Saturday, June 16, 2012

रोटी के लिए


-सलीम अख्तर सिद्दीकी
दिन के तीन बजे का वक्त था। बेतहाशा गर्मी थी। शहर की एक दुकान, जो कुल्फी, लस्सी और ठंडी रबड़ी के लिए मशहूर थी, पर ग्राहकों की रेल-पेल थी। तीन आदमी ग्राहकों को उनकी मन-पसंद चीजें तेजी से सर्व कर रहे थे। तीनों ही दुकान के मालिक थे। एक 12-13 साल का लड़का ग्राहकों की जूठी प्लेटें उठाने का काम कर रहा था। जैसे ही दुकान से कुछ भीड़ कम हुई, लड़के की नजर बार-बार एक मेज पर रखे टिफिन की ओर जाने लगी। मालिकों में से एक उसकी हरकत देख रहा था। लड़के ने जब एक और निगाह टिफिन पर डाली, तो मालिक ने उसे घूरकर देखा और बोला, ‘तेरे पेट में क्या ज्यादा आग लग रही है। अभी थोड़ी देर में खा लेना खाना।’
अब समझ आया कि लड़का क्यों बार-बार टिफिन की ओर देख रहा था। शायद उसे बहुत ज्यादा भूख लगी थी। मालिक की झिड़की सुनकर वह फिर काम में लग गया। उसने हमें कुल्फी सर्व की। उस समय हम तीन दोस्तों के अलावा एक ग्राहक और दुकान में मौजूद था। भीड़ कम होने और शायद यह सोचकर कि अभी हमें कुल्फी खाने में थोड़ा वक्त लगेगा, उसने बेसब्री से टिफिन उठाया और एक कोने में बैठकर उसे खोल लिया। भूख की अधिकता या यह सोचकर कि जल्दी से खाना खाकर काम पर लग जाऊंगा, उसने दो-तीन निवाले तेजी से मुंह में डाले, तो वे गले में अटक गए। उसे जोर का धसका लगा। उसने पानी की तलाश में इधर-उधर नजरें दौड़ार्इं, तो उसकी नजर एक दुकान मालिक से मिल गई। दुकान मालिक उस पर चिल्लाया, ‘सब्र नहीं हुआ न तुझसे, अब मर ...। मैं नहीं दूंगा तुझे पानी। हरामखोर काम होता नहीं, खाता है ढेर सारा। खाना भी एक घंटे से कम में नहीं खाता।’ लड़के का चेहरा वितृष्णा की वजह से बिगड़ गया। उसकी आंखों में आंसू छलक आए। उसने गुस्से और मायूसी से रोटी टिफिन के डिब्बे में पटकी और खड़ा हो गया। दुकान मालिक लगातार उसे गालियां दे रहा था। मेरे एक साथी से नहीं रह गया। उसने दुकान मालिक को झिड़कते हुए कहा, ‘हद कर दी तुमने, क्या वह खाना भी न खाए। वह यहां दिन-रात खटता है और तुम्हारी गालियां भी सुनता है, रोटी के लिए ही तो वह सब कुछ सहता है। कम से कम उसे रोटी तो खाने दो।’ मेरे साथी ने लड़के से खाना खाने के लिए कहा, लेकिन लड़के ने उसे ऐसी नजरों से देखा, जैसे कह रहा हो कि तुम क्या रोज ही मुझे खाना खिलाने आओगे? लड़के ने हमारे सामने से खाली हुई प्लेटें उठार्इं और चुपचाप चला गया।

No comments:

Post a Comment