सलीम अख्तर सिद्दीकी
वह इस साल की ईद की चांद रात थी। मेरा एक शख्स से मिलना बहुत जरूरी था। मैंने उसे फोन लगाया, तो पता चला कि वह शहर के एक बार में बैठा हुआ था। उसके बारे में प्रचलित था कि वह वह कम से कम तीन घंटे बार में गुजारता है। मैं पशोपेश में पड़ गया कि उससे मिलने बार में जाऊं या नहीं? काम कुछ ऐसा था कि उससे मिलना भी जरूरी था। डर था कि यदि मुझे किसी ने बार में देख लिया तो यही समझेगा कि मैं शराबखोरी करने आया हूं। अक्सर कहा जाता है कि आंखों देखी बात सच होती है। इस पर विचार नहीं किया जाता कि मजबूरी वश भी कोई बार में जा सकता है। बार में मौजूद कोल्ड ड्रिंक पीने वालों को भी शराबी ही गिना जाएगा। बहरहाल, मैं बार में पहुंचा। एक नीम अंधेरे में पड़ी एक टेबिल पर वह शख्स दिखाई दिया, मुझे जिससे मिलना था। उसने बैरे को ड्रिंक सर्व करने का आॅर्डर दिया। बैरा ने कोल्ड ड्रिंक का गिलास लाकर ही रखा था कि उस शख्स का मोबाइल वाइब्रेट हुआ। उसने नंबर पर निगाह डालकर फोन उठाया और बात करने के लिए बाहर चला गया। उसके जाते ही मैं कोल्ड ड्रिंक सिप करते हुए बार का जायजा लेने लगा। हमारी टेबिल से अगली टेबिल पर छह लड़के बैठे हुए थे। उनकी बातचीत से अंदाजा लग रहा था कि वे सब ह्यचांद रात सेलिब्रेटह्ण करने आए थे। एक कह रहा था कि आज ह्यशैतानह्ण खुल गया है। तभी बार में एक ऊंची आवाज गूंजी, ह्यअरे वाहिद पैग रिपीट कर दे भाई।ह्ण यह सुनकर उन लड़कों को झटका-सा लगा। उनमें से एक कह उठा, ह्यअरे यार यहां तो मुसलिम वेटर भी है।ह्ण उनमें बहस होने लगी कि किसी शराबखाने में नौकरी करना जायज है नाजायज? सभी नाजायज पर सहमत थे। एक ने आगे बढ़कर इसे ह्यहरामह्ण करार दे दिया। वह अभी चर्चा में मशगूल ही थे कि वाहिद नाम का वह वेटर उनके करीब से गुजरा, तो एक लड़के ने उसे रोक लिया और पूछा, ह्यतुम मुसलिम होते हुए भी बार में नौकरी करते हो, क्या तुम्हें किसी ने यह नहीं बताया कि इस तरह की कमाई नाजायज है?ह्ण यह सुनकर वेटर के माथे पर बल पड़ गए। उसने बहुत ही तल्खी से जवाब दिया, ह्यक्या जायज है और क्या नाजायज मैं भी अच्छी तरह जानता हूं और आप सब लोग भी। मैं तो किसी मजबूरी के तहत यह काम कर रहा हूं, लेकिन मुसलमान होने के बावजूद शराब पीने की आपकी कौन-सी मजबूरी है, यह तुम जानो।ह्ण वेटर को किसी ने आवाज लगाई। उसने इशारे से आने के लिए कहा और जाते-जाते उन लड़कों पर जुमला उछाल दिया, ह्यमैंने आज तक शराब को चखा तक नहीं है।ह्ण उन लड़कों के सिर निदामत से झुक गए थे। मुझे वह शख्स हॉल में दाखिल होता दिखाई दिया, मुझे जिससे मिलना था। मेरे दिल से अब वह खौफ निकल गया था कि मुझे यहां कोई देखेगा, तो क्या सोचेगा।
वह इस साल की ईद की चांद रात थी। मेरा एक शख्स से मिलना बहुत जरूरी था। मैंने उसे फोन लगाया, तो पता चला कि वह शहर के एक बार में बैठा हुआ था। उसके बारे में प्रचलित था कि वह वह कम से कम तीन घंटे बार में गुजारता है। मैं पशोपेश में पड़ गया कि उससे मिलने बार में जाऊं या नहीं? काम कुछ ऐसा था कि उससे मिलना भी जरूरी था। डर था कि यदि मुझे किसी ने बार में देख लिया तो यही समझेगा कि मैं शराबखोरी करने आया हूं। अक्सर कहा जाता है कि आंखों देखी बात सच होती है। इस पर विचार नहीं किया जाता कि मजबूरी वश भी कोई बार में जा सकता है। बार में मौजूद कोल्ड ड्रिंक पीने वालों को भी शराबी ही गिना जाएगा। बहरहाल, मैं बार में पहुंचा। एक नीम अंधेरे में पड़ी एक टेबिल पर वह शख्स दिखाई दिया, मुझे जिससे मिलना था। उसने बैरे को ड्रिंक सर्व करने का आॅर्डर दिया। बैरा ने कोल्ड ड्रिंक का गिलास लाकर ही रखा था कि उस शख्स का मोबाइल वाइब्रेट हुआ। उसने नंबर पर निगाह डालकर फोन उठाया और बात करने के लिए बाहर चला गया। उसके जाते ही मैं कोल्ड ड्रिंक सिप करते हुए बार का जायजा लेने लगा। हमारी टेबिल से अगली टेबिल पर छह लड़के बैठे हुए थे। उनकी बातचीत से अंदाजा लग रहा था कि वे सब ह्यचांद रात सेलिब्रेटह्ण करने आए थे। एक कह रहा था कि आज ह्यशैतानह्ण खुल गया है। तभी बार में एक ऊंची आवाज गूंजी, ह्यअरे वाहिद पैग रिपीट कर दे भाई।ह्ण यह सुनकर उन लड़कों को झटका-सा लगा। उनमें से एक कह उठा, ह्यअरे यार यहां तो मुसलिम वेटर भी है।ह्ण उनमें बहस होने लगी कि किसी शराबखाने में नौकरी करना जायज है नाजायज? सभी नाजायज पर सहमत थे। एक ने आगे बढ़कर इसे ह्यहरामह्ण करार दे दिया। वह अभी चर्चा में मशगूल ही थे कि वाहिद नाम का वह वेटर उनके करीब से गुजरा, तो एक लड़के ने उसे रोक लिया और पूछा, ह्यतुम मुसलिम होते हुए भी बार में नौकरी करते हो, क्या तुम्हें किसी ने यह नहीं बताया कि इस तरह की कमाई नाजायज है?ह्ण यह सुनकर वेटर के माथे पर बल पड़ गए। उसने बहुत ही तल्खी से जवाब दिया, ह्यक्या जायज है और क्या नाजायज मैं भी अच्छी तरह जानता हूं और आप सब लोग भी। मैं तो किसी मजबूरी के तहत यह काम कर रहा हूं, लेकिन मुसलमान होने के बावजूद शराब पीने की आपकी कौन-सी मजबूरी है, यह तुम जानो।ह्ण वेटर को किसी ने आवाज लगाई। उसने इशारे से आने के लिए कहा और जाते-जाते उन लड़कों पर जुमला उछाल दिया, ह्यमैंने आज तक शराब को चखा तक नहीं है।ह्ण उन लड़कों के सिर निदामत से झुक गए थे। मुझे वह शख्स हॉल में दाखिल होता दिखाई दिया, मुझे जिससे मिलना था। मेरे दिल से अब वह खौफ निकल गया था कि मुझे यहां कोई देखेगा, तो क्या सोचेगा।
sach ko kareeb se janne ka ek prayas .aabhar
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteशुभकामनायें आदरणीय-
शराबखाना जेसी जगह का तो छोड़िये सलीम सर किसी भी आम मुस्लिम महफ़िल में चले जाइये कुछ लोग बेमतलब बेमकसद कि झक मारते जरुर मिल जायेगे ऊपर से लेकर नीचे तक कन्फ्यूजन का बोल बाला मिलेगा मज़हबी रहनुमाओ का और भाषणबाज़ी करते घूमने वाले लोगो का और कुछ महिलाओ का भी हाल य हे कि वो लोगो के अमाल तो न बदल सके हा '' हुलिया '' जरुर बदलते जा रहे हे ---- जारी
ReplyDeleteअफ़ज़ल ख़ान को जवाब )- sikander hayat
ReplyDeleteOctober 08,2013 at 04:51 PM GMT+05:30
अफ़ज़ल भाई पूरी साइकि को समझिये की क्या है अब देखिये उपमहदीप मे 60 क्रोड मुस्लिम है जो बाकी जनता की तरह ही समस्याओ के अंबार से परेशान है ( रोटी कपड़ा मकान गुरबत रोज़गार असमनता कृपशन पारदूषण ) है अब देखिये की साइकि क्या डेवलप की जाती है की जो य काहे की इस्लाम लागू करो इस्लामिक कानून लागू करो वो तो बेठे बिताय बिना जमीन पर कुछ करे धरे ही महान मुस्लिम हो जाते है वो खुद को भी समझते है और जनता भी यही समझती है और जो लेखक संपादक विचारक अफ़ज़ल ख़ान या कोई सफुल्लाह य काहे की इस्लामिक कानून खुद इतने मुस्लिम देशो मे नही है ना आएसए शासक है ना आएसई परजा तो भला यहा कहा से लागू हो जायेंगे ? केसे ? मतलब जो मुस्लिमयुटोपिया ( आदर्शवाद ) के सपने दिखाय वो तो महान और जो अफ़ज़ल जमीनी हकीकते दिखाय वो विलेन ? इसलिये आप देखे की लाखो क्या क्रोड लोग धर्म परचारक मुसलमानो मे य बाते करते मिल जायेंगे लेकिन जमीन पर काम करने वाले ना के बराबर मिलेंगे ? जो रात दिन कहते रहते है की इस्लाम लागू करो इस्लाम लागू करो य लोग किसी सरकार या निज़ाम से पहले ही खुद अपने जीवन मे क्यो नही इस्लाम या शरीयत के आदर्श लाते ? इसलिये नही लाते की बात करना ही आसान होता है आदर्श पर चलना बेहद मुश्किल ? एक उधारण दु देखे तो कई पाकिस्तानी खिलाड़ियो की तरह शाहिद आफरीदी भी आजकल कुछ पर्चराक से बन गये है और खूब उपदेश दे रहे है उनका एक इंटेरव्यू देख रहा था तो कह रहे है की '' इतनी अच्छी अच्छी बाते है दीन की पता नही हम अपने लोगो को क्यो नही सिखाते है '' बड़े भोलेपन के साथ शाहिद य बात कहते है और खुद जिस सोफे पर बेठे है वो लाखो रुपये का होगा शायद 2004 मे सौरभ गांगुली की बीवी ने बताया था की आफरीदी का घर जबरदस्त है मतलब की लाखो रुपये के सोफे पर बेत कर शाही जीवन के सात शाहिद साहब दीन की बात कर रहे है अरे भई दीन तो सादगी की बात करता है आपके जीवन मे कहा है सादगी ? मतलब अपने जीवन मे इस्लाम लागू करने की जगह लोग खुद ही सिर्फ बड़ी बड़ी बाते करके खुद को महान समझते रहते है और एक सपनो की दुनिया मे जीते है और आम जनता को भी रखते है फिर जब कोई अफ़ज़ल य सपना तोड़कर हकीकत की खुरदुरी जमीन दिखाता है तो बुरा ही लगेगा
(sikander hayat को जवाब )- अफ़ज़ल ख़ान
October 08,2013 at 06:36 PM GMT+05:30
बैठ कर भाषन देने मे अच्छा लगता है तबलिगी जमत का हाल है के बस छ्लिए चिल्ला मे. सब अल्लाह के सहारे छोड़ दीजिये. उन्हे कौन समझाये के अल्लाह ने खुद कहा है केफ़ाज्र की नमाज़ के बाद फाल जाओ अपने काम के लिये. अगर आप नही कमाये गे को आप को या आप के बच्चे को कौन खिलाये गा. इस मे कोई शक नही के तबलिगी जमत काम अच्छा कर रही है मगर संदेश गलत दे रही है और लोगो को कामचोर बना रही है.