुछ तो दिखाना ही पड़ेगा कि जिससे लगे कि ‘नमक का हक’ अदा किया गया है। जिन राज्यों में भाजपा सरकारें हैं, उनमें तो एग्जिट पोल में लगभग सौ प्रतिशत सीटें तक दी गई हैं। यह तब है, जब 2009 और 2004 में यही एग्जिट पोल उलटे हो गए थे। तब भी मीडिया ने राजग को लगभग 250 सीटें तक दी थी। यह ठीक है कि ‘मोदी फैक्टर’ कहीं न कहीं काम कर रहा है, लेकिन इतना नहीं कि अन्य राजनीतिक दलों का सूपड़ा साफ हो जाएगा। इस चुनाव में मीडिया और खासतौर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी साख गंवाई है, पहले कभी नहीं गंवाई थी। पूरी बेशर्मी के साथ नमो-नमो की गई। पैड न्यूज का इतना बोलबाला रहा कि खबर और विज्ञापन का अंतर की खत्म हो गया था। लेकिन ऐसा नहीं है कि मीडिया  को इसका खामियजा उठाना नहीं पड़ेगा। मोदी की तानाशाही का शिकार उसे भी होना ही पड़ेगा। पूरी तरह से सेंसरशिप नहीं, तो ‘सेमी सेंसरशिप’ मीडिया को झेलनी पड़ेगी। हो सकता है कि जिन कॉरपोरेट घरानों के शेयर मीडिया में लगे हैं, वे अपनी मनमानी को मीडिया की सुर्खियां नहीं बनने देंगे। मोदी के साथ मिलकर ऐसी बंदरबांट करेंगे, जैसी यूपीए सरकार ने भी नहीं की होगी। ऐसा हुआ तो अंतत: जनता ही पिसेगी। मोदी के चुनाव प्रचार पर कॉरपोरेट ने जितना पैसा खर्च किया है, वे उसे सूद सहित वापस लेंगे। यदि मोदी सरकार आई तो देश पर काला साया मंडराने लगेगा, जिसका मुकाबला ऐसे ही करना पड़ेगा, जैसे ब्रिटिश सरकार का किया गया था। अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी और समाज के अन्य कमजोर तबकों के लिए मोदी सरकार विनाशकारी साबित होगी।

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