सलीम अख्तर सिद्दीकी
इस दिसंबर की वह सर्द शाम थी। हाइवे पर सर्द हवा के झोंकों ने हाथ पैर सुन्न कर दिए थे। ऐसे में गरम चाय की शिद्दत से जरूरत महसूस हो रही थी। मैंने चाय की आस में एक सामान्य से ढाबे के सामने मोटरसाइकिल रोक दी। वहां चाय बन रही थी। मैं चाय का आर्डर देकर अंदर चला गया। वहां पहले से ही चार युवा बैठे थे। मैंने ढाबे का जायजा लेने के लिए नजरें चारों और घुमाई। कई जगह बड़े-बड़े शब्दों में लिखा था, ‘यहां शराब पीना सख्त मना है।’ मेरी नजर उन चारों युवाओं पर टिक गई। वे बातचीत में मशगूल थे और उनकी बातों से जाहिर हो रहा था कि वह मेडिकल कॉलेज के छात्र थे यानी भावी डॉक्टर। सभी ने ब्रांडेड जूते और कपड़े पहने हुए थे। सबके हाथों में सिगरेट थी। सिगरेट का पैकेट मेज पर पड़ा हुआ था, जो काफी महंगा ब्रांड था। उनमें से एक युवा बोला, ‘बड़ी देर कर दी अभी लड़का ‘सामान’ लेकर नहीं आया?’ उसने अभी बात खत्म ही की थी कि लगभग 14-15 का एक लड़का आया और कागज में लिपटी कोई चीज उन्हें थमा दी। उन्होंने उसे खोला। वह महंगी शराब की बोतल थी। लड़का उनके सामने चार डिस्पोजल गिलास और नमकीन के पैकेट रख गया। थोड़ी देर बाद सभ्य और सुसंस्कृत नजर आने वाले युवा असभ्य नजर आने लगे थे। तभी एक युवा की फोन की घंटी बजी। उसने स्क्रीन पर नजर डाली और साथियों से बोला, ’कोई न बोले, डैडी का फोन है।’ इतना कहकर उसने फोन पिक किया। उसने अपने लहजे का संयत करते हुए नमस्ते बोला और हां हूं करने लगा। बाकी तीनों की नजरें उसके चेहरे पर जम गर्इं। उस युवा ने बोलना शुरू किया, ‘कोई परेशानी नहीं है डैडी। बस कुछ किताबें खरीदनी हैं और सर्दियों के लिए कपड़े खरीदने हैं।‘ दूसरी तरफ से कुछ कहा गया। युवा फिर बोला, यही कोई 10-12 हजार में काम हो जाएगा। उधर से फिर कुछ कहा गया और उसने फोन बंद कर दिया। उसका एक साथी बोल पड़ा, ‘तुझे कौनसी किताबें खरीदनी है बे और कपड़े तो तेरे पास बहुत हैं।’ वह बोला, अबे पैसे मंगाने का कोई तो बहाना चाहिए था। आगे सर्दी का मौसम है। यह काम तो अब रोज ही करना पड़ेगा। चारों ठहाका मारकर हंस पड़े। पैग बनाने का सिलसिला फिर शुरू हो गया। एक युवा बोला, ‘यार तेरे डैडी बढ़िया आदमी हैं, जितने पैसे मांगता है, आ जाते हैं। मेरे डैडी तो हजार सवाल पूछते हैं और जितने मांगता हूं, उससे आधे भेजते हैं।’ एक युवा बोला, ‘अबे तेरे डैडी परचून की दुकान करते हैं, हिसाब-किताब से चलते होंगे। इसके डैडी जिस पोस्ट पर हैं, वहां तो लोग पैसे लेकर लाइन में खड़े रहते हैं। इसका फर्क तो पड़ता ही है।’ एक और ठहाका गूंजता है और ठहाकों के बीच ही एक आवाज और आती है, ‘हराम की कमाई को ठिकाने के लिए भी तो कोई होना ही चाहिए।’ चारों आवाज की दिशा में देखते हैं। मेरी नजर भी उस ओर उठती है। वह आवाज उस लड़के की थी, जिसने उन्हें बोतल लाकर दी थी। मेरी चाय खत्म हो चुकी थी। बाहर भी बारिश बंद हो चुकी थी।
मो. 09045582472
इस दिसंबर की वह सर्द शाम थी। हाइवे पर सर्द हवा के झोंकों ने हाथ पैर सुन्न कर दिए थे। ऐसे में गरम चाय की शिद्दत से जरूरत महसूस हो रही थी। मैंने चाय की आस में एक सामान्य से ढाबे के सामने मोटरसाइकिल रोक दी। वहां चाय बन रही थी। मैं चाय का आर्डर देकर अंदर चला गया। वहां पहले से ही चार युवा बैठे थे। मैंने ढाबे का जायजा लेने के लिए नजरें चारों और घुमाई। कई जगह बड़े-बड़े शब्दों में लिखा था, ‘यहां शराब पीना सख्त मना है।’ मेरी नजर उन चारों युवाओं पर टिक गई। वे बातचीत में मशगूल थे और उनकी बातों से जाहिर हो रहा था कि वह मेडिकल कॉलेज के छात्र थे यानी भावी डॉक्टर। सभी ने ब्रांडेड जूते और कपड़े पहने हुए थे। सबके हाथों में सिगरेट थी। सिगरेट का पैकेट मेज पर पड़ा हुआ था, जो काफी महंगा ब्रांड था। उनमें से एक युवा बोला, ‘बड़ी देर कर दी अभी लड़का ‘सामान’ लेकर नहीं आया?’ उसने अभी बात खत्म ही की थी कि लगभग 14-15 का एक लड़का आया और कागज में लिपटी कोई चीज उन्हें थमा दी। उन्होंने उसे खोला। वह महंगी शराब की बोतल थी। लड़का उनके सामने चार डिस्पोजल गिलास और नमकीन के पैकेट रख गया। थोड़ी देर बाद सभ्य और सुसंस्कृत नजर आने वाले युवा असभ्य नजर आने लगे थे। तभी एक युवा की फोन की घंटी बजी। उसने स्क्रीन पर नजर डाली और साथियों से बोला, ’कोई न बोले, डैडी का फोन है।’ इतना कहकर उसने फोन पिक किया। उसने अपने लहजे का संयत करते हुए नमस्ते बोला और हां हूं करने लगा। बाकी तीनों की नजरें उसके चेहरे पर जम गर्इं। उस युवा ने बोलना शुरू किया, ‘कोई परेशानी नहीं है डैडी। बस कुछ किताबें खरीदनी हैं और सर्दियों के लिए कपड़े खरीदने हैं।‘ दूसरी तरफ से कुछ कहा गया। युवा फिर बोला, यही कोई 10-12 हजार में काम हो जाएगा। उधर से फिर कुछ कहा गया और उसने फोन बंद कर दिया। उसका एक साथी बोल पड़ा, ‘तुझे कौनसी किताबें खरीदनी है बे और कपड़े तो तेरे पास बहुत हैं।’ वह बोला, अबे पैसे मंगाने का कोई तो बहाना चाहिए था। आगे सर्दी का मौसम है। यह काम तो अब रोज ही करना पड़ेगा। चारों ठहाका मारकर हंस पड़े। पैग बनाने का सिलसिला फिर शुरू हो गया। एक युवा बोला, ‘यार तेरे डैडी बढ़िया आदमी हैं, जितने पैसे मांगता है, आ जाते हैं। मेरे डैडी तो हजार सवाल पूछते हैं और जितने मांगता हूं, उससे आधे भेजते हैं।’ एक युवा बोला, ‘अबे तेरे डैडी परचून की दुकान करते हैं, हिसाब-किताब से चलते होंगे। इसके डैडी जिस पोस्ट पर हैं, वहां तो लोग पैसे लेकर लाइन में खड़े रहते हैं। इसका फर्क तो पड़ता ही है।’ एक और ठहाका गूंजता है और ठहाकों के बीच ही एक आवाज और आती है, ‘हराम की कमाई को ठिकाने के लिए भी तो कोई होना ही चाहिए।’ चारों आवाज की दिशा में देखते हैं। मेरी नजर भी उस ओर उठती है। वह आवाज उस लड़के की थी, जिसने उन्हें बोतल लाकर दी थी। मेरी चाय खत्म हो चुकी थी। बाहर भी बारिश बंद हो चुकी थी।
मो. 09045582472
कुछ अलग सी पोस्ट सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी
ReplyDeleteबेहतर लेखन !!
ReplyDeleteआकर्षक शब्दों में आपने वो लिख दिया जो कभी न कभी हर इंसान ने देखा होता है,,,,,आज की जेनेरेसन की असली हालत बयान करती है आपकी पोस्ट ,
ReplyDeleteमैंने भी कुछ लिखा है ,,,,कभी टाइम मिले तो पढियेगा
http://vishvnathdobhal.blogspot.in/2012/12/blog-post_13.html
Thanks
Vishvnath