Sunday, March 17, 2013

छपास रोग से पीड़ित

सलीम अख्तर सिद्दीकी
शहर का एक ऐसा चौराहा, जहां पर अक्सर ही धरने-प्रदर्शन होते रहते थे। आज भी एक ऐसा संगठन जनसंख्या को लेकर प्रदर्शन कर रहा था, जिसे छपास रोग से पीड़ित लोगों का संगठन कहा जाता था। मैं उस चौराहे से गुजर रहा था, तो प्रदर्शन में मेरे एक परिचित ने मुझे आवाज देकर बुला लिया था। उस संगठन का अखबारों में बहुत नाम था। रोज ही किसी न किसी समस्या को लेकर वह सड़कों पर प्रदर्शन करता रहता था। सुना गया था कि उसके अध्यक्ष की अखबारों में अच्छी घुसपैठ थी, जिसकी वजह से उसे अखबारों में प्रमुखता से जगह मिल जाती थी। संगठन में गिनती के लोग थी। बमुश्किल आठ-दस। आज भी इतने ही लोग थे। उन्होंने अपनी शर्ट उतारी हुई थी। वे उल्टे लेटे हुए थे। उनकी पीठ पर बढ़ती जनसंख्या को लेकर कुछ स्लोगन लिखे थे। आते-जाते लोग उन्हें देखते और मुस्कुराकर आगे बढ़ जाते। प्रदर्शन चलते हुए अभी आधा घंटा हुआ था कि अध्यक्ष महोदय की बैचेनी बढ़ने लगी। धूप में तेजी आने लगी थी। थोड़ी देर बाद वहां कुछ मोटर साइकिलें आकर रुकीं। प्रदर्शनकारियों में जैसे जान-सी पड़ गई। वे प्रेस फोटोग्राफर थे। सभी प्रदर्शनकारी अलर्ट हो गए। फोटोग्राफर उन्हें जैसा आदेश दे रहे थे, वे वैसा ही कर रहे थे। चंद मिनटों का यह कार्यक्रम खत्म हुआ। एक प्रदर्शनकारी ने प्रेस विज्ञप्ति बांटी। अब प्रदर्शनकारी तितर-बितर से हो गए। कुछ मोबाइल पर बतियाने लगे। कोई फोन पर बस थोड़ी देर में पहुंचने का संदेश दे रहा था,  कोई नौकर से दुकान खोलकर सफाई करने का आदेश दे रहा था। इसी बीच एक बार फिर दो मोटर साइकिल वहां आकर रुकीं। इधर-उधर हुए प्रदर्शनकारियों में हड़कंप मचा। वे जल्दी-जल्दी फिर एक जगह जुट गए। अबकी बार प्रदर्शनकारी ज्यादा खुश थे, क्योंकि आने वाले एक लोकल चैनल के पत्रकार थे। अध्यक्ष महोदय सतर्क हो गए। वह फौरन कैमरे के सामने आए। पत्रकार ने उनके सामने माइक किया। अध्यक्ष जोर से जोर से जनसंख्या वृद्धि के खिलाफ बोलने लगे। सभी प्रदर्शनकारी कोशिश कर रहे थे कि वे भी कैमरे की जद में आ जाएं। अध्यक्ष महोदय ने अपनी बात खत्म की। प्रदर्शन खत्म हो गया। सभी अपने-अपने वाहन की ओर बढ़ गए।

1 comment:

  1. महामारी है-
    मारामारी है

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