Sunday, December 15, 2013

उनकी खुशी, हमारा गुनाह



वह एक ऐसे शख्स के बेटे की शादी थी, जो धर्म-कर्म में लगे रहते थे। सब से धर्म के रास्ते पर चलने की नसीहतें देना उनका सबसे बड़ा काम था। सादगी और आडंबर से दूर रहने की हिदायत उनकी जबान पर रहती थी। शादी में मैं भी शरीक था। शादी हॉल पर पहुंचा तो सादगी का तो दूर-दूर तक खैर पता ही नहीं था, वह सब हो रहा था, जिसे न करने की हिदायत वह शख्स दिन रात दिया करते थे। दहेज इतना मिला था कि लोगों की आंखे चुंधिया गईं। उस शख्स को भी एक स्कूटी भेंट की गई थी। कई तरह के खाने थे। रंग-बिरंगी पौशाक में इठलाते युवा और युवतियां। यहां तक सही लग रहा था कि चलो आजकल जमाना ही ऐसा है। लेकिन उसके बाद जो कुछ हुआ, वह चौंकाने वाला था। कहीं दूर आतिशबाजी और बैंड बजने की आवाज सुनाई दी। किसी ने कहा, लगता है बारात आ गई। मेरे साथ अन्य लोग भी चौंके। इस शादी में आतिशबाजी और बैंड बाजा। बात कुछ हजम नहीं हो रही थी। मैंने सोचा कि किसी और की बारात होगी, क्योंकि शादियों का सीजन था। लेकिन थोड़ी देर बाद कंफर्म हो गया कि बारात उन्हीं धार्मिक शख्स की थी। थोड़ी देर बाद नाचते-गाते युवकों का टोला बैंड बाजे के साथ शादी हॉल के सामने आकर रुका।
देर तक जमकर आतिशबाजी हुई। कई लोगों के चेहरों पर नागवारी थी। किसी ने कहा,‘यह तो आतिशबाजी और बैंड बाजे को गुनाह मानते और बताते फिरते हैं?’ यह सुनकर कई लोगों की चेहरों पर व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट तैर गई। वो शख्स, जिनके बेटे की बारात थी, शादी का वैभव देखकर गर्व से फूले नहीं समा रहे थे। किसी ने उनसे मुखातिब होकर कहा, जनाब,‘यह क्या हो रहा है? कथनी और करनी में इतना बड़ा फर्क? अब कैसे दूसरों को नसीहत करेंगे आप?’ उस शख्स ने बेपरवाह होकर जवाब दिया,‘भई मैंने तो बहुत मना किया, लेकिन क्या करें आजकल के बच्चे मानते ही नहीं हैं। मैंने तो बहुत मना किया, लेकिन नहीं माने अब घर में कौन लड़ाई करे?’ इतना कहकर वह एक ओर चल दिए तो एक आदमी ने कहा,‘अरे जनाब इनकी घर में चलती कहां है? इनकी शरीक-ए-हयात का कहना था कि मेरा तो एक ही बेटा है, मैं तो अपने पूरे अरमान निकालूंगी। सब कुछ उन्होंने ही किया है।’
थोड़ी देर बाद शादी हॉल में कुछ गहमागहमी सुनाई दी। कोई जोर-जोर से बोल रहा था। सब लोग उस ओर ही चल दिए। देखा कि एक शख्स उनसे मुखातिब था, जिनके बेटे की शादी थी। वह शख्स कह रहा था,‘मियां, आप जो करो, वह सही, हम करें तो गुनाह-ए-अजीम? पिछले महीने मेरे बेटे की शादी थी, तो बच्चों ने डीजे लगवा दिया था, तो आपने अपने साथियों के साथ जबरदस्ती उसे यह कहकर बंद करवा दिया था कि यह सब हमारे मजहब में शिर्क है।’ वह जाते-जाते बोला,‘..और आपके इसी बेटे ने डीजे के तार खींचे थे, जिसकी बारात में यह सब कर रहे हैं।’ बाहर आतिशबाजी और बैंड की आवाज तेज हो गई थी। कहीं दूर किसी मसजिद से अजान की मद्धम आवाज उभरी, जो आतिशबाजी और बैंड की आवाज में दबकर रह गई।

4 comments:

  1. सिकंदर हयातDecember 17, 2013 at 9:22 AM

    कठमुल्लाओं कि तो बात ही क्या सलीम सर हमारा एक पढ़ा लिखा चिकना चुपड़ा तबका भी बेहद दोगला हे वास्तव में इसी दोगले तबके के जुबानी सपोर्ट से हमारे यहाँ कुछ कठमुल्लाओं के भी हौसले बुलंद रहते हे अभी में अपने यु पी में डॉक्टर कज़िन से एक पर्मुख शिक्षा संस्थान के आस पास मुस्लिम लड़कियो के बदलते हुलिये पर बात कर रहा था सुनते ही मेरा क्लीन शेव कज़िन उछल उछल कर बुर्के परदे हिज़ाब का समर्थन करना लगा खेर मेने जब मेने उसे याद दिलाया कि हमारी भाभी यानि उसकी वाइफ अच्छी स्मार्ट लेडी हे और बुर्के परदे का नामोनिशान नहीं हे , तब जाकर मेरा कज़िन ठंडा पड़ा इसके आलावा मेने उसे याद दिलाया कि उसकी शादी के लिए उसने जितनी भी लड़किया देखि थी उनमे से एक भी बुर्के परदे वाली नहीं थी

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  2. सिकंदर हयातDecember 18, 2013 at 10:40 PM

    http://www.youtube.com/watch?v=GVPVNMhiiQw

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