Sunday, April 14, 2013

‘बपतिस्मा’ की खुशी में आज शाम की बीयर मेरी तरफ से


सलीम अख्तर सिद्दीकी
वह शहर का एक ऐसा पॉश इलाका था, जहां पर कई नामी पब्लिक स्कूल थे। बढ़ती गर्मी के बीच उस इलाके से गुजर रहा था, तो प्यास की वजह से गला सूखने लगा। मैंने पानी की तलाश में इधर-उधर निगाह दौड़ाई, लेकिन उस कंक्रीट के जंगल में कहीं हैंडपंप तक नहीं नजर आया। मैं एक दुकान पर पानी की बोतल लेने के लिए रुका। बोतल लेकर उसे खोला और मुंह से लगाया ही था कि दुकान के सामने पांच-छह मोटर साइकिलें आकर रुकीं। सभी धड़धड़ाते अंदाज में दुकान में घुसे। दुकान काफी बड़ी थी, जहां बैठने के लिए कुर्सियां मेज लगी हुई थी। छात्र नामी पब्लिक स्कूल के छात्र थे। उस स्कूल में अपने बच्चों का दाखिला दिलाने के लिए ‘दीवानगी’ थी। स्कूल का रिजल्ट शतप्रतिशत रहत था। इसकी वजह यह थी कि वह सिर्फ टेलेंटिड छात्रों का दाखिला ही लेता था। पढ़ाई में कमजोर बच्चों के लिए वहां कोई जगह नहीं थी। गरीब बच्चे वहां पढ़ नहीं सकते थे, क्योंकि वहां के खर्च उठाना उनके बस की बात नहीं थी। यानी उस स्कूल में इतनी काबिलियत नहीं थी कि वह पढ़ाई में कमजोर बच्चों को किसी काबिल बना सके। अमीर लोग स्कूल के दावों की जांच किए बगैर स्कूल संचालक की हर शर्त पूरी करते थे। एक होड़ थी और अभिजात्य वर्ग उसमें शामिल था।
बहरहाल, जो छात्र बाइक पर आए थे, उनकी की उम्र से लगता था कि वे 11वीं या 12वीं के छात्र लग रहे होंगे। दुकानदार को जैसे पता था कि उन्हें क्या चाहिए। छात्रों के कुछ कहने से पहले ही दुकानदार ने महंगी सिगरेट का एक पैकेट उनकी ओर बढ़ा दिया। सभी ने अपने-अपने लिए पैकेट में से एक-एक सिगरेट निकाली। एक छात्र ने बारी-बारी से सभी की सिगरेट सुलगाई। एक छात्र ऐसा भी था, जो शायद सिगरेट नहीं पीता था। उसका हाथ खाली देखकर एक छात्र ने कहा, ‘अबे! यह क्यों सिगरेट नहीं पी रहा है?’ दूसरे छात्र ने सिगरेट न पीने वाले छात्र का मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘तू जानता नहीं, यह अपने स्कूल में ‘भाई साहब’ के नाम से मशहूर है।’ सभी ने ठहाका लगाया। लड़का झेंप गया। तभी एक छात्र अपनी सिगरेट लेकर आगे बढ़ा, ‘आज इसका ‘बपतिस्मा’ करते हैं।’ इतना कहकर उसने सिगरेट उसके मुंह से लगा दी। छात्र ने नानुकर की तो एक छात्र बोला, ‘अबे! नखरे मत कर। तेरा बपतिस्मा हो जाएगा, तो आज सभी को कोल्ड ड्रिंक मेरी तरफ से।’ यह प्रस्ताव सुनकर सभी उससे सिगरेट में कश लगाने की जिद करने लगे। उस छात्र ने थोड़े अनमने ढंग से सिगरेट में दो-तीन कश लगाए और खांसता हुआ बाहर चला गया। सभी छात्रों ने जोरदार तरीके से ‘हुर्रे’ बोला। कोल्ड ड्रिंक की बोतलें खुलने लगीं। वह छात्र दोबारा दुकान में घुसा। अब उसने खुद एक छात्र के हाथ से सिगरेट लेकर कश लगाए। तभी छात्रों में से एक की आवाज आई, ‘यह तो बहुत जल्दी सैट हो गया। इसके बपतिस्मा की खुशी में आज शाम की बीयर मेरी तरफ से।’ दुकान में बीयर पिलाने की बात करने वाले छात्र के पक्ष में नारे लगने लगे। जरा सोचिए, इनमें हमारे-तुम्हारे बच्चे तो नहीं हैं?

2 comments:

  1. वाकई सोचने को विवश करती है आपकी यह पोस्ट...

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  2. बहुत सही व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

    BHARTIY NARI
    PLEASE VISIT .

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