Monday, August 27, 2012

अलिखित कानून


- सलीम अख्तर सिद्दीकी
मैं ऑफिस के बाहर ढाबे पर चाय पीने निकला था। ढाबे के सामने पड़ी खाट पर बैठा चाय की चुस्कियां ले ही रहा था कि सफेद रंग की एक मारुति वेन आकर रुकी। उसमें दो महिला और एक पुरुष कांस्टेबल बैठे हुए थे। वेन की पिछली सीट पर तीन महिलाएं बैठी थीं, जो हुलिए से निम्न वर्ग से लग रही थीं। तीनों की उम्र यही कोई 35-40 के बीच थी। एक महिला की गोद में लगभग तीन-चार साल का एक बच्चा था। तीनों पुलिसकर्मी बाहर निकले और ढाबे पर खाने वगैरह के बारे में पूछने में व्यस्त हो गए। तभी एक महिला कांस्टेबल को कुछ याद आया और उसने अपनी साथी को महिलाओं का ध्यान रखने का इशारा किया। दूसरी कांस्टेबल वेन के पास खड़ी हो गई। लगता था वे काफी दूर से सफर करते हुए आए थे, इसलिए उनके चेहरे पर थकान साफ दिखाई दे रही थी। वेन में बैठी महिलाओं के चेहरे कुछ ज्यादा ही मलिन थे। उनकी आंखों से पता चल रहा था कि वे बहुत देर तक रोती रही हैं। पुरुष कांस्टेबल ने महिलाओं से ऊंची आवाज में कहा, तुम्हें कुछ खाना-पीना हो तो आ जाओ। दो महिलाएं अनमने ढंग से वेन से उतरीं। उन्होंने तीसरी महिला से कहा तो उसने मना करके अपने दोनों हाथ कार की खिड़की पर रखकर उन पर सिर रख दिया। वे सभी खाने में व्यस्त हो गए। दोनों महिलाओं के पास एक महिला कांस्टेबल मुस्तैदी से बैठी हुई थी। थोड़ी देर की चुप्पी के बाद कांस्टेबल ने एक महिला से पूछा, अभी वक्त है, बता दो कि तुम्हारा भाई उस लड़की को कहां लेकर गया है। महिला ने उकताकर कहा, कितनी बार तो बताया, हमें पता होता तो बता न देते। उसका तो तभी से मोबाइल भी ना मिल रहा है। दूसरी महिला बोल पड़ी, हमारे तो सारे र्मद उन्हें ही ढूंढते फिर रहे हैं। पंद्रह दिन से काम-धंधा भी बंद है। पुलिस के डर से घर में सो भी नहीं सकते। तीनों फिर चुप हो गए। थोड़ी देर बाद एक महिला बोल पड़ी, यह तो बताइए, हमारी क्या गलती है। लड़की को लेकर हमारा भाई गया है। उसका हमें कुछ पता नहीं है, हमें हिरासत में क्यों लिया है पुलिस ने? मैं तो अपनी ससुराल में थी। यह कोई कानून थोड़े ही है कि गुनाह कोई करे और सजा दूसरों की दी जाए। महिला कांस्टेबल को शायद उन महिलाओं से सहानुभूति थी। उसने कहा, हां, यह कोई कानून नहीं है, लेकिन पुलिस के पास कुछ अलिखित कानून भी होते हैं। जब तुम्हारे भाई को पता चलेगा कि उसकी बहनें पुलिस की हिरासत में हैं, तो उसे शायद अपने किए पर पछतावा होगा और वह वापस आ जाएगा। वह आ जाएगा, तो तुम्हें छोड़ दिया जाएगा। उस महिला का बच्चा जोर-जोर से रोने लगा था। किसी तरीके से चुप कराने के बावजूद उसका रोना बंद नहीं हुआ तो महिला उसे गले लगाकर खुद भी सुबकने लगी। महिला कांस्टेबल ने उसकी बांह पकड़कर उसे वेन की ओर चलने का इशारा किया। वह सुबकते हुए वेन की तरफ बढ़ गई। बच्चा अभी भी लगातार रोए जा रहा था।

1 comment:

  1. अलिखित कानूनों की तो बात ही छोड़ दीजिए ,पुलिस लिखित कानूनों का कितना पालन करा पाता है तथा स्वयं कितना पालन करती है ,यह किसी से छिपा नहीं है । आपने इस लधुकथा के माध्यम से न केवल पुलिस को मनोविज्ञान को पकड ा है बल्कि एक ऐसी कुरीति पर प्रहार भी किया है जिसे हम कुरीति मानते ही नहीं हैं - रोहित कौशिक

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