सलीम अख्तर सिद्दीकी
जब से यह प्रचारित हुआ है कि अच्छे दिन आने वाले हैं, मेरी तो मुसीबत ही आ गई है। पत्नी की जिद कि एक अलग घर बने न्यारा, मेरा कहना कि अभी ऐसे ही करो गुजारा। बीच में छोटी बेटी कह उठी, अब्बू फिक्र क्यों करते हैं, मम्मी की ख्वाहिश जल्दी पूरी हो जाएगी। मैंने चौंककर पूछा वह कैसे? उसने ताना देते हुए कहा, लो दुनिया जहान की खबर रखते हैं, यही नहीं पता कि अच्छे दिन आने वाले हैं। उसके जवाब पर मेरे चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट आ गई। पत्नी बोली, हमारे अच्छे दिन कब आएंगे पता नहीं, लेकिन उनके अच्छे दिन तो आने वाले ही लगते हैं, जो कह रहे हैं कि अच्छे दिन आने वाले हैं। बचपन से सुनते आ रहे हैं कि गरीबी हटेगी, लेकिन नामुराद बढ़ती जा रही है। अब देखे लेंगे कैसे अच्छे दिन आने वाले हैं।
बातों के बीच बेटी ने रिमोट से चैनल बदल दिया। एक इंटरव्यू चल रहा था। उसने फिर चैनल बदला, फिर वही इंटरव्यू। फिर चैनल बदला, फिर वही। बेटी बोल उठी, लो हमारा तो टीवी ही खराब हो गया। इस बीच बेटा भी प्रकट हो गया। उसने कहा, टीवी खराब नहीं हुआ है, सभी चैनल पर एक ही इंटरव्यू आ रहा है, इसलिए ऐसा लग रहा है। बेटी बेसाख्ता बोल उठी, क्यों चैनल वालों के पास मसाला खत्म हो गया, जो एक ही चीज दिखाए जा रहे हैं। बेटी ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, लो टीवी वालों के तो बुरे दिन शुरू हो गए हैं। बेटे ने उसके सिर पर हाथ मारते हुए कहा, पागल बुरे दिन नहीं, अच्छे दिन चल रहे हैं उनके, बासी चीज दिखाने के लिए ताजा चीज के पैसे मिल रहे हैं। न हल्दी लग रही है, न फिटकरी रंग चोखा आ रहा है।
तभी बाहर से पत्नी की कर्कश आवाज आई, अरे सुनो, बाहर सब्जी वाला खड़ा है, उससे थोड़ी सब्जी ले लीजिए। मैं बाहर निकला। सब्जियों के भाव पूछे, तो एहसास हुआ कि वह सब्जियों के नहीं, ड्राई फ्रूट के दाम बता रहा है। मैंने कहा, भैया सब्जी तो बहुत महंगी हो गई है। सब्जी वाला बोला, साहब बस कुछ दिन की बात है, अच्छे दिन आने वाले हैं। महंगाई कम हो जाएगी और आमदनी बढ़ जाएगी। मैंने पूछा वह कैसे? उसने मासूमियत से जवाब दिया, टीवी, रेडियो और अखबारों में यही तो आ रहा है रोज। मीडिया वाले झूठ थोड़ा ही बोलते हैं। सब्जी वाले को कुछ याद आया। मेरी ओर संदिग्ध निगाहों से देखते हुए बोला, लेकिन साहब आप तो अब...? मैंने उसकी आंखों में आंखों में डालते हुए पूछा, बात पूरी करो। क्या कहा, आप तो अब? वह हड़बड़ाकर बोला, कुछ नहीं साहब। मेरा एक साथी सब्जी वाला आपके बारे में कह रहा कि आप अच्छे दिन लाने वालों के खिलाफ लिखते रहते हैं, इसलिए...? उसने फिर बात अधूरी छोड़ दी। उसने फिर अचकचाकर पूछा, साहब आपका पासपोर्ट बना हुआ है या नया बनवाएंगे? मैं उसकी बात सुनकर बस मुस्कुरा कर रह गया। उसने जाते हुए कहा, लेकिन साहब हमें ऐसे अच्छे दिन नहीं चाहिए।
जब से यह प्रचारित हुआ है कि अच्छे दिन आने वाले हैं, मेरी तो मुसीबत ही आ गई है। पत्नी की जिद कि एक अलग घर बने न्यारा, मेरा कहना कि अभी ऐसे ही करो गुजारा। बीच में छोटी बेटी कह उठी, अब्बू फिक्र क्यों करते हैं, मम्मी की ख्वाहिश जल्दी पूरी हो जाएगी। मैंने चौंककर पूछा वह कैसे? उसने ताना देते हुए कहा, लो दुनिया जहान की खबर रखते हैं, यही नहीं पता कि अच्छे दिन आने वाले हैं। उसके जवाब पर मेरे चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट आ गई। पत्नी बोली, हमारे अच्छे दिन कब आएंगे पता नहीं, लेकिन उनके अच्छे दिन तो आने वाले ही लगते हैं, जो कह रहे हैं कि अच्छे दिन आने वाले हैं। बचपन से सुनते आ रहे हैं कि गरीबी हटेगी, लेकिन नामुराद बढ़ती जा रही है। अब देखे लेंगे कैसे अच्छे दिन आने वाले हैं।
बातों के बीच बेटी ने रिमोट से चैनल बदल दिया। एक इंटरव्यू चल रहा था। उसने फिर चैनल बदला, फिर वही इंटरव्यू। फिर चैनल बदला, फिर वही। बेटी बोल उठी, लो हमारा तो टीवी ही खराब हो गया। इस बीच बेटा भी प्रकट हो गया। उसने कहा, टीवी खराब नहीं हुआ है, सभी चैनल पर एक ही इंटरव्यू आ रहा है, इसलिए ऐसा लग रहा है। बेटी बेसाख्ता बोल उठी, क्यों चैनल वालों के पास मसाला खत्म हो गया, जो एक ही चीज दिखाए जा रहे हैं। बेटी ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, लो टीवी वालों के तो बुरे दिन शुरू हो गए हैं। बेटे ने उसके सिर पर हाथ मारते हुए कहा, पागल बुरे दिन नहीं, अच्छे दिन चल रहे हैं उनके, बासी चीज दिखाने के लिए ताजा चीज के पैसे मिल रहे हैं। न हल्दी लग रही है, न फिटकरी रंग चोखा आ रहा है।
तभी बाहर से पत्नी की कर्कश आवाज आई, अरे सुनो, बाहर सब्जी वाला खड़ा है, उससे थोड़ी सब्जी ले लीजिए। मैं बाहर निकला। सब्जियों के भाव पूछे, तो एहसास हुआ कि वह सब्जियों के नहीं, ड्राई फ्रूट के दाम बता रहा है। मैंने कहा, भैया सब्जी तो बहुत महंगी हो गई है। सब्जी वाला बोला, साहब बस कुछ दिन की बात है, अच्छे दिन आने वाले हैं। महंगाई कम हो जाएगी और आमदनी बढ़ जाएगी। मैंने पूछा वह कैसे? उसने मासूमियत से जवाब दिया, टीवी, रेडियो और अखबारों में यही तो आ रहा है रोज। मीडिया वाले झूठ थोड़ा ही बोलते हैं। सब्जी वाले को कुछ याद आया। मेरी ओर संदिग्ध निगाहों से देखते हुए बोला, लेकिन साहब आप तो अब...? मैंने उसकी आंखों में आंखों में डालते हुए पूछा, बात पूरी करो। क्या कहा, आप तो अब? वह हड़बड़ाकर बोला, कुछ नहीं साहब। मेरा एक साथी सब्जी वाला आपके बारे में कह रहा कि आप अच्छे दिन लाने वालों के खिलाफ लिखते रहते हैं, इसलिए...? उसने फिर बात अधूरी छोड़ दी। उसने फिर अचकचाकर पूछा, साहब आपका पासपोर्ट बना हुआ है या नया बनवाएंगे? मैं उसकी बात सुनकर बस मुस्कुरा कर रह गया। उसने जाते हुए कहा, लेकिन साहब हमें ऐसे अच्छे दिन नहीं चाहिए।
ekdam sahi kaha .nice post .
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