-सलीम अख्तर सिद्दीकी
शहर से लगती हुई निम्न मध्यमवर्गीय लोगों की एक बस्ती। यह कभी गांव हुआ करता था। वक्त के साथ नगर निगम के क्षेत्र में आ गया, तो शहर का हिस्सा बन गया। इसमें एक समुदाय के लोगों की बहुतयात थी, जो धार्मिक रूप से तो अपने आप को एक कहते थे, लेकिन कुछ लोग सामाजिक रूप से अपने को बड़ा मानते थे, जिसका उन्हें अहंकार भी था। साफ शब्दों में कहा जाए, तो अगड़ों-पिछड़ों में बंटे हुए थे।
आधुनिक तालीम से लगभग दूर इस बस्ती में धार्मिक तालीम पर ज्यादा जोर था। जो शिक्षित थे, वे भी संकीर्ण सोच से बाहर नहीं निकल पाए थे। बस्ती के कुछ लोग धार्मिक प्रवचन देने के लिए दूर-दराज के शहरों में जाते थे और दूसरों को भी जाने के लिए प्रेरित करते थे। धार्मिक प्रवचनों में इस बात पर ज्यादा जोर रहता था कि सब इंसान एक ही ईश्वर की औलाद हैं। कोई छोटा-बड़ा नहीं है। किसी पर किसी को अधिकार प्राप्त नहीं है। कुछ इसी तरह के प्रवचन देने के लिए कॉलोनी में एक धार्मिक आयोजन करने की तैयारी की जा रही थी। सुबह से लोगों से उसमें शिरकत करने की विनती की जा रही थी। कुछ नामी-गिरामी धार्मिक नेताओं के आने की भी खबर थी। शाम को सात बजे कार्यक्रम शुरू हुआ। मंच पर स्थानीय और बाहर से आए धार्मिक लोग बैठे थे। सबके कहने का सार यही था कि ऊंच-नीच की हमारे धर्म में कोई जगह नहीं है। जात-पात के आधार पर भी भेदभाव नहीं है। सब कंधे से कंधा मिलाकर इबादत करते हैं। बादशाह के बराबर में फकीर भी खड़ा होकर इबादत कर सकता है। धार्मिक नेता बारी-बारी से अपनी बात कह रहे थे।
प्रवचन के बीच पास की एक गली में हल्का-सा शोर उभरा। लाऊडस्पीकर की आवाज में शोर दब गया, जिससे पता नहीं चला कि क्या मामला है। प्रवचन जारी थे। अबकी बार शोर कुछ ज्यादा तेजी से उभरा, जिससे सभा में बैठे हुए लोगों का ध्यान उस ओर गया। अभी कोई कुछ समझ भी नहीं पाया था कि मारपीट और गाली-गलौच की आवाजें साफ सुनाई देने लगीं। सभी आवाज की दिशा में दौड़ पडेÞ। जब लोग वहां पहुंचे, तो दो पक्ष आमने-सामने थे। एक-दूसरे से निबट लेने की धमकियों के बीच पत्थरबाजी भी हो रही थी। बच्चों की लड़ाई में बस्ती के अगड़े और पिछड़े भिड़ गए थे। धार्मिक प्रवचन में भाग लेने वाले अगड़े और पिछड़े समाज के लोग भी अपने-अपने लोगों के पक्ष में आ गए थे।
धार्मिक प्रवचन का असर एक झटके में खत्म हो गया था। दूर कहीं इबादत के लिए धार्मिक स्थल पर आने का ऐलान किया जा रहा था, लेकिन इससे बेखबर लोग एक-दूसरे से भिड़े हुए थे। थोड़ी देर में पुलिस आ गई। उसने डंडे फटकार कर लोगों को भगाया। कुछ को हिरासत में लिया। बस्ती में सन्नाटा पसर गया था। एक धर्म, एक ईश्वर और इंसानों के बीच समानता की बातें करने वाले लोग एक-दूसरे के सामने आने से कतराने लगे थे।
शहर से लगती हुई निम्न मध्यमवर्गीय लोगों की एक बस्ती। यह कभी गांव हुआ करता था। वक्त के साथ नगर निगम के क्षेत्र में आ गया, तो शहर का हिस्सा बन गया। इसमें एक समुदाय के लोगों की बहुतयात थी, जो धार्मिक रूप से तो अपने आप को एक कहते थे, लेकिन कुछ लोग सामाजिक रूप से अपने को बड़ा मानते थे, जिसका उन्हें अहंकार भी था। साफ शब्दों में कहा जाए, तो अगड़ों-पिछड़ों में बंटे हुए थे।
आधुनिक तालीम से लगभग दूर इस बस्ती में धार्मिक तालीम पर ज्यादा जोर था। जो शिक्षित थे, वे भी संकीर्ण सोच से बाहर नहीं निकल पाए थे। बस्ती के कुछ लोग धार्मिक प्रवचन देने के लिए दूर-दराज के शहरों में जाते थे और दूसरों को भी जाने के लिए प्रेरित करते थे। धार्मिक प्रवचनों में इस बात पर ज्यादा जोर रहता था कि सब इंसान एक ही ईश्वर की औलाद हैं। कोई छोटा-बड़ा नहीं है। किसी पर किसी को अधिकार प्राप्त नहीं है। कुछ इसी तरह के प्रवचन देने के लिए कॉलोनी में एक धार्मिक आयोजन करने की तैयारी की जा रही थी। सुबह से लोगों से उसमें शिरकत करने की विनती की जा रही थी। कुछ नामी-गिरामी धार्मिक नेताओं के आने की भी खबर थी। शाम को सात बजे कार्यक्रम शुरू हुआ। मंच पर स्थानीय और बाहर से आए धार्मिक लोग बैठे थे। सबके कहने का सार यही था कि ऊंच-नीच की हमारे धर्म में कोई जगह नहीं है। जात-पात के आधार पर भी भेदभाव नहीं है। सब कंधे से कंधा मिलाकर इबादत करते हैं। बादशाह के बराबर में फकीर भी खड़ा होकर इबादत कर सकता है। धार्मिक नेता बारी-बारी से अपनी बात कह रहे थे।
प्रवचन के बीच पास की एक गली में हल्का-सा शोर उभरा। लाऊडस्पीकर की आवाज में शोर दब गया, जिससे पता नहीं चला कि क्या मामला है। प्रवचन जारी थे। अबकी बार शोर कुछ ज्यादा तेजी से उभरा, जिससे सभा में बैठे हुए लोगों का ध्यान उस ओर गया। अभी कोई कुछ समझ भी नहीं पाया था कि मारपीट और गाली-गलौच की आवाजें साफ सुनाई देने लगीं। सभी आवाज की दिशा में दौड़ पडेÞ। जब लोग वहां पहुंचे, तो दो पक्ष आमने-सामने थे। एक-दूसरे से निबट लेने की धमकियों के बीच पत्थरबाजी भी हो रही थी। बच्चों की लड़ाई में बस्ती के अगड़े और पिछड़े भिड़ गए थे। धार्मिक प्रवचन में भाग लेने वाले अगड़े और पिछड़े समाज के लोग भी अपने-अपने लोगों के पक्ष में आ गए थे।
धार्मिक प्रवचन का असर एक झटके में खत्म हो गया था। दूर कहीं इबादत के लिए धार्मिक स्थल पर आने का ऐलान किया जा रहा था, लेकिन इससे बेखबर लोग एक-दूसरे से भिड़े हुए थे। थोड़ी देर में पुलिस आ गई। उसने डंडे फटकार कर लोगों को भगाया। कुछ को हिरासत में लिया। बस्ती में सन्नाटा पसर गया था। एक धर्म, एक ईश्वर और इंसानों के बीच समानता की बातें करने वाले लोग एक-दूसरे के सामने आने से कतराने लगे थे।
सही कहा सर गेर मुस्लिमो के सामने ये शो करने की हमें लत पड़ गई हे की मानो हम सब एक unit हे एक परिवार हे न कोई अमीर न कोई गरीब हे न कोई छोटा हे न कोई बड़ा लेकिन ये बात सिर्फ थ्योरी तक ही सीमित हे हम ये बात प्रेक्टिकल में ये कही भी दीखाने में नाकाम रहे हे मानसिकता हमारी ये हो गयी हे की इस विषय पर परवचन हमेशा करते रहो इससे हमें ऐसा अहसास होता हे मानो हमने कोई पुण्य का काम कर दीया हे मुस्लिम नेताओ रहनुमाओ को देखे तो हमेशा यु बाते करते हे मानो मुस्लिम पूंजीपति और मुस्लिम मजदूर मुस्लिम डोक्टर और मुस्लिम वार्ड बॉय -कम पाउडर, मुस्लिम white कॉलर और मुस्लिम ब्लू कॉलर मुस्लिम जमीन मालिक और बताई दार दोनों के हित दोनों की बात चाहते जरूरते सोच बिलकुल ही एक सामान हे लेकिन क्या ऐसा प्रेक्टिकल में हे ? दुनिया में क्या हाल हे सर ये इस विडियो में देखिये ( हसन निसार अबाउट मुस्लिम उम्माह ) इस विषय पर कुछ बोलो तो हाल ये हे की पढ़े लिखे भी फ़ौरन मुस्लिम विरोधी होने का इल्जाम लगाने लगते हे और इन इल्जाम लगाने वालो का हाल ये हे की किसी काम के सिलसिले में किसी गरीब मुस्लिम को चवन्नी की छूट देते हुए या किसी तथाकथित छोटी जाती के मुस्लिम को अपनी बगल में बठाते हुए या शादीया करते हुए हमने तो आज तक नहीं देखा. अब होगा ये की गरीब और कमजोर मुस्लिम इस हालात में दोहरे शोषण का शिकार होगा क्योकि उसके अपने तो अपने हे नहीं और गेरो के साथ भी हर जगह पंगे ही पंगे हे उसका भी नजला उस पर गिरेगा .
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