Sunday, November 8, 2009

वंदेमातरम्‌ की नहीं, रोटी की बात करें

सलीम अख्तर सिद्दीकी
जमीयत उलेमा हिन्द के तीसवें अधिवेशन में वंदेमातरम्‌ के गाने के खिलाफ फतवा क्या आया, भूचाल आ गया। सबसे पहले तो यह कि जब पहले से ही जमीयत का वंदेमातरम्‌ पर रुख साफ है तो इस मुद््‌दे को क्यों बार-बार हवा देकर भावनाएं भड़काने का काम किया जाता है ? वंदेमातरम्‌ गाना न गाना किसी की इच्छा पर निर्भर करता है। न तो इस पर किसी को न गाने का दबाव दिया जा सकता है और न ही जबरदस्ती गाने के लिए मजबूर किया जा सकता है। जमीयत और संघ परिवार बुनियादी इंसानी जरुरतों को नजरअंदाज करके ऐसे मुद्दों को हवा दे रहे हैं, जिनसे समाज में केवल नफरत ही फैल सकती है। वंदेमातरम्‌ गाने से न तो कोई देशभक्त बन सकता है और न ही ना गाने से देशद्रोही हो जाता है। वंदेमातरम्‌ गाने वाले देश में बम धमाके करके देशद्रोही होने का सबूत दे चुके हैं तो न गाने वाले देश के सम्मान के लिए जान भी न्योछावर करते रहे हैं। इसलिए वंदेमातरम्‌ को देशभक्ति से जोड़ कर देखने वाले अहमक हैं। क्या यह हैरत की बात नहीं है कि जमीयत उलेमा हिन्द के इजलास में इंसानी बुनियादी जरुरतों को नजरअंदाज किया गया। आज देश की गरीब ही नहीं निम्न मध्यम और मध्यम वर्ग कही जानी वाली जनता के सामने रोटी की गम्भीर समस्या पैदा हो गयी है। आटा, दाल, चीनी और दूध जैसी बुनियादी चीजों पर मंहगाई की मार है। आम आदमी त्राहि-त्राहि कर रहा है। जमीयत ने मंहगाई के खिलाफ अपना मुंह क्यों नहीं खोला ? संघ परिवार कभी भी अपने अधिवेशनों में रोटी की बात नहीं करता। उसे केवल हिन्दुत्व की चिंता रहती है। हिन्दुत्व भी वह, जिससे सिर्फ घ्‌णा ही फैलती है।
कहते हैं कि भूखे पेट तो भजन भी नहीं होता। क्या वंदेमातरम्‌ गाकर आदमी का पेट भर सकता है ? या न गाने से मुसलमानों की समस्याएं खत्म हो जाती हैं ? देश की प्रति वफादारी अपनी जगह है। लेकिन देश पर हूकुमत करने वाले लोगों की भी जिम्मेदारी है कि वह जनता को दो जून की रोटी मुहैया कराएं। अक्सर देखा गया है कि जब भी मंहगाई होती है तो कुछ राज्य सरकारें अपनी तरफ से सस्ती चीजें बेचने के लिए कुछ दुकानें लगाती हैं। क्या इतने मात्र से ही मंहगाई पर काबू पाया जा सकता है ? सवाल यह है कि देश की जनता को सरकार यह क्यों नहीं बताती कि चीनी 20 से 40 रुपए क्यों हो गयी है ? आटा क्यों 20 रुपए किलो बिकने लगता है और घी -तेल में क्यों रातों-रात आग लग जाती है ? आखिर कीमते बढ़ने की कुछ तो वजह होती है ? क्या सरकार जमाखोरों के आगे घुटने टेकने के लिए अलावा कुछ नहीं कर सकती ? क्या कानून का डंडा जमाखोरों और मुनाफाखोरों के लिए नहीं है ? क्या सरकार उस वक्त का इंतजार कर रही है, जब भूखी जनता दुकानों में लूटपाट शुरु कर देगी ? क्या आगरा की घटना इसकी शुरुआत मानी जाए ? खुदा न करे यदि ऐसा हुआ तो भी सरकार का चाबुक उन्हीं गरीबों की पीठ पर पड़ेगा, जो भूख से मजबूर होकर अपना आपा खो बैठेंगे और सुरक्षा होगी उन जमाखोरों की जो, अनाज को मनमाने दामों पर बेचकर अपनी तिजोरियां भरते हैं।
पहले भी कहता रहा हूं आज भी कहता हूं आजकल की सरकारें गरीबों को केवल वोट देने वाली भेड़ों के अलावा कुछ नहीं समझतीं। सरकार गरीब लोग ही बनाते हैं। अमीर लोगों को तो वोट देना भी बेकार का काम लगता है। इसलिए वंदेमातरम्‌ गाने या न गाने की बहस में न उलझकर रोटी की चिंता कीजिए। याद रखिए वंदेमातरम्‌ पर बहस चलाने वालों को रोटी की चिंता नहीं है। इनके पेट भरे हुए हैं। ये लोग ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं। इन्हें नहीं पता कि आटे का क्या भाव हो गया है। इसलिए ये लोग कभी भी रोटी की बात नहीं करते। भूख कभी इनके एजेंडे में नहीं रही। देश के गरीबों को एक बात समझ लेनी चाहिए के राजनैतिक दलों ने हमें धार्मिक जाति और क्षेत्रीयता में इसलिए बांट दिया है ताकि गरीब लोग एक साथ इकट्ठा होकर इनके गिरेबां पर हाथ न डाल सकें। सही बात तो यह है कि गरीब न हिन्दू होता न मुसलमान। भूख की आग हिन्दू के पेट को भी उतना ही जलाती है जितना मुसलमान के पेट को।

22 comments:

  1. आपकी सोच से इत्तेफाक रखता हूँ. पर ये भी कहना है की वन्दे मातरम गाने या ना गाने के लिए हमें किसी उलेमा की फतवे की जरूरत नहीं है, ना ही इसे गाकर किसी से देशभक्ति का सर्टिफिकेट लेने की...

    मुझे व्यक्तिगत रूप से इसे गाने में कोई परहेज नहीं.

    वन्दे मातरम..

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  2. बहुत ही सही बात कही है . और आपकी बात इसलिए सही और ध्यान देने योग्य है क्योंकि यह एक मुसलमान की नसीहत है . आप तो जानते ही है अगर कोई हिन्दू कहे तो बात दूसरी हो जायेगी . वैसे कुछ धर्मधों को आपके इस करारे जबाव से बेचैनी जरुर होगी . इसी तरह सच कहते रहिये .
    आपके इस पोस्ट को ;लिंक सहित जनोक्ति पर लगाया है

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  3. आपने कहा कि - "…सवाल यह है कि देश की जनता को सरकार यह क्यों नहीं बताती कि चीनी 20 से 40 रुपए क्यों हो गयी है ? आटा क्यों 20 रुपए किलो बिकने लगता है और घी -तेल में क्यों रातों-रात आग लग जाती है ? आखिर कीमते बढ़ने की कुछ तो वजह होती है ? क्या सरकार जमाखोरों के आगे घुटने टेकने के लिए अलावा कुछ नहीं कर सकती ? क्या कानून का डंडा जमाखोरों और मुनाफाखोरों के लिए नहीं है ?…" उसके बावजूद कांग्रेस लगातार जीत रही है ना इसे आप क्या कहेंगे? वन्देमातरम का विवाद महंगाई से ध्यान भटकाने के लिये है जैसा कि मधु कोड़ा का विवाद स्पे्क्ट्रम घोटाले से ध्यान भटकाने के लिये… सब "महारानी" और "युवराज" की माया है जी। आप देखते जाईये… जल्दी ही देश में सिर्फ़ दो ही पार्टियाँ रह जायेंगी… माओवादी और कांग्रेस… आधा भारत एक के पास आधा भारत दूसरे के पास। भाजपा और संघ के कमजोर होने की खुशी में लोग जमकर दाल खायेंगे… :)

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  4. वन्दे मातरम
    वन्दे मातरम
    वन्दे मातरम
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    सलीम साहब, आपकी बात बिलकुल ठीक है.रोटी, कपडा और मकान जैसी बुनियादी जरूरतों से ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के संवेदनशील मुद्दों को हवा दी जाती है. परन्तु सोचने वाली बात है कि एक मुस्लिम संगठन इस पर फतवा जारी करता है और प्रगतिशील और समझदार मुसलमान इस पर चुप्पी साध जाते हैं जिससे सारा समुदाय ही एक ही रंग में रंगा नजर आने लगता है. आप बहुसंख्यक समाज के पढ़े-लिखे, रोजी-रोटी में व्यस्त सामान्य नागरिक से इसकी प्रतिक्रिया लीजिये तो वह भी पूरे समुदाय को देशद्रोही बताने लगता है. और यह उसी चुप्पी की वजह से होता है.

    आप इस बात से इंकार नहीं करेंगे कि हिन्दू समुदाय अन्य समुदायों की तुलना में अत्यंत सहिष्णु है (क्या इसके प्रमाण की आवश्यकता है??). अगर ऐसा ना होता तो भारत भी तमाम इस्लामिक राष्ट्रों की तरह हिन्दू राष्ट्र होता. वह प्रतिक्रियावादी नहीं है और जल्दी बहकावे में नहीं आता. वह एक वोटबैंक की तरह भी काम नहीं करता (वरना अधिकांश राज्यों में हिंदूवादी सरकारें होतीं). वहीँ मुस्लिम समाज ने अपनी एक ऐसी छवि बना ली है कि वह बहुसंख्यक समुदाय की सदाशयता का नाजायज फ़ायदा उठा रही है. वे अपनी सामाजिक और राष्ट्रीय जिम्मेदारियों से ज्यादा इसलाम के प्रति चिंतित रहते हैं.

    भारत की सुरक्षा, उन्नति और खुशहाली की जिम्मेदारी सभी समुदायों पर है. हिन्दू और मुसलमान दो सबसे बड़े समुदाय होने के कारण इन पर बड़ी जिम्मेदारी है. भारत के विकास रथ के ये दो पहिये हैं परन्तु एक पहिया जब अपनी जड़ता के कारण गति में बाधा बनने लगे तो समस्या उत्त्पन्न होना स्वाभाविक है. इसलिए मुस्लिम समाज को यह रूढियों की जड़ता तोड़ कर प्रगतिशील बनना होगा और इसकी शुरूआत इस समाज के प्रबुद्ध वर्ग को कट्टरपंथी मुल्लाओं और धर्म के नाम पर ठेकेदारी करने वालों का विरोध करके करके ही करनी होगी. अगर मुस्लिम समुदाय खुले दिल से इस जड़ता को तोड़ कर राष्ट्रीय समाज में एकरस होने का प्रयास करेगा तो मुझे पूरा विश्वास है कि बहुसंख्यक समुदाय उनका बाहें पसारकर स्वागत करेगा.
    जय हिंद

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  5. धार्मिक संगठन कैसे भी हों लोगों को इंसानियत से दूर ले जा रहे हैं। उन का काम सिर्फ और सिर्फ सत्ता की सेवा करना है वह चाहे विरोध कर के करें या हिमायत कर के करें। धर्म वैयक्तिक चीज है। जैसे ही वह सांगठनिक होती है इंसान को बांटने लगती है।

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  6. मै आप की सभी बातो से सहमत हुं,लेकिन जब देश की बात आये तो इन संगठनो को अपना मुंह बन्द रखना चाहिये, इन एक मुस्लिम संगठन इस पर फतवा जारी करता है , दुसरा इस बात को उछलता है, मे इन दोनो से पुछता हुं कि क्या तुम्हे वो भुखे लोग नही दिखते, क्या तुम उन्हे खाने को कभी देते हो, चाहे हिदू सगठन हो या मुस्लिम जो भी पहले भुखे को रोटी दे सुरक्षा दे , बच्चो को अच्छी शिक्षा दे...... लेकिन इन्हे तोआम जनता को लडवा कर अपना उल्लू ्सीधा करना है, किसी का बच्चा मरे किसी बच्चे के मां बाप मरे इन्हे क्या, अब समय है जनता को जागना चाहिये ओर मिल कर इन्हे सबक सीखाये...... यह फ़तवा जारी करने वाले यह फ़तवा जारी क्यो नही करते कि देश मै कोई भी भूखा ना सोये सब को रोटी दो.......

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  7. सलीम भाई, बहुत अच्छा लेख मुबारकबाद...!!

    आपने सही कहा की ये लोग गरीब को एक नही होने देना चाहते है वर्ना गरीब इनका गिरेबान पकड लेंगें

    सुरेश जी ने यहां भी भाजपा और संघ का गुणगान किया है

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  8. सहमत हैं आपसे। मगर एक वंदे मातरम गाने से कैसे कोई काफ़िर हो सकता है?फ़िर भी आपने बहुत सही कहा है और ऐसे विचारो का स्वागत किया जाना चहिये और मैं स्वागत करता हूं।

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  9. @ सिद्दकी जी

    आपने बड़ी आसानी से कह दिया कि लोग वन्देमातरम की नहीं बल्कि रोटी की बात करें |

    लेकिन आप इस बात से नावाकिफ तो न होंगे ये वही लोग हैं जो बात - बात पर इस्लाम खतरे में होने का नारा लगाते हैं | परमाणु करार पर देश भर में विरोधी रैलियाँ निकालते हैं | इस्राइल और फिलिस्तीन की जंग में भारत सरकार को घसीटते हैं |

    मदरसों में बवाली तालीम लेते हैं और बटला हाउस पर दिल्ली पहुँच जाते हैं | इस्लाम के खिलाफ जाकर बड़े बेगैरत अंदाज़ में हज सब्सिडी मांगते हैं | मुंबई अटैक को भारतीय साजिश करार देते हैं |

    जब ये लोग उपरोक्त हरकतें करते हैं तब आप जैसे कथित बुद्धिजीवी ? इनको रोटी की बात करने के लिए नहीं कहते बल्कि दुम दबाकर कहीं कोने में बैठ जाते हैं और अपना मौन समर्थन दे देते हैं |

    चलिए अब जबकि आप मुखर हुए हैं तो फिर लगे हाथ जमियत को पत्र लिख कर नसीहत भेज दें कि आगे से कोई भी मुद्दा सिर्फ और सिर्फ रोटी के लिए उठाएं | मदरसों में रोज़ी - रोटी की ही तालीम हो न की धर्म की |

    कुरान पढने और मुसलमान बनने का अधिकार भी उसी को हो जो रोटी का जुगाड़ कर चुका है |

    आखिर आपके लेख का उद्देश्य यही कहना हैं न कि भूखे नंगे - लोगों की कोई राष्ट्रीय भावना नहीं होती | तो फिर उसकी धार्मिक भावना भी तो नहीं होनी चाहिए |

    || " वन्दे मातरम् " ||

    || " सत्यमेव जयते " ||

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  10. भाई पेट के लिये सब जीते है, कुत्‍ता भी खाता है तो मालिक के प्रति वफादारी करता है, हमें सीखना चाहिये।

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  11. SALIM JI FATVA ULEMAON NE DIYA THA TO VIRODH SANGH PARIVAR YA BJP NE NAHI PRTYEK BHARATVASI NE KIYA. TUMKO BHI KARNA CHAHIYE THA PAR APNI GALTI KO MANNE KI BAJAYE SANGH AUR BJP KO KOSNA SURU KAR DIYA. SANGH BJP YA KOI BHI AUR AADMI KISI MUSLAMAN SE NAHI KAH RAHE HAI KI TUM VANDEMATRAM GAO TO PHIR YE ULEMA KYA PET PIT RAHE HAI HUM TO NAHI GAYENGE ARE TUMHARI MARZI HAI GAO YA GAO PAR IS PAR RAJNITI TO MAT KARO SANGH AUR BJP NE TO YE KABHI NAHI KAHA KE KISI KO BHI VANDEMATRAM GANA ANIVARYA HONA CHAHIYE

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  12. क्या हिन्द्दु क्या मुस्लिम. क्या अमीर क्या गरीब. जो इस देश में रह कर इसके प्रतिकों का सम्मान नहीं करता उसे धिक्कार है.

    रोटी का प्रश्न पूर्णतः धर्मनिरपेक्ष है. भूख धर्म नहीं देखती. फतवेबाज जरूर देखते है. भूख को मिटाना है तो मिल कर लड़ना होगा. आप धर्म से उपर उठ कर इसके लिए तैयार है?

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  13. देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि कौन कितना बड़ा देश भक्त और कौन कितना बड़ा गद्दार है ! वन्दे मातरम तो सिर्फ देश भक्ती का एक प्रतीकात्मक चिन्ह है ! जैसे एक सच्चे मुस्लमान के लिए कुरान, इसाई के लिए बाइबल, सिख के लिए गुरुग्रंथसाहिब, और हिन्दू के लिए तो क्या कहे मासाल्लाह... ये जो धार्मिक ग्रन्थ है ये क्या है किसलिए आप इनकी पूजा करते है, सम्मान करते है, चूँकि आप यह मानते है कि यह अल्लाह की देन है उसके prateekaatmak चिन्ह है , इसलिए आप उसका सम्मान करते है ! ठीक उसी तरह से वन्दे मातरम भी है, बात इज्जत देते का दिखावा करने की नहीं, बात है कि इनके दिलो में क्या पक रहा है वह फतवे के jariye सार्वजनिक करने की ! रोटी की चिंता अलग विषय है और हर एक बढ़ती महंगाई से तरसत है ! इतने ही समझदार थे तो सरकार के खिलाफ महंगाई का फतवा जारी करते ! लेकिन नहीं सत्तापक्ष और मुल्लो की मिली भगत है सारी, देश का ध्यान असली मुद्दों से हटाने के लिए ! इसलिए inhe गद्दार की padvee से nawaajnaa कोई galat बात नहीं !

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  14. सलीमजी, बंदेमातरम गाना बिल्कुल एक निजी मामला है। यह दवाब या विरोध का मामला नहीं-बिल्कुल अंतकरण की फीलींग हैं। मेरा मानना है कि एक औसत हिंदुस्तानी भी हर घड़ी बंदेमातरम को सीने से चिपका कर नहीं चलता-हां वो खास मौकों पर जरुर इसे गाता है। धार्मिक संगठनों ने- चाहे जिस किसी भी धर्म से संबंधित हों-इस देश का बहुत कबाड़ा किया है। वे कभी शिक्षा की बात नहीं करते न ही संकीर्णताओं से ऊपर उठने की। उनके पास जनता से चंदा में मिले इतने धन जमा है कि देश को महज कुछ सालों में साक्षर बनाया जा सकता है। लेकिन नहीं-वे सिर्फ फतबा जारी करते हैं। साल में ऐसे दर्जनों फतबे आते हैं जिनका खरीददार कोई नहीं है-हां वे आपसी तनाव जरुर फैलाते है। बंदेमातरम एक अंतरमन का एहसास है-इसको थोपना या इसके खिलाफ फतबा जारी करना दोनो गलत है और निंदायोग्य है। एक ऐसे वक्त में जब देश में वैसे ही कई तरह की समस्याएं है जमायत को इससे बचना था-उसे अपनी ऊर्जा मुसलमानों की शिक्षा और रोजगार में लगाना था। दूसरी तरफ संघ जैसे संगठन भी हैं जिन्हे इन बातों से मौका मिलता है। लेकिन हम संघ की आड़ में जमायत के कामों को नहीं ढ़क सकते। जिसने जब-जब गलती की है उसकी निंदा होनी ही चाहिए।

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  15. आप ठीक कहा
    परन्‍तु देर से कहा, उचित समय आप निकाल चुके हालांकि आपका ध्‍यान भी‍ दिलाया गया था,
    खेर जैसे कि आपको बताया था कि मैं जमियत को पसंद नहीं करता लेकिन जो हो रहा है उस में समय रहते कुछ किया जाना चाहिये, मैं ने किया सफल रहा, आपकी केवल पोस्‍ट सफल रही
    , बधाई

    इस पोस्ट पर अधिकतर वन्‍दे मातरम पसंद करने वाले आयेंगे तो वह जान लें
    ‘वन्दे मातरम्’ का अनुवाद, हकीक़त, & नफ़रत की आग बुझाइएः -डा. अनवर जमाल vande-matram-islamic-answer
    http://hamarianjuman.blogspot.com/2009/11/vande-matram-islamic-answer.html

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  16. संघ परिवार कभी भी अपने अधिवेशनों में रोटी की बात नहीं करता। उसे केवल हिन्दुत्व की चिंता रहती है। हिन्दुत्व भी वह, जिससे सिर्फ घ्‌णा ही फैलती है।
    (कभी जिंदगी मे मौका मिले तो संघ की मिटिंग मे जाकर देखना और बाद मे लिखना....)

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  17. @A.Arya,
    यह सच है कि भूखे पेट भजन नहीं होत गोपाला, मगर जनाव, हर जगह बस अपने ही पेट की फिक्र करना इंसान की तुच्छता और स्वार्थीपन ही कहूंगा ! जलिआं वाला बाग़ में मरने वाले सारे लोग भूखे नहीं थे, बस एक देश प्रेम का जज्बा था जो उन्होंने उस तरह मौत को गले लगाया ! हर चीज को रोटी से तोलने वाले लोग देशभक्त ही हो, जरूरी नहीं !

    इस लेख की टिप्पणियो में शुरू की एक टिपण्णी जनाव सैयद जी की भी है, ऐसे लोगो का अनुसरण करो !

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  18. साथी देश का अनर्थ करने में मुस्लिम वोट बैंक का सबसे बड़ा हाथ रहा है क्युकी आज़ादी के बाद से इतिहास गवाह है सबसे ज़्यादा बरगला कर शोषण इसी के द्वारा किया गया है और शोषण इन्ही का हुआ भी है!! कांग्रेस और सपा ने हाथ में मुसलमानों के सिर्फ झुनझुना थमाया है और संघ और भाजपा को जूजू बता कर अपना उल्लू सीधा किया है बस, आप यदि संजीदा है तो इसपर गौर करे !

    सच है भाजपा ने सरकार में रहते जो अपने कार्यकाल में किया उसका चवन्नी भी अन्य कोई नहीं कर पाया, यहाँ तक मुसलमानों के लिए भी भाजपा ने ही सबसे ज्यादा भला किया है !

    मुझे और आप को ठीक से याद होगा उस राज से पहले रात १० बजते ही पी सी ओ पर लाइन लगाना ! और १०० किलोमीटर की यात्रा ५-७ घंटो में तै करना !

    बात ये नहीं की वन्दे मातरम गाना ज़रूरी है ....
    बात ये है, जो इतना तक नहीं कर सकते हम उनपर कितना भरोसा करे ?
    आपात काल में भी वे किताब खोल कर बैठ गए तो ???

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  19. भाई महाशक्ति आप ने सटीक जवाब दिया " कुत्‍ता भी खाता है तो मालिक के प्रति वफादारी करता है"

    बात यहाँ रोटी से पहले वफादारी की है, जब कुत्ता जिसे आप रोटी देते है काटने लग जाता है तो उसे गोली मार दी जाती है !!

    पता नहीं इन्होंने वीर अब्दुल हमीद से कभी कुछ क्यों नहीं सीखा!!!

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  20. dear brother
    i impressed with ur artical. ya it shows political motive behind rising this issue. both jamayat and RSS simply want to distrackt peoples attention from real issue ie. hunger, health,education,water etc. i dont know person like suresh bhau is favouring BJP and Rss on what basis both the oraganisation looted the country when they were in power. Suresh Bhau is residing in BJP governed state M.P. can he tell me how a minister like ANUP MISHRA could able to earn huge amount of money. he was nothing before his resigm but after ascending on ministerial post he earned uncountable money. I request Suresh bhau kindly let me read some thing on this too on your next artical with same details as it was given in YSR REDDY's artical.
    bhau dont take it otherwise but i want to know why do we or i support BJP.there must be some concret basis as i expect from you.
    aapka anuj
    rohit

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  21. हम जितने भी लोग लिख रहे है या टिप्पणी कर रहे है, सब के सब रोटी के लिये पहला प्रयास करते है, धर्म या राश्ट्रीयता एक भावना के तहत है, यहा ये भावना सिर्फ हम लोगों के लिये है लेकिन राजनीति करने वालों के लिये दुकान और उनका व्यापार हैं।
    जैसे मैं कपड़ा बेचता हूं, कोई गुड़ या चावल बेचता है, कोई कुछ और लेकिन कुछ लोग इंसानी खून खरिदने और बेचने का कारोबार भी करते है, अब अगर आजकल उनकी दुकान बंद है, तो वन्दे मातरम जैसा पुराना प्राडक्ट ही पेश कर रहे है।
    ये समझने का काम हमारा है, ना कि उनका शिकार बनने का और आपस में लड़ने का।
    वन्दे मातरम्

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  22. UMDA SOCH, KA KHAYAL KITNA GHATIYA HAI,IS TYPE KA COMMENT KARNE SE PEHLE APNE BHAIYYA' RAJ' KO BHI DESHPREM SIKHA DETE,DESHPREM KA MATLAB VANDE.... GANA HI NAHI BALKI RAHTRABHASHA KA SAMMAN KARNA BHI HAI,

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