सलीम अख्तर सिद्दीकी
नौ बजे थे, जब मैं अपने डॉक्टर दोस्त के क्लिनिक पर पहुंचा था। कोहरे में लिपटी रात होने की वजह से सड़क पर सन्नाटा पसरा था। डॉक्टर एक मरीज का चैकअप कर रहा थ। मरीज की उम्र यही कोई65-70 साल के आसपास थी।सर्दीसे बचने के लिए उसने एक मैली सी चादर अपने बदन पर लपेटी हुईथी। वह बराबर खांस रहा था। डॉक्टर उससे कह रहा था, बाबा मैंने पहले भी कहा था, अपनी कुछजांच करा लें, वरना सर्दीमें दिक्कत बढ़ जाएगी। बूढ़े ने डॉक्टर को ऐसी नजरों से देखा, जैसे पूछरहा हो, कैसे जांच करवाऊं? डॉक्टर ने सवाल किया, आपके बेटा नहीं है कोई? बूढ़े ने हाथ की ऊंगलियों से इशारा किया, चार। डॉक्टर ने फिर सवाल दागा, आपके साथ नहीं रहते? इस सवाल पर बूढ़ा थोड़ी देर के लिए चुप हो गया और बाहर की ओर ताकने लगा। फिर हाथ का इशारा किया, जिसका मतलब यही था कि सब बाहर रहते हैं। थोड़ी देर खामोशी रही। बूढ़े ने खामोशी तोड़ते फुसफुसाते हुए कहा, चारों सरकारी नौकर हैं। किसी चीज की कमी नहीं है। बस मेरे लिए ही कुछनहीं है। यह कहते-कहते बूढ़े की आंखों में आंसू तैरने लगे। डॉक्टर ने कहा, बाबा अब तो मैं दवा दे रहा हूं, लेकिन आपको कुछजांच करानी ही पड़ेंगी। थोड़ी देर में कंपाउडर ने दवा का लिफाफा बूढ़े के हाथ में दिया। उसने कहीं से टटोलकर चार तह किया हुएआ एक पचास का नोट डॉक्टर के सामने रख दिया। डॉक्टर ने कुछसोचा और फिर बोला, पैसे रहने दो बाबा। दवा खालो कल फिर दवा ले जाना। बूढ़ा आहिस्ता-आहिस्ता क्लिनिक से बाहर निकला और कोहरे की धुंध में खो गया। मेरे और डॉक्टर के बीच खामोशी छा गई। मैं उस बूढ़े के बारे में सोच रहाथा और शायद डॉक्टर भी। हमारी तंद्रा तब टूटी, जब एक बच्चे की रोने की आवाज हमारे कानों में पड़ी। एक नौजवान दंपति एक रोते हुए बच्चे के साथ क्लिनिक में दाखिल हो रहा था। बच्चा लगातार रोए जा रहा था। दंपति के चेहरों से लग रहाथा कि वह बच्चे का रुदन सहन नहीं कर पा रहे थे। नौजवान, जो उस बच्चे का पिता था, कातर स्वर में बोला, डॉक्टर साहब तीन घंटे से यह रोए जा रहा है। शायद इसके पेटमें दर्दहै। डॉक्टर ने दंपति से कुछसवाल किए। कागज पर दवा लिखी और स्टोर से लाने के लिए कहा। उसका पिता जितनी जल्दी हो सकता था, दवा लेकर आया। डॉक्टर ने ड्रॉपर से चंद बूंदे बच्चे के मुंह में डालीं। थोड़ी देर बाद ही बच्चे की रोने की आवाज धीमी होती चली गई। देखते ही देखते बच्चे के चेहरे पर सुकून उभरा और अपनी मां के आंचल में दुबक कर सो गया। दंपति के चेहरों पर भी संतोष के भाव उभर आए। डॉक्टर ने उन्हें कुछ औरदवाइयां दीं। बच्चे के पिता ने जेब से पैसे निकालकर डॉक्टर के सामने रखे। अचानक मुझे उस बच्चे के पिता का चेहरा बदलता हुआ लगा। लगा जैसे वह उस बूढ़े की तरह होता जा रहा है, जो थोड़ी देर पहले क्लिनिक से गया था। मजबूर, बेबस और लाचार। देखते ही देखते वह हूबहू उस बूढ़े की शक्ल अख्तियार कर चुका था। वह बूढ़ा भी कभी अपने उन बच्चों के लिए ऐसे ही परेशान हुआ होगा, जैसे यह पिता हो रहा है। बाहर कोहरा और घना हो गया था। सड़क पर सन्नाटा भी और ज्यादा हो गया था।
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