Sunday, August 5, 2012

सख्त चेकिंग

सलीम अख्तर सिद्दीकी
रात का बेहद सर्द मौसम था। उत्तर प्रदेश रोडवेज की बस तेजी से अपनी मंजिल की ओर गामजन थी। बस के सभी शीशे बंद थे और सवारियां गर्म कपड़ों में लिपटी ऊंघ रही थीं। बस की सबसे पीछे वाली सीट पर लगभग 25-26 साल का अति निम्न वर्ग का एक युवा बैठा बार-बार पहलू बदल रहा था। किसी सुराख से लगातार हवा आ रही थी, जो संभवत: उस युवा को परेशान कर रही थी। उसके तन पर इतने गर्म कपड़े नहीं थे जो सर्द हवा का मुकाबला कर सकें। बस चलते-चलते रुकी। जो लोग ऊंघ रहे थे, उनमें से कुछ लोगों ने आंखें मिचमिचाते हुए यह देखने के लिए झांका कि बस कहां और क्यों रुकी है। वह पुलिस चैकपोस्ट था। बस में दो सिपाही चढ़े। दोनों के हाथ में पॉवरफुल टॉर्च थीं। एक ने टॉर्च की रोशनी सरसरी तौर पर सवारियों पर डाली। एक सीट पर बैठे दो संभ्रात किस्म के युवाओं के हाथ में बीयर के कैन थे। सिपाही ने उन्हें देखकर हल्की की मुस्कुराहट के साथ सबसे पीछे वाली सीट पर टॉर्च की रोशनी डाली। टॉर्च की रोशनी उस अति निम्न मध्यम वर्गीय युवा पर टिक गई, जो सर्द हवा से बैचेन होकर पहलू बदल रहा था। सिपाही उस युवा के पास पहुंचा और बोला, 'उठ। युवा मशीन अंदाज में उठ गया। सिपाही ने उसकी हर तरीके से तलाशी ली। फिर उससे पूछा, तेरा सामान कहां है?  युवक ने एक गठरी की ओर इशारा कर दिया, जो उसके पैरों के पास रखी थी। सिपाही ने गठरी को डंडा मारकर चैक किया। सिपाही ने वापस मुड़ते-मुड़ते पूछा, नाम क्या है तेरा? युवक ने नाम बताया, तो सिपाही एक बार फिर उसकी तरफ मुड़ गया और बोला, क्या है इस गठरी में? युवक सहमते हुए बोला, साहब हमारे कपड़े-लत्ते हैं। सिपाही ने उसे गठरी लेकर बस से उतरने का आदेश दिया। युवक भारी कदमों से गठरी लेकर बस नीचे उतर गया। सवारियों के चेहरों पर सवाल उभर आया। थोड़ी देर में युवक अपनी गठरी समेत फिर अपनी सीट पर आकर बैठ गया। एक आदमी, जो खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था, ने चेहरा बाहर निकालकर पूछा, क्या बात है दीवानजी ज्यादा ही सख्त चेकिंग कर रहे हैं आज? दीवानजी से लापरवाही से कहा, कुछ नहीं अभी दो घंटे पहले दिल्ली में बम धमाका हुआ है, उसको देखते हुआ चेकिंग थोड़ी सख्त है।

2 comments:

  1. पुलिसवालों के खोखले आदर्शवाद की अच्छी खबर ली है आपने । - रोहित कौशिक

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  2. गरीब, बेसहारा और निर्बल लोगों पर ही तो चलती है इनकी दबंगई......... बढिया है।

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