Sunday, November 15, 2009

'लविंग जेहाद' : अफसाना और हकीकत

सलीम अख्तर सिद्दीकी
मेरी पिछली संघ परिवार का नया शिगूफा है 'लविंग जेहाद' पर कुछ लोगों ने तीखे कमेंट किए हैं। उनके कमेंट पूर्वाग्रह से ग्रस्त लगते हैं। दरअसल, ये वो लोग हैं, जिन्हें नागपुर से घड़कर भेजा गया कोई भी अफसाना हकीकत लगता है। 'लविंग जेहाद' का अफसाना भी इसी श्रेणी में आता है। हालांकि कुछ लोगों ने मेरी पोस्ट का समर्थन भी किया है, लेकिन उनकी संख्या बेहद कम रही। बहरहाल, मुझे इस बारे में यह कहना है कि वे लोग जो, नागपुर के अफसाने को हकीकत की तरह देखते हैं, उन्हें अपना नजरिया तथ्यों की रोशनी में बदलना चाहिए। कई लोगों ने कहा कि केरल हाईकोर्ट ने 'लविंग जेहाद' की जांच के आदेश दिए हैं। उन लोगों के लिए ताजा खबर यह है कि केरल सीआईडी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में कहा है कि राज्य में लविंग जेहाद ेका कोई वजदू नहीं है।
मैं यह कह चुका हूं कि अन्तरधार्मिक प्रेम और शादियों की वजह क्या है। ऐसा भी नहीं है कि ऐसा कभी हुआ ही नहीं। यह अलग बात है कि मीडिया के फैलाव और संघ परिवार की हायतौबा के चलते यह ज्यादा लगने लगना है। यह सिलसिला तभी से चल रहा है, जब से मुस्लिम भारत में आए। मुगल बादशाह अकबर ने जोधाबाई से शादी की थी। फिल्मों मे अन्तरधार्मिक शादियों को सिलसिला भी पुराना है। नर्गिस ने सुनील दत्त से शादी की। किशोर कुमार ने मधुबाला से शादी की, जो मुस्लिम थीं । सुनील शेट्टी की पत्नि मुस्लिम हैंं। इसी तरह शाहरुख और आमिर खान ने हिन्दु लड़कियों से शादी की। मशहूर फिल्म निर्देशक फरहा खान और तब्बू की बह फरहा ने हिन्दू से शादी की है। बॉलीवुड की यह कुछ मिसालें हैं। यदि बात की जाए राजनीति की तो इंदिरा गांधी ने एक पारसी फिरोज से शादी की थी। राजीव गांधी ने ईसाई से शादी की। उमर अब्दुल्ला ने एक हिन्दू परिवार में शादी की तो सचिन पायलट की पत्नि उमर अब्दुल्ला की बहन हैं। किसी का बेटा यूरोप के किसी देश से गोरी मेम से शादी करके आ जाता है। मुसलमानों में सुन्नी और शियों में शादियां आमतौर पर नहीं होती हैं। लेकिन लखनउ जैसे शहर में जहां शियों की संख्या ज्यादा है, सुन्नी और शियों की शादियां भी होती हैं। यह सब कहने का मतलब यह है कि जब दो बड़े धार्मिक समूह, मत अथवा जातियां एक साथ रहेंगी तो आपस में प्रेम भी होगा और शादियां भी होंगी। अब इसे लविंग जेहाद कहें या कुछ और कहें। यह भी सच है कि मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग में ऐसी शादियां अपवाद स्वरुप ही होती हैं। अपवाद स्वरुप शादियों पर इतनी हायतौबा मचाना ठीक नहीं है।
यहां मैं बहुत तल्ख बात कहना चाहूंगा कि धर्म, जाति और संस्कृति का ढिंढोरा पीटने वाले लोग खुद अपने बच्चों का कितना ध्यान रखते है ? धीरे-धीरे लड़कियों से सिर से दुपट्टा पहले गले में आया। थोड़े दिन बाद गले से भी गायब हो गया। भारतीय संस्कृति का प्रतीक सलवार सूट भी अपनी पहचान खो गया। उसकी जगह टाइट जींस और टॉप ने ले ली। कुछ दिन बाद जींस नाभि से नीचे आ गयी। टॉप थोड़ा और उंचा हो गया। इनमें उनकी लड़कियां भी शामिल हैं, जो सुबह-शाम शाखाओं में जाते हैं और भारतीय संस्कृति की दुहाई देकर रास्ते जाम करते हैं। उनकी लड़कियां भी कम नहीं हैं, जो इस्लाम के अलमबरदार बने फिरते हैं। आप इन लड़कियों के मां-बाप से ड्रेस के बारे में कहेंगे तो जवाब मिलेगा जमाने के साथ चलना पड़ता है। अब जब ऐसी ड्रेस होगी तो स्कूल-कालेजों के रास्ते में लड़कों का जमावड़ा भी होगा और छेड़छाड़ भी होगी। लड़कों के जमावड़े में हिन्दू भी होंगे और मुसलमान भी। कुछ मां-बाप कभी अपनी लड़कियों से यह भी नहीं पूछते कि महंगा मोबाइल कहां से आया ? मोबाइल का बिल कौन भरता है ? मंहगे कपड़े और गैजेट कहां से आते हैं ? आमतौर से देख लीजिए लड़कियों के कान पर हर समय मोबाइल लगा रहता है। पता नहीं इन लड़कियों के कौनसे इतने बड़े बिजनेस चल रहे हैं, जो उन्हें हर समय मोबाइल कान से लगाना पड़ता है ? यदि तथाकथित लविंग जेहाद को रोकना है या परिवार की इज्जत बरकरार रखनी है तो भारतीय संस्कृति का अनुसरण करना ही पड़ेगा। लेकिन दिक्क्त यह है कि 1991 से शुरु हुई आंधी 2009 में तूफान में बदल चुकी है। इसे रोकना मुमकिन नहीं है। अच्छा तो यही है कि अपने बच्चों को इस तूफान से बचाकर रखें। लविंग जेहाद का स्यापा पीटने से कुछ नहीं होने वाला है। अफसानों पर यकीन मत किजिए हकीकत का सामना करें।

10 comments:

  1. भैया इन जेहादियों के पीछे आपके प्रिय भाई पाकिस्तान डण्डा ले के पड़ गये हैं। अब अल्ला मियाँ से दुआ कीजिये कि भारत सरकार को भी ऐसी ही सद्बुद्धि दे।

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  2. आप जैसे लोगो के साथ एक ही समस्या है जिन लोगों के विचार आपको अच्छे नहीं लगे उन्हें संघी कह दो अरे पहले संघ के संपर्क में तो आओ और समझो कि संघ वैसा ही है क्या ? जैसा तुम्हे वामपंथियों व कांग्रेसियों ने बताया है या फिर किसी और तरह का |
    लव जेहाद के सारथी पर आप लेख http://sarathi.info/archives/2576 पढ़ लीजिए | वे इसाई है क्या उन्हें भी आप संघी कहेंगे ?
    हाँ आपकी इस बात से सहमत कि 'परिवार की इज्जत बरकरार रखनी है तो भारतीय संस्कृति का अनुसरण करना ही पड़ेगा।"

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  3. sanghyiaon ka ek hee agenda hai musalmanon ko galiyan do na inka koi dharm hai aur ne imman.

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  4. वन्दे मातरम
    वन्दे मातरम
    वन्दे मातरम
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    सलीम साहब, अगर हिन्दुस्तान के सभी मुसलमान तालिबानी कैम्पों में ट्रेनिंग ले चुके हैं तो हम भी नागपुर से आये हुए लग सकते हैं लेकिन आपको बता दें कि आज तक नागपुर तो दूर यहीं बगल के मोहल्ले में लगने वाली शाखा में भी आज तक कभी झाँकने भी नहीं गए हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं हैं कि हमने अपने आँख-कान बंद कर रखें है. देश-दुनियां में क्या हो रहा है उसे देखने-सुनने और समझने की ताकत है हममें, और इसके लिए किसी के दिए चश्मे की भी जरूरत नहीं है. आपके अफ़साने सुनाने से हकीकत नहीं बदल जायेगी..........
    जय हिंद

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  5. क्या इसको भी एकतरफा लेखन कहते है। अब देख लो! कौन एकतरफा टिप्पीणियां करता है।

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  6. ek baat puchani hai kuraan ma hai ki jab tak koi gar muslim ladki or ladka Islaam kabool na kar la tab tak gar muslimo se sadhi na karna. kya wo sadhi ka baad ladki or ladka ko murti pooja karne denga.?

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  7. 10th class ka muslim teacher ek din class ma kahta hai ki hindu choti chota=i ladki ko pasine magane ghar ghar bhajata hai. yah navraatro ka tayohaar ma kaha tha. kya unhae nahi mallom tha ki choti choti lakiyo ko devi manna jata hai.

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