Saturday, February 2, 2013

आम रहो, खास मत बनो


सलीम अख्तर सिद्दीकी
शहर के चौराहे पर भयंकर टैÑफिक जाम था। मैं भी उस जाम में फंसा था। हाइवे की ओर से एक ट्रक आकर मेरे पास रुका। ट्रकों के लिए नो एंट्री का समय था। मेरे बराबर में एक  युवा भी मोटर साइकिल पर बैठा जाम खुलने का इंतजार कर रहा था। युवा ने ट्रक ड्राइवर से कहा, ‘नो एंट्री में कहां घुसे जा रहे हो?’ ड्राइवर ने उसकी बात को नजरअंदाज कर दिया। चंद लम्हों बाद ही एक ट्रैफिक पुलिस कांस्टेबल ड्राइवर की खिड़की की बराबर में पहुंचा। उसने ड्राइवर की ओर देखा। खिड़की से मुट्ठीबंद एक हाथ बाहर निकला। कांस्टेबल ने हाथ बढ़ाया। मुट्ठी खुली और कांस्टेबल की मुट्ठी गर्म हो गई। यह देखकर मेरे बराबर में खड़े युवा के माथे पर बल पड़ गए। जैसे ही कांस्टेबल युवा के पास पहुंचा, उसने कांस्टेबल को पकड़कर पूछा, ‘यह क्या किया तुमने। रिश्वत लेकर ट्रक नो एंट्री में जाने दे रहे हो?’ कांस्टेबल धूर्त हंसी हंसा और बोला, ‘किसने लिए हैं पैसे?’ युवा हैरान रह गया। उसने गुस्से में कांस्टेबल का हाथ पकड़ा और ट्रक के पास पहुंचकर ड्राइवर से कहा, ‘तुमने इसे अभी पैसे दिए हैं या नहीं?’ ड्राइवर निर्लिप्त भाव से बोला, ‘नहीं, हमने तो कोई पैसा इनको नहीं दिया।’ युवा का पारा और ज्यादा गर्म हो गया। वह कांस्टेबल से उलझ गया। बात तू-तू-मैं-मैं तक पहुंची। कांस्टेबल ने युवा का कालर पकड़ा और चौराहे पर बने चेकपोस्ट पर ले गया। इतनी देर में ट्रैफिक सरकने लगा था। जिज्ञासावश मैं भी पीछे-पीछे हो लिया। देखते ही देखते वहां अच्छे खासे लोग जमा हो गए। चेकपोस्ट पर पहुंचकर कांस्टेबल ने युवा को एक थप्पड़ रसीद करते हुए कहा, ‘अब मैं तुझे बताऊंगा एक पुलिस वाले से उलझने का नतीजा क्या होता है।’ अब युवा थोड़ा घबराया। मैंने हस्तक्षेप करते हुए कांस्टेबल से कहा, ‘गलती तुम्हारी, ऊपर से इसी पर क्यों इल्जाम लगा रहे हो।’ कांस्टेबल ने मुझे घूरकर देखा। अभी वह कुछ कहना ही चाहता था कि हूटर बजाती एक गाड़ी वहां आकर रुकी। वह एसपी ट्रैफिक की गाड़ी थी। एसपी गाड़ी से उतरा और लोगों को हड़काते हुए बोला, ‘हटिए सब यहां से, क्या तमाशा लगा रखा है।’ एसपी ने कांस्टेबल और युवा से मुखातिब होकर पूछा, ‘क्या मामला है, क्यों उलझ रहे हो?’ युवा ने सब कुछ बताया। कांस्टेबल ने प्रतिवाद किया तो मैं बोल पड़ा, ‘गलती कांस्टेबल की है, मैं चश्मदीद हूं।’ एसपी ने मुझे घूरा- ‘आप कौन हैं?’ मैंने कहा, ‘सर मैं तो आम शहरी हूं।’ एसपी ने तल्ख लहजे में कहा, ‘आम हो तो आम ही बने रहो, खास बनने की कोशिश मत करो, चलिए काम देखिए अपना।’ मैंने पीछे मुड़ा तो देखा। फिर से जाम लगने लगा था। एसपी की गाड़ी का हूटर बजने लगा था। कुछ कांस्टेबल एसपी की गाड़ी को रास्ता देने के लिए जाम खुलवाने की मशक्कत करने लगे थे।

1 comment:

  1. ye sachchai hai aur isi liye main bhi yahi kahti hoon ki ye bharatvasi jab bhrashtachar ke liye anna ke sath judte hain to kis muhn se judte hain jabki apne kam nikalvane ke liye ye yahi sab kuchh karte hain .सार्थक प्रस्तुति बेटी न जन्म ले यहाँ कहना ही पड़ गया . आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?

    ReplyDelete