सलीम अख्तर सिद्दीकी
मैं पिछले दिनों एक ब्लॉग पर गया और वहां जो कुछ लिखा था, उसकी आलोचना कर दी। उस टिप्पणी को प्रकाशित नहीं किया गया। हां इतना जरूर हुआ कि उस ब्लॉगर की मॉडरेटर साहिबा न जरूर टिप्पणी की कि यहां पर तुम जैसे मुल्लों, आतंकी और गुंडों के लिए कोई जगह नहीं है। मैं चौंका। मैंने उस ब्लॉग को ध्यानपूर्वक पढ़ा तो पाया कि वह एक ऐसी हिंदुत्ववादी महिला का ब्लॉग है, जो अपने आप में सिमटी है और जिसे लगता है कि किसी मुसलमान की टिप्पणी प्रकाशित कर दी, तो ब्लॉग का शुद्धिकरण कराना पड़ सकता है। मैंने इसके बाद कई बाद उनकी पोस्ट पर टिप्पणीयिां कीं, सकारात्मक भी कीं और नकारात्मक भी, लेकिन सभी हजम कर गर्इं। मेरा कहना यह है कि जब तक आप दूसरों की नहीं सुनेंगे? अपने आप मेें सिमटे रहेंगे? सभी खिड़की दरवाजे बंद करके बैठ जाएंगे, तो दूसरों को समझने का मौका कैसे मिलेगा। मुझे सबसे ज्यादा ऐतराज यह है कि मुसलमान होने का मतलब आतंकी और गुंडा मान लिया गया है। मेरा ब्लॉग पढ़कर कम से कम मुझे सांप्रदायिक तो नहीं ठहरा सकता। और यदि सांप्रदायिक और फासिस्ट ताकतों के खिलाफ लिखना सांप्रदायिक, आतंकी और काफिर होना है, तो मैं कहूंगा कि मैं ऐसा करता रहूंगा। अपने खोल में सिमटे रहने की समस्या अकेली उस महिला ब्लॉगर की नहीं है, जो अपने आपको ‘आयरन लेडी’ कहने का दंभ पालती है। मुझे तो लगा कि वह एक कमजोर महिला है, जो अपने लिखे पर की गई टिप्पणी को भी बर्दाश्त नहीं कर पाती।
मैं पिछले दिनों एक ब्लॉग पर गया और वहां जो कुछ लिखा था, उसकी आलोचना कर दी। उस टिप्पणी को प्रकाशित नहीं किया गया। हां इतना जरूर हुआ कि उस ब्लॉगर की मॉडरेटर साहिबा न जरूर टिप्पणी की कि यहां पर तुम जैसे मुल्लों, आतंकी और गुंडों के लिए कोई जगह नहीं है। मैं चौंका। मैंने उस ब्लॉग को ध्यानपूर्वक पढ़ा तो पाया कि वह एक ऐसी हिंदुत्ववादी महिला का ब्लॉग है, जो अपने आप में सिमटी है और जिसे लगता है कि किसी मुसलमान की टिप्पणी प्रकाशित कर दी, तो ब्लॉग का शुद्धिकरण कराना पड़ सकता है। मैंने इसके बाद कई बाद उनकी पोस्ट पर टिप्पणीयिां कीं, सकारात्मक भी कीं और नकारात्मक भी, लेकिन सभी हजम कर गर्इं। मेरा कहना यह है कि जब तक आप दूसरों की नहीं सुनेंगे? अपने आप मेें सिमटे रहेंगे? सभी खिड़की दरवाजे बंद करके बैठ जाएंगे, तो दूसरों को समझने का मौका कैसे मिलेगा। मुझे सबसे ज्यादा ऐतराज यह है कि मुसलमान होने का मतलब आतंकी और गुंडा मान लिया गया है। मेरा ब्लॉग पढ़कर कम से कम मुझे सांप्रदायिक तो नहीं ठहरा सकता। और यदि सांप्रदायिक और फासिस्ट ताकतों के खिलाफ लिखना सांप्रदायिक, आतंकी और काफिर होना है, तो मैं कहूंगा कि मैं ऐसा करता रहूंगा। अपने खोल में सिमटे रहने की समस्या अकेली उस महिला ब्लॉगर की नहीं है, जो अपने आपको ‘आयरन लेडी’ कहने का दंभ पालती है। मुझे तो लगा कि वह एक कमजोर महिला है, जो अपने लिखे पर की गई टिप्पणी को भी बर्दाश्त नहीं कर पाती।
सलीम जी ,
ReplyDeleteआप ही नहीं वे किसी को भी जो कोई भी उनकी विचारधारा को गलत ठहराता है बर्दाश्त नहीं कर पाती और यूँ ही हाथ पैर मारने लगती हैं .अच्छा तो यही है की उनसे हमारी तरह ही दूरी बनाकर रखी जाये .बाकि आप खुद भी समझदार हैं . क्या हैदराबाद आतंकी हमला भारत की पक्षपात भरी नीति का परिणाम है ?नहीं ये ईर्ष्या की कार्यवाही . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
असहिष्णु लोगों के चिट्ठों की ओर मुड कर भी देखने की जरुरत नहीं है. सहिष्णु चिट्ठों की यहां कोई कमी नहीं है.
ReplyDeleteसस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??
http://www.Sarathi.info
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ReplyDeleteहर इंसान एक दुसरे से अलहदा अपना एक किरदार रखता है . आकड़ो और तर्कों के साथ बहस करना और सिर्फ भावनात्मक रूप से पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर अपनी बात रखना दो अलग अलग बाते है .
ReplyDeleteआप और मोहतरमा ब्लॉग जगत के पुराने पुरोधा हो . आपसी सामंजस्य बना रहना शायद ज्यादा अच्छा रहेगा , ...कैसे होगा ये आप दोनों खुद समझदार है .
Vishvnath
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ReplyDeleteपर सलीम भाई आपको जरूरत क्या थी ब्लॉगजगत से बहिष्कृत एक विक्षिप्त के ठिकाने तक जाने की ?
ReplyDeleteदूसरे को समझने की कोशिश जारी रहनी चाहिए-
ReplyDeleteअपने को समझना आसान होगा -
रचना का अर्थ सब जगह
ReplyDeleteसर्जना से नहीं होता
बुराईयों की रचना को भी
कहा रचना ही जाएगा।
पर उससे रचा जाना ही
इंसान को बचाएगा।
कमाल हो गया सलीम सर इस दफे हमारा कमेंट पिछले 24 घाण्टे से आपके ब्लॉग पर जिन्दा हे नहीं तो पिछले दोनों कमेंट्स दिसम्बर और जनवरी के दोनों ही 1 घाण्टे के ही थे की शहीद हो गये में बड़ा हेरान था की सलीम सर जेसा लोकतान्त्रिक और उदारवादी लेखक भला ऐसा क्यों करेंगे ? हम तो यहाँ वहा आपका परचार भी करते हे फिर जब आपने पिछले दिनों आयरन लेडी का ----- लिखा तब मेरी फिर हिम्मत हुई डरते डरते फिर आये सर कही ऐसा तो नहीं हे की आपके ब्लॉग की '' चाबी '' किसी और के पास भी हो जिसने हमारे कमेंट की हत्या की हो ?
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