सलीम अख्तर सिद्दीकी
पता नहीं हमारे सियासतदांओं को क्या हो गया है। इन्हें देखकर तो गिरगिट भी सोचता होगा कि ये तो मुझसे भी जल्दी और ज्यादा रंग बदलते हैं। फिरोजाबाद सीट हारते ही मुलायम सिंह ने अपने सखा कल्याण सिंह को दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर फैंक दिया। भाजपा और आरएसएस को पानी पी-पी कर कोसने वाले कल्याण सिंह को भी फौरन ही हिन्दुत्व और राममंदिर की याद आ गई। भाजपा और सपा राममंदिर आंदोलन की देन हैं। 1986 में शुरु हुए बाबरी मस्जिद-राममंदिर विवाद के चलते उत्तर प्रदेश में भयानक साम्प्रदायिक दंगों का दौर चला था। उस वक्त की कांगे्रस सरकार मुसलामनों की रक्षा करने में विफल रही थी। तब से उत्तर प्रदेश का मुसलमान कांग्रेस विरोधी हो गया था। उसी दौरान जनता दल में शामिल रहे मुलायम सिंह यादव मुसलानों के खैरख्वाह बनकर उभरे। मुसलमानों ने कांग्रेस के विकल्प के रुप में मुलायम सिंह यादव को सिर आंखों पर बैठा लिया। इधर भाजपा हिन्दुओं की सबसे बड़ी हितैषी बन कर उभरी। भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी एक दूसरे को ऑक्सीजन देने का काम करती रहीं। उत्तर प्रदेश में 1989 में जनता दल की सरकार थी। मुख्यमंत्री मुलायम सिह यादव थे। जब 30 अक्टूबर 1989 को तथाकथित उन्मादी कारसेवकों ने कार सेवा के नाम पर बाबरी मस्जिद पर धावा बोला तो मुलायम सिंह की सरकार ने कारसेवकों का प्रयास विफल कर दिया। इसके लिए सरकार को कारसेवकों पर गोली चलानी पड़ी। तभी से मुलायम सिंह भाजपाइयों के लिए 'मुल्ला मुलायम' हो गए। बस यहीं से उत्तर प्रदेश का मुसलमान मुलायम सिंह के पीछे लामबंद हो गया। 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद शहीद कर दी गयी। बाबरी मस्जिद को शहीद कराने में कांग्रेस को बराबर का भागीदार माना गया। मुसलमान कांग्रेस से बिल्कुल विमुख हो गए।
धीरे-धीरे राममंदिर-बाबरी मस्जिद का मुद्दा राख में तबदील होना आरम्भ हुआ तो भाजपा और सपा से भी लोगों का मोहभंग हुआ। मुलायम सिंह यादव अपने शासनकाल में मुसलमानों के लिए कुछ नहीं कर पाए। जब भी उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरियों की भर्ती खुली तभी यादवों ने ही अपनी झोली भरी। मुसलमानों की झोली हमेशा की तरह खाली रही। भाजपा जहां दिशाहीन हुई, वहीं सपा एक परिवार और अमर सिंह की बपौती बनकर रह गयी। भाजपा सुशासन देने में न सिर्फ विफल रही बल्कि उसमें वे सब बुराइयां आ गईं जो अन्य पार्टियों में मौजूद थीं। जिन लोगों ने सपा को खड़ा करने में अपना जीवन लगाया, उन्हें हाशिए पर डालकर 'सत्ता के दलाल' कहे जाने वाले अमर सिंह को तरजीह दी गयी। अमर सिंह के चक्कर में ही राज बब्बर पार्टी छोड़ गए। रही सही कसर कल्याण सिंह को पार्टी में लाकर पूरी कर दी गयी। पता नहीं मुलायम सिंह कल्याण सिंह को क्या सोचकर पार्टी में लाए थे। भाजपा नेताओं में कल्याण सिंह और नरेन्द्र मोदी को मुसलमान सबसे ज्यादा नापसंद करते हैं। कल्याण सिंह को लेकर आजम खान ने न सिर्फ बगावत की बल्कि सार्वजनिक तौर अमर सिंह पर जम कर बरसे। अब जो वह मुलायम सिंह को भी नहीं बख्शते हैं। इन सब बातों के चलते सपा और भाजपा का नाराज वोटर कांग्रेस की ओर चला गया।
सपा के ताबूत में आखिरी कील ठोंकने का काम मुलायम सिंह के परिवारवाद ने किया। स्वयं मुलायम सिंह यादव समेत उनके घर के चार सदस्य लोकसभा में हैं। एक भाई राज्य सभा में हैं। जैसे इतना ही काफी नहीं था। फिरोजाबाद उपचुनाव में उन्होंने अपनी बहु डिंपल को खड़ा कर दिया। उनकी इस हरकत से मुसलमानों को ही नहीं यादवों को भी यही लगा कि मुलायम सिंह पार्टी का इस्तेमाल सिर्फ अपने परिवार का स्वार्थ साधने में कर रहे हैं। मुसलमानों में कल्याण सिंह फैक्टर ने भी काम किया। कल्याण सिंह फैक्टर तो लोकसभा के चुनाव में भी था, लेकिन तब शायद मुलायम सिंह इसे अच्छी तरह से समझ नहीं पाए। सपा के फायर ब्रांड मुस्लिम चेहरे आजम खान की बगावत को भी मुलायम सिंह ने हल्के में लिया। उन्होंने आजम खान के मुकाबिल अबूआजमी को खड़ा करने की कोशिश की, जो नाकाम रही। यह तो मानना ही पड़ेगा कि आजम खान का अपना जनाधार है। आजम खान को भी पार्टी से निकालना मुलायम सिंह को कहीं न कहीं महंगा पड़ा है। रही बात कल्याण सिंह की तो वह भले ही यह कहते रहें हों कि वह भाजपा में वापस नहीं जाएंगे। लेकिन अन्ततः उनकी गति भाजपा में ही है। सपा से निकाले जाने के बाद कल्याण सिंह को हिन्दुत्व और राममंदिर की याद आ गयी है। लेकिन अगर मुलायम सिंह यह सोच रहे हैं कि कल्याण सिंह से पल्ला झाड़कर वे मुसलमानों के वोट हासिल कर लेंगे, वे गलत सोच रहे हैं। अब कल्याण सिंह भाजपा में जाएं या आजम खान की वापसी सपा में हो जाए, लेकिन उत्तर प्रदेश में भाजपा और सपा का फिर से पैर जमाना नामुमकिन ना सही बहुत मुश्किल जरुर है। क्योंकि राहुल गांधी जिस तरह से सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रहे हैं, उससे लगता है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की वापसी सुनिश्चित हो चुकी है।
क्या कहिए इन लोगो को अपने मतलब के लिए ये कुछ भी कर सकते हैं,बस ज़रूरत इस बात की हैकि अवाम की आँखें खुल जाएँ, ये नही तो कल कोई दूसरा आएगा बेवकूफ़ बनाने....
ReplyDeleteबेचारे मुलायम सिंह एक हारा हुआ योधा जो अपनो से भी हार गया . और हार की बौखलाहट मे ना जाने कितने उल्टे फ़ैसले लिये जा रहे है . ताबूत क तो पता नही लेकिन आख्ररी सांस तो ले ही रही है सपा
ReplyDeletesaleem bhaee...maaf kariyega....kaafi dino ke baad aapke blog par aana hua.....ek rajnitik post pad kae achcha laga
ReplyDeleteसारे ही नेता सुअर है, लेकिन जनता को चाहिये की वो अपने आप को वोट बेंक ना बनाने दे, चाहे हिन्दु हो या मुस्लिम अपना वोट उसे दे जो देश की बात करे, उसे अपना वोट मत दे जो जात पात, ओर धर्म की बात करे , मंदिर मस्जिद की बात करे उसे वोट की जगह चोट दो, इस काग्रेस ने आज तक दलितो का, मुस्लमानो का कोन सा भला किया, यह मुसलमान खुद सोचे, अब भारत की जनता को जागना चाहिये इन फ़ुट डालो नेताओ को मार भगाओ, ओर अपना देश बचाओ.....वरना हम आप्स मै लडते रहेगे बिल्लियो की तरह से ओर यह बंदर नमुना नेता हमारे हिस्से की रोटी मजे से खाते रहे गे.
ReplyDeleteआप ने बहुत सही लिखा.
धन्यवाद
हाय,अमर ये किया हो गया ? किंगमेकर से क्या बन गये,अपनी इज़्ज़त तो गँवाई पार्टी को भी ले डूबे, चलिए अब मायावती की बारी है.देख्न ना है की कब आती है माया को अक़ल,लेकिन इतना तो तय है इन लोगो का कुछ नही हो सकता अपना पेट तो इन्होने भर ही लिया है बाक़ी जाएँ भाड़ मैं
ReplyDeleteक्या बढ़िया राजनीतिक विशलेषण है, परिदृश्य कुछ ऐसे ही बनेगा। लेकिन देश की मुस्लिम दशा और दिशा क्या होगा, क्या ये ऐसे ही इधर से उधर, एक-दूसरे की हाथों की कठपूतली बनी नाचती रहेगी।
ReplyDeleteमुलायम सिंह यादव अपने शासनकाल में मुसलमानों के लिए कुछ नहीं कर पाए। जब भी उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरियों की भर्ती खुली तभी यादवों ने ही अपनी झोली भरी। मुसलमानों की झोली हमेशा की तरह खाली रही।
ReplyDeleteजब तक हम धर्म और जाति के नाम पर लामबंद होकर वोट देते रहेंगे हमारी झोलियाँ ऐसे ही खाली रहेगी |
अब तो मुसलमानों को मुलायम जैसे नेताओं के बारे में हकीकत समझ लेना चाहिए |