सलीम अख्तर सिद्दीकी
सुबह के लगभग सात बजे थे। मैं अभी सोकर नहीं उठा था। दरवाजे पर दस्तक हुई। बाहर निकल कर देखा, तो मेरे मोहल्ले के कुछ ‘मौअजिज’ लोग खड़े थे। उनमें से कुछ हज कर आए थे और कुछ जाने की तैयारी में थे। कुछ ऐसे भी थे, जो कई साल से इस्लाम की दावत दे रहे थे और इस काम के लिए दुनियाभर में घूमते थे। उन्होंने मुझसे दरियाफ्त किया कि मोहल्ले की कुछ समस्याओं के लिए इलाके के पार्षद के यहां जाना है। पार्षद दलित हैं तथा हमारे घर से कुछ ही दूरी पर उनका मकान है। सुबह-सुबह जाने का मकसद यही था कि वह घर पर ही मिल जाएंगे। सभी पार्षद के घर पहुंचे। उन्होंने बड़ी गर्मजोशी से सबका इस्तकबाल किया। बैठे हुए थोड़ी ही समय हुआ कि एक छोटी बच्ची गिलास में पानी लेकर हाजिर हुई। सभी ने एक-एक करके पानी के लिए मना कर दिया। अकेले मैंने ही पानी के गिलास की ओर हाथ बढ़ाया। पानी पीते हुए मेरी नजर अपने एक साथी पर पड़ गई। वह मुझे अजीब नजरों से देख रहे थे, जैसे कह रहे हों कि ‘यह क्या कर रहे हो।’ मैं उनकी नजरों को समझने की कोशिश कर ही रहा था कि एक टेÑ में चाय, नमकीन और बिस्कुट आ गए। पार्षद ने सभी से चाय लेने का आग्रह किया। लेकिन, सभी ने कोई न कोई बहाना बना इंकार कर दिया। पार्षद के चेहरे पर व्यंग्यात्मक भाव आए। पार्षद ने मेरी ओर देखा। मैंने ट्रे से चाय का कप उठा लिया। बाकी चाय के कप ट्रे में रखे रहे। किसी ने नमकीन और बिस्कुट की ओर भी हाथ नहीं बढ़ाया। पार्षद ने संबंधित समस्याएं सुनीं और उन्हें दूर करने का आश्वासन दिया। थोड़ी देर बाद पार्षद से चलने की आज्ञा मांगी, तो उन्होंने कहा, ‘मैं भी आपसे कुछ कहना चाहता हूं।’ सभी ने उनकी ओर सवालिया नजरों से देखा। पार्षद ने कहना शुरू किया, ‘जिस धर्म से आप हैं, मैंने उसका थोड़ा-बहुत अध्ययन किया है। मुझे हजरत मुहम्मद साहब की वह बात बहुत अच्छी लगती है, जब उन्होंने एक हब्शी गुलाम को खरीदकर उस समय गले लगाया था, जब कोई उनके पास जाना भी नहीं चाहता था। वह गुलाम हजरत बिलाल थे। मेरा यही अनुरोध है कि कम से कम इस्लाम के बुनियादी उसूलों पर समाज की कुरीतियों का बोझ डालकर उन्हें दबाइए मत।’ किसी के पास कोई जवाब नहीं था। बात में पता चला कि उनमें से कई को यही पता नहीं था कि हजरत बिलाल कौन थे?
सुबह के लगभग सात बजे थे। मैं अभी सोकर नहीं उठा था। दरवाजे पर दस्तक हुई। बाहर निकल कर देखा, तो मेरे मोहल्ले के कुछ ‘मौअजिज’ लोग खड़े थे। उनमें से कुछ हज कर आए थे और कुछ जाने की तैयारी में थे। कुछ ऐसे भी थे, जो कई साल से इस्लाम की दावत दे रहे थे और इस काम के लिए दुनियाभर में घूमते थे। उन्होंने मुझसे दरियाफ्त किया कि मोहल्ले की कुछ समस्याओं के लिए इलाके के पार्षद के यहां जाना है। पार्षद दलित हैं तथा हमारे घर से कुछ ही दूरी पर उनका मकान है। सुबह-सुबह जाने का मकसद यही था कि वह घर पर ही मिल जाएंगे। सभी पार्षद के घर पहुंचे। उन्होंने बड़ी गर्मजोशी से सबका इस्तकबाल किया। बैठे हुए थोड़ी ही समय हुआ कि एक छोटी बच्ची गिलास में पानी लेकर हाजिर हुई। सभी ने एक-एक करके पानी के लिए मना कर दिया। अकेले मैंने ही पानी के गिलास की ओर हाथ बढ़ाया। पानी पीते हुए मेरी नजर अपने एक साथी पर पड़ गई। वह मुझे अजीब नजरों से देख रहे थे, जैसे कह रहे हों कि ‘यह क्या कर रहे हो।’ मैं उनकी नजरों को समझने की कोशिश कर ही रहा था कि एक टेÑ में चाय, नमकीन और बिस्कुट आ गए। पार्षद ने सभी से चाय लेने का आग्रह किया। लेकिन, सभी ने कोई न कोई बहाना बना इंकार कर दिया। पार्षद के चेहरे पर व्यंग्यात्मक भाव आए। पार्षद ने मेरी ओर देखा। मैंने ट्रे से चाय का कप उठा लिया। बाकी चाय के कप ट्रे में रखे रहे। किसी ने नमकीन और बिस्कुट की ओर भी हाथ नहीं बढ़ाया। पार्षद ने संबंधित समस्याएं सुनीं और उन्हें दूर करने का आश्वासन दिया। थोड़ी देर बाद पार्षद से चलने की आज्ञा मांगी, तो उन्होंने कहा, ‘मैं भी आपसे कुछ कहना चाहता हूं।’ सभी ने उनकी ओर सवालिया नजरों से देखा। पार्षद ने कहना शुरू किया, ‘जिस धर्म से आप हैं, मैंने उसका थोड़ा-बहुत अध्ययन किया है। मुझे हजरत मुहम्मद साहब की वह बात बहुत अच्छी लगती है, जब उन्होंने एक हब्शी गुलाम को खरीदकर उस समय गले लगाया था, जब कोई उनके पास जाना भी नहीं चाहता था। वह गुलाम हजरत बिलाल थे। मेरा यही अनुरोध है कि कम से कम इस्लाम के बुनियादी उसूलों पर समाज की कुरीतियों का बोझ डालकर उन्हें दबाइए मत।’ किसी के पास कोई जवाब नहीं था। बात में पता चला कि उनमें से कई को यही पता नहीं था कि हजरत बिलाल कौन थे?
कम से कम इस्लाम के बुनियादी उसूलों पर समाज की कुरीतियों का बोझ डालकर उन्हें दबाइए मत।
ReplyDeleteबहुत खूब |
achchha lagta hai aapke vikassheel vicharon ko padhna .sarthak abhivyakti.
ReplyDeleteधर्म का दिखावा करने वालों को धर्म की जानकारी कहाँ से होगी भला? उनका मकसद तो खुद को धार्मिक दिखाना भर है... अगर हम खुद ही उसूलों पर चलने लगे तो धर्म की दावत की ज़रूरत ही पेश नहीं आएगी।
ReplyDeleteसलीम सर अगर आप इन मुद्दो पर लोगो को बढ़ चढ़ कर आइना दीखाने की कोशिश करेंगे तो आपका भी यही हाल होगा जो मेरा अक्सर होता हे पढ़े य बहस sikander hayat
ReplyDeleteApril 16,2013 at 12:59 PM IST
आवाज़ केसे उठाय सर ? आम मुस्लिम अपनी आस्था को लेकर बेहद सेंसेटिव होता है उसकी इस सेन्स्टिविटी का कुछ लोग गलत फायदा उठाते है जो उनके खिलाफ आवाज़ उठाय तो य फोरन '' देखो देखो य इस्लाम के खिलाफ बोल रहा है '' कहने लगते है इससे आम मुस्लिम उत्टेज़ित हो जाता है और कोई सार्थक बहस नही हो पाती है मे उधारण दे सकता हु हाल ही मे एक भ्रष्ट करोडपति के यहा फार्म हॉउस मे शादी मे एकतरफ ड़ी जे पर डांस हो रहा था दूसरी तरफ लोगो को हमारे धर्मगरन्थ की प्रतिया भी दी जा रही थी ( वो भी अंगेरज़ी मे ? ) फ़र्ज़ कीजिये मे वहा होता इसका विरोध करता तो मे ही जूते खाता की देखो देखो य लोगो को धर्मग्रंथ दिये जाने का विरोध कर रहा है . जबकि मे विरोध कर रहा हु आपके बईमानी के पेसा का पेसे से पेदा हुई रंगीनियो का चलो य सब भी करो- लेकिन खुद को खास धार्मिक भी दिखाने का ढोंग क्यो ? वहा जाने कितने दीन के ' ठेकेदार ' भी चिकन टिक्का खाने मे मशगूल थे आएसए हज़ारो उधारण देख और सुन पढ रखे है (sikander hayat को जवाब )- smma59@gmail.com
April 16,2013 at 01:05 PM IST
आपको लोगो को धर्मग्रंथ दिये जाने का विरोध नहीं करना था बल्कि ड़ी जे पर डांस का विरोध करना चाहिए | उलटी गंगा क्यों बहाते हैं जनाब
(smma59@gmail.com को जवाब )- sikander hayat
April 16,2013 at 01:19 PM IST
सर सर सर मेने ना तो लोगो को धर्मग्रंथ दिये जाने का विरोध किया है और ना ही चाहे किसी को भी बुरी लगे य बात की मे 'ड़ी जे ' डांस संगीत आदि के पीछे भी लॅट लेकर भागने वाले तालिबानो मे से नही हु मे तो इस बात का कड़ा कड़ा और सख्त विरोध करता हु की आपने शादी मे दोनो काम एक साथ क्यो किये ? क्या जरूरत थी ? आप या तो केवल ड़ी जे बज़ाते या फिर बहुत सादगी से शादी करते और जो पेसे बचते उससे गरीब मुस्लिम लड़कियॉ की शादी कराते और सभी शादियो मे ( सादगी से होने वाले ) मे लोगो को धर्मग्रन्थ की प्रतिया भी देते तब य सबसे बढिया बात होती लेकिन अफसोस आएसा बहुत कम हो रहा है उसी की तरफ सबका ध्यान दिला रहे हैsikander hayat को जवाब )- smma59@gmail.com
April 16,2013 at 01:22 PM IST
यही तो आपकी खुसूसियत है | आप धर्म ग्रन्थ को नापसंद करते हैं ड़ी जे ' डांस संगीत को नहीं | इस्लाम ड़ी जे ' डांस संगीत को न पसंद करता है | अब ख्याल अपना अपना पसंद अपनी अपनी | मुसलमान तो वही पसंद करेगा जो अल्लाह को पसंद है और वही न पसंद करेगा जो अल्लाह को न पसंद है | आपकी बात और है |
सलीम सर बड़ी बड़ी बाते करना और आताम्निरिक्षण न करना की जिद के कारण ही पूरी मुस्लिम दुनिया में कलेश पड़ गये हे और देश दुनिया को हम छोड़ ही दे फिलहाल हम अपने चारो तरफ ही देखे तो हर चोथे मुस्लिम घर में कलेश तनाव खिचाव भी बढ़ ही रहे हे हर तीसरे चोथे घर में भाई भाई के झगडे पड़ोस पड़ोस के झगडे रिश्तेदारों के झगडे सास बहु ननद के झगडे जायदाद के झगडे आदि मिलेंगे .चेरिटी हमारे समाज में न के बराबर दिखती हे चेरिटी से बहुत ज्यादा उत्साह हम धर्मपर्चार और धर्म्परिवेर्तन के लिए दिखाते हे यही कारण हे की इतनी बड़ी अरब शेखो की पेसे वाली दुनिया में आपको 1 बिल गेट्स या वारेन बफे नहीं मिलेगा जो अब पूरी तरह चेरिटी पर उतारू हो एक हमारी मुमानी बड़े पब्लिक स्कूल से रिटायर हुई हे बच्चे विदेशो में सेट हे तो फ्री हे पैसा भी हे पुरे समय अब फेसबुक पर धर्म्पर्चार में जुटी रहती हे अब ज़ाहिर हे अगर में उनसे कहु की धर्म्पर्चार के साथ साथ समय निकाल कर गरीब मुस्लिम बच्चो को ही सही पढ़ाइये गरीब मुस्लिमो की ही सही मदद कीजिये तो य जिमेदारी नहीं लेगी ज्यादा चू चपड करूँगा तो मुझ पर नास्तिक होने का इलज़ाम ठोक देगी करे तो क्या करे सर ?
ReplyDeleteसलीम सर एक हमारी कजिन सिस्टर हे रियाद में रहती हे लोगो का कहना हे की परचार के लिए उन्हें पैसा भी मिलने लगा हे फेसबुक पर हमारे यहाँ की किशोर युवा लडकियों पर बुर्के परदे हिजाब को कहती रहती हे बहुत दिनों से मुझे भी फेसबुक पर बुला रही हे मुझे उनकी गतिविधियों से कोई भी आपत्ति नहीं हे लेकिन सर अगर में उनसे य सवाल पूछ लू की उनके अपने यूरोप में नौकरी करने वाले छोटे भाई के लिए पिछले 6 सालो में जो 36 लडकिया देखि गयी उनमे से 1 भी लड़की परदे बुर्के और हिजाब वाली क्यों नहीं थी ? सब की सब पढ़ी लिखी समार्ट और और बुर्के का नामो निशान भी न रखने वाली ही क्यों थी ? अब उनके भाई की शादी जिस लड़की से हुई वो अपने जींस टी शेर्ट वाले फोटो फेस बुक पर लगा रही हे और हर जगह अकेली और अपनी मर्ज़ी से आती जाती हे अब फ़र्ज़ कीजिये में अपनी सिस्टर के सामने य बात रखु तो ? जवाब वही होगा जो ऊपर पहले कमेंट में हे
ReplyDeleteपाठको जेसा की मेने पहले भी कई बार कहा हे की एक सेकुलर समाजवादी भारतीय मुस्लिम से ज्यादा कठिन काम इस दुनिया में किसी का भी नहीं हे मेने अपने इसी असली एक्लोते नाम और सिकंदर हयात1789 इकलोती मेल आई डी के साथ विभिन ब्लोग्स जहा एक तरफ इस्लाम और मुस्लिमो के बचाव में अनगिनत बहस की हे वही गलत लोगो के खिलाफ भी जम कर आवाज़ उठाई हे जिससे नाराज़ होकर आप देख सकते हे की आम मुस्लिम के बीच मेरी गुडविल को ख़त्म करने के लिए नवभारत ब्लॉग पर अनवर जमाल सर के ब्लॉग पर मुझ पर किस कदर घिनोने आरोप लगाय जा रहे हे मज़ेदार बात ये हे की न जाने कितने बजरंगी मुझ पर’ सॉफ्ट जिहादी ‘ ‘इस्लामिक सुप्रियोरिटी ‘ की भावना से ग्रस्त होने का आरोप भी लगा चुके हे
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