Wednesday, August 29, 2012

जिद और बहस के बीच फंसी संसद


सलीम अख्तर सिद्दीकी
भाजपा की जिद के चलते कोयला ब्लॉक आवंटन पर बहस संसद में नहीं, मीडिया के जरिए चल रही है। आखिर जो कुछ प्रेस कांफ्रेंसों के जरिए कहा जा रहा है, उसे संसद में शालीन तरीके से भी कहा जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हो रहा है, जो फिर संसद किसलिए है? तमाम आरोपों के बाद भी सत्ता पक्ष झुकता नजर नहीं आ रहा है, तो भाजपा को जिद छोड़कर बीच का रास्ता निकालकर संसद बहाल करने में सहयोग देना चाहिए था। ऐसा नहीं हो रहा है, तो इसका कारण यह है कि भाजपा कोयला ब्लॉक आवंटन पर कैग रिपोर्ट पर राजनीति करके अपनी धूमिल होती छवि को निखारने में जुट गई है। संकेत मिल रहे हैं कि सरकार लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव ला सकती है। यदि सरकार ने ऐसा किया, तो फिलहाल ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता कि सरकार विश्वास मत हासिल नहीं कर पाएगी। ऐसा करते समय सरकार तब डरती, जब उसके सहयोगी दल भी इस मसले पर सरकार से इतर राय रखते। अभी तक संप्रग के किसी सहयोगी दल का ऐसा कोई बयान नहीं आया है, जो सरकार को परेशानी में डाल सके। सरकार के सांसदों का विश्वास हासिल करने में कामयाब होने के बाद भाजपा की किरकिरी ही होगी। यह तब है, जब भाजपा के कुछ सहयोगी दल भी इस मामले पर संसद में बहस चाहते हैं। क्या भाजपा राजग की एकता भी दांव लगाकर संसद चलने नहीं देना चाहती? यह सवाल पहले दिन से ही उठ रहा है कि जब कोल ब्लॉक आवंटन का फैसला भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की सहमति से हुआ है, तो भाजपा पर कोयले की कालिख न लगे, ऐसा कैसे हो सकता है? जाहिर है कि इस मसले संप्रग के साथ ही भाजपा भी जवाबदेह है। क्या यह समझा जाए कि प्रधानमंत्री के इस्तीफे की जिद पर अड़कर संसद ने चलने देना भाजपा अपनी जवाबदेही से बचने की रणनीति पर काम कर रही है? जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंत्रालय द्वारा लिए गए फैसलों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है, तो इसके बाद होना तो यही चाहिए था कि संसद में उनकी बात सुनी जाती। संसद सुचारु रूप से चलती रहे, इसकी जिम्मेदारी जितनी अन्य राजनीतिक दलों की है, उतनी ही भाजपा की भी है। दुर्भाग्य से वह अपने राजनीतिक धर्म का पालन नहीं कर रही है। इसमें कोई शक नहीं कि कैग रिपोर्ट को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। जिस तरह से एक के बाद एक भ्रष्टाचार के नए-नए रिकॉर्ड बन रहे हैं, उसे देखते हुए कोयला ब्लॉक आवंटन में ऐसा कुछ तो है, जिसे सरकार छिपाने की कोशिश कर रही है। पूरा देश सच जानने को आतुर है, लेकिन जनता की सर्वोच्च पंचायत ही ठप पड़ी है, तो सच कैसे सामने आएगा? प्रधानमंत्री इस्तीफा देंगे नहीं और भाजपा अपनी जिद छोड़ेगी नहीं, तो बहस का वक्त निकलता चला जाएगा, जो न तो सरकार के हित में होगा और न ही भाजपा के। जिद और बहस के बीच फंसी संसद को निकालने की जिम्मेदारी सभी की है, लेकिन भाजपा की कुछ ज्यादा जिम्मेदारी बनती है, क्योंकि शुरुआत उसी ने की थी।

2 comments:

  1. जिद तो अपनी है... लेकिन देश अपना नहीं है... वर्ना यह हाल ना होता....

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  2. आपने सही लिखा सलीम भाई । दरअसल हमाम में सभी नंगे हैं । यह दुख की बात है कि भाजपा लोकतान्त्रिक तरीका नहीं अपना रही है - रोहित कौशिक

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