सलीम अख्तर सिद्दीकी
2 नवम्बर के दैनिक 'हिन्दुस्तान' में आइबीएन-7 के मैनेजिंग एडिटर आशुतोष का एक आलेख 'सर कलम करने की विचारधारा' प्रकाशित हुआ है। उस लेख में आशुतोष ने वामपंथ को लोकतन्त्र, मानवाधिकार विरोधी और हिंसा का समर्थक बताया है। आशुतोष ने अपने इस लेख में वामपंथ को कोसने के साथ ही नक्सली आन्दोलन को सिर कलम करने की विचारधारा बताया है। हिंसा का समर्थन किसी भी तरह से नहीं किया जा सकता है। लेकिन मैं इस बात का समर्थन करता हूं कि जब किसी देश के एक वर्ग को हाशिए पर धकेल दिया जाए। उसके साथ नाइंसाफी की जाए। उसके अधिकार उसे नहीं दिए जाएं। उसके हिस्से के पैसे को बिचौलिए डकार जाएं। ऐसे में उस वर्ग को विरोध करने के लिए सामने आना ही चाहिए। उनके विरोध का तरीका भगत सिंह वाला भी हो सकता है और गांधी वाला भी। दोनों ही तरीकों की अपनी-अपनी महत्ता है। देश की आजादी की लड़ाई दोनों तरीकों से लड़ी गयी। तब भी भगत सिंह सरीखे लोगों को ब्रिटिश हकूमत आतंकवादी कहती थी। ब्रिटिश दस्तावेजों में आज भी भगत सिंह और उनके साथी आतंकवादी के रुप में दर्ज हैं। इस बात पर आज भी बहस होती रहती है कि देश को आजाद कराने में भगत सिंह का तरीका सही था या महात्मा गांधी का।
आज जब समाज का एक वर्ग अपने अधिकारों को पाने के लिए या सिस्टम को बदलने के लिए संघर्ष करता है तो वही बात आती है कि कौनसा तरीका सही है। हिंसा का यहा अहिंसा का। सही बात तो यह है कि गांधी का अहिंसा का सिद्धान्त ही सर्वोत्तम है। लेकिन आज का शासक वर्ग अहिंसात्कम रुप से चलाए जा रहे आन्दोलनों की परवाह कब करता है। देश की राजधानी के जन्तर-मन्तर पर जाएं या लखनउ की विधानसभा के सामने धरना स्थल पर जाकर देखें। वहां पर सालों-साल से कुछ लोग अपनी मांगों के लिए धरना दे रहे हैं। उनके तम्बूओं में छेद हो गए हैं। लेकिन उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया है। कल यही लोग धरना स्थल से उठकर हथियार उठा लें तो उन पर आतंकवादी होने का ठप्पा लग जाएगा। आशुतोष जैसे लोग ही लिखेंगे कि उनका तरीका गलत है। एक पत्रकार होने के नाते आशुतोष जानते होंगे कि अपने मौहल्ले की एक सड़क बनवाने के लिए भी लोगों को धरना-प्रदर्शन और सड़क जाम करनी पड़ती है, तब जाकर प्रशासन को पता चलता है कि वाकई इनकी सड़क बनवाने की मांग जायज है। इससे पहले नगर-निकाय के अधिकारियों को लाख पत्र लिखते रहिए उनके कानों पर जूं नहीं रेंगती है।
यह ठीक है कि नक्सली आन्दोलन हिंसात्मक हुआ है, लेकिन इतना नहीं कि नक्सलियों को आतंकवादियों की श्रेणी में रखकर उन पर गोलियां चलाने की बात की जाए। और फिर हर आन्दोलन में कुछ ऐसे लोग घुस आते हैं, जो अपनी हरकतों से आन्दोलन को बदनाम करते हैं। नक्सलियों ने हाल ही में राजधानी एक्सप्रेस को हाईजैक किया। जरा सोचिए नक्सली यात्रियों की हत्या भी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। क्या आतंकवादी यात्रियों को छोड़ देते? यही फर्क है नक्सलियों और आतंकवादियों मे। बार-बार कहा जाता है कि नक्सली लोकतन्त्र का रास्ता अपनाकर अपनी मांगों को मनवाएं संसद और विधानसभाओं में पहुंचे। सवाल यह है कि क्या संसद और विधानसभा में पहुंचने से ही समस्या का हल हो जाएगा ? इस सिस्टम को नौकरशाह चलाते हैं। क्या नौकरशाह इस सिस्टम को बदलने की नीयत रखते हैं ? लड़ाई तो यही है कि सरकारी योजनाओं के पैसे की नौकरशाह, ठेकेदार और नेता आपस में बंदरबांट कर लेते हैं। अब यह बात किसी से छिपी नहीं है कि एक रुपए में से केवल 15 पैसे ही आम जनता की भलाई के लिए खर्च होता है। मौजूदा सिस्टम में जनता के 85 पैसों को डकार लिया जाता है। क्या मौजूदा सरकारें ऐसा कुछ नहीं कर सकतीं, जिससे कम से कम पचास पैसे तो जनता को मिल जाएं। यदि सरकारें ऐसा कर लें तो नक्सली समस्या खुद ही खत्म हो जाएगी। सरकारें और आशुतोष जैसे लोग इस बात पर विचार क्यों नहीं करते कि आखिर 'लाल गलियारा' ग्लोबल वार्मिंग की तरह बढ़ता क्यों जा रहा है ? इसको रोकने के लिए क्या उपाए किए गए ? इसको बढ़ाने में कौन जिम्मेदार है ?
लोकतन्त्र एक अच्छी चीज है। लेकिन क्या लोकतन्त्र में भी तानाशाही मौजूद नहीं हैं ? मिसाल के तौर पर क्या गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकतन्त्र का चोला पहनकर तानाशाही नहीं चलायी ? नक्सली किसी एक पुलिस अधिकारी का गला रेत दें तो बहुत बड़ा जुर्म होता है। आशुतोष जैसे लोग नक्सली विचारधारा को 'सर कलम करने की विचारधारा' कहने लगते हैं। लेकिन एक मुख्यमंत्री हजारों लोगों को मरवा दे, वह फिर भी न केवल मुख्यमंत्री बना रहता है, बल्कि उसे दोषी भी नहीं माना जाता। क्या आशुतोष नरेन्द्र मोदी को 'सर कलम करने वाला मुख्यमंत्री' कहने की जुर्रत कर सकते हैं ? भारी उत्पात मचाकर लोकतन्त्र के रास्ते राजठाकरे जैसा आदमी 13 सीटें जीतकर विधानसभा में एक ताकत बनकर क्यों जाना वाहिए ? यह कैसा लोकतन्त्र है, जिसमें राष्ट्रविरोधी, माफिया और गुंडे संसद और विधानसभाओं में पहुंच जाते हैं ? यह कैसा सिस्टम है, जिसमें ऐसे लोगों को रोकने का कोई प्रावधान नहीं है ? क्या आशुतोष नहीं जानते कि मौजूदा संसद में लगभग आधे सांसद करोड़पति और अरबपति हैं ? इनसे सरकारें यह क्यों नहीं पूछतीं कि इतना पैसा इनके पास कैसे आया ? लगातार कम होता वोटिंग प्रतिशत इस बात का साफ संकेत है कि आम आदमी का भी लोकतन्त्र से मोहभंग होता जा रहा है। पहले लोकतन्त्र के रास्ते घुस आयी गंदगी को दूर करने की मुहिम तो चलाइए, फिर नक्सलियों को लोकतन्त्र अपनाने की बातें की जाएं तो बेहतर होगा। यदि सब कुछ ऐसा ही चलता रहा तो 'लाल गलियारा' ऐसे ही बढ़ता रहेगा और उन जगहों पर पहुंच जाएगा, जिन के बारे में कहा जाता है कि वहां पर नक्सली विचारधारा पनपने के हालात नहीं हैं।
जी सही है भाई उनकी लाठी है जिसको जो कहें जो मानें! अभी गोवा पुलिस का एक वक्तव्य आया है जो टूसर्किल.नेट पर छापा था कि "जेहादी आतंकवादियों और हिन्दू राईटविंग्स आतंकवादियों में अंतर है! जबकि मुसलामानों की यह मांग है और देवबंद में इसका ऐलान भी किया गया है कि जो धारा और कानून आतंकवाद के लिए है वही साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने वाले पर लग्न चाहिए. लेकिन नहीं ऐसा हो सकता क्यूंकि साम्प्रदायिक हिंसा के ग्राहक तो तादाद में ज़्यादा जो हैं....
ReplyDeleteआप ने सही सवाल उठाए हैं।
ReplyDeleteआदरणीय दिनेश राय द्विवेदी जी, पता नहीं हम हिन्दुस्तानियों की किसी ख़ास झुकाव और पूर्वाग्रहों की वजह से हाँ में हाँ मिलाने की यह आदत कब छूटे,गी और कब हम किसी भी चीज को निष्पक्षता से देख पायेंगे ! जिस देश का गृह मंत्री खुद को बताये तो धर्मनरिपेक्ष और वोट बैंक की राजनीति के तहत उलेमाओं से गले मिलने देबंद पहुँच जाए, जहा पर कि देश के ही राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत की ही कोई अहमियत न हो, फतवा जारी किया जा रहा हो, मुझे इन मंत्री महोदय के वहां जाने पर कोई ऐतराज नहीं है, बहुत अच्छी बाट है जो उन्होंने की मगर अगर इन्ही मंत्री महोदय को कहीं पर किसी हिन्दू सम्मलेन में भाग लेने बुलाया जाता तो ये कहते कि हम "धर्मनिरपेक्ष" है, ऐसे धार्मिक सम्मेलनों में सिरकत नहीं कर सकते !
ReplyDeleteये जनाव सिद्दकी साहब भी typical muslim mentality के तहत पूर्वाग्रहों से गर्सित है ! हां ये ठीक कह रहे है कि नक्शाली आतंकवादी नहीं है क्योंकि आतंकवाद की परिभाषा तो कुछ और ही है जो इस देश ने देखी जो कश्मीर देख रहा है जो पकिस्तान और अफगानिस्तान में हो रहा है उसके मुकाबले तो नक्सली कहीं भी नहीं ठहर पाते ! इन्हें तो इस बहाने बस गुजरात के मुख्यमंत्री पर निशाना साध उन्हें तानाशाह बताना था सो बता दिया ! पता नहीं लोग अपने खुद के गिरेवान में झाँकने से क्यों इतना कतराते है ?
सलीम भाई, आपने कहा - "लेकिन मैं इस बात का समर्थन करता हूं कि जब किसी देश के एक वर्ग को हाशिए पर धकेल दिया जाए। उसके साथ नाइंसाफी की जाए। उसके अधिकार उसे नहीं दिए जाएं। उसके हिस्से के पैसे को बिचौलिए डकार जाएं। ऐसे में उस वर्ग को विरोध करने के लिए सामने आना ही चाहिए…" लगभग यही शब्द अरुंधती रॉय के भी हैं, लेकिन जब उनसे सवाल किया गया कि क्या यही बातें कश्मीर के विस्थापित हिन्दुओं पर भी लागू नहीं होतीं? और यदि वे भी हथियार उठायें तो क्या उन्हें भी ऐसा ही समर्थन मिलेगा? इस पर एक लम्बी चुप्पी है… इसी बात पर सारी पोल खुल जाती है… नक्सलवादी समस्या के साथ नरेन्द्र मोदी को जोड़कर देखने की आपकी बात भी इसी से मेल खाती है…। नक्सलवादी यदि विकास के इतने ही पक्षधर होते तो अपने इलाके में काम कर रहे ठेकेदारों से चौथ वसूलने की बजाय उनसे मजबूत सड़कें बनाने को कहते…
ReplyDelete@Suresh Chiplunkar और फ़िलिस्तीन से अपने ही घर से भगाए गए मुसलामानों के बारे में आपकी क्या राय है? उन्हें क्या करना चाहिए ??
ReplyDeleteसुरेश चिपलूनकर की टिप्पणी से सहमत |
ReplyDelete@स्वच्छ संदेश. यहुदियों को उनके स्थान से मुस्लिमों द्वारा मार भगाया गया था, उस पर पहले कह लें.
ReplyDeleteगोदियालजी, चिपलुनकरजी की टिप्पणी के बाद कुछ नहीं कहना.
नक्सलवादी आतंकवादी हैं बल्कि कई मायने में उनसे भी बदतर। लेकिनहमें तो शर्म आप जैसे लोगों पर आती है जो इस आतंकवाद के पोषक हैं और नक्सलवादियों की बी-टीम की तरह काम करते हैं।
ReplyDeleteमैं बस्तर का रहने वाला हूँ और वही रहते हुए बहुत बारीकी से जानता हूँ कि मार्क्सवादियों का असल चेहरा क्या है और असल में आदिवासी इन दिनों किनके शोषण का शिकार हैं।
आशितोष को बधाई कि मार्क्सवादी-हुजूम से बिना डरे अपनी बात कहने की हिम्मत दिखाई। आप सही मायने में पत्रकार कहलाने का कार्य कर गये।
गोदियालजी, चिपलुनकरजी से सहमत है जी
ReplyDeleteकैलाश सत्यार्थी के खिलाफ हिन्दू का संगठनों विरोध तेज़ – जन्तर मन्तर पर पुतला फुूका और बताया नक्सली मिश्निरी आतंकवादी
ReplyDeletePublished on October 21, 2014 by INVC NEWS · No Comments
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mukhesh jain,swami omji,isai nakshalvad copyआई एन वी सी ,
दिल्ली ,
धर्मरक्षक श्री दारा सेना के अध्यक्ष श्री मुकेश जैन और ओमजी विश्व हिन्दू वीर सेना के अध्यक्ष स्वामी ओम जी ने संयुक्त नेतृत्व में हिन्दू संगठनों के जन्तर मन्तर पर प्रदर्शन कर कैलाश सत्यार्थी को नोबल पुरस्कार दिये जाने का विरोघ किया।
प्रदर्शन कारियों को सम्बोधित करते हुए दारा सेना के अध्यक्ष श्री मुकेश जैन ने कहा कि से कहा कि छत्तीसगढ सरकार द्वारा घोषित कट्टर नक्सली मिश्निरी आतंकवादी अग्निवेश के चेले और कुख्यात वल्र्ड विजन के दलाल कैलाश सत्यार्थी को नोबल पुरस्कार मिलने की घोषणा से इस पूुरस्कार की गरिमा और विश्वश्नीयता भारी बट्टा लगा है। श्री मुकेश जैन ने इसे भारतीय बच्चों को नक्सली ईसाई आतंकवादी बनाने की प्रक्रिया के लिये धन मुहैया कराने की अमेरीका और इंग्लैण्ड में बैठी आतंकवादी मिश्निरी ताकतों की नयी साजिश बताया है।श्री मुकेश जैन ने कहा कि कि हाल ही में भारत सरकार द्वारा विदेशी धन का आतंकवादी गतिविधियों में इस्तेमाल किये जाना पाकर विदेशी अनुदान पर लगायी बंदिशों के कारण बचपन बचाओ आन्दोलन द्वारा अपने कर्मचारियो को वेतन तक न दिये जाने का ही हल यह नोबल पुरस्कार निकाला गया है।
प्रदर्शन कारियोें को सम्बोधित करते हुए ओमजी विश्व हिन्दू वीर सेना के अध्यक्ष स्वामी ओम जी ने कहा कि कैलाश सत्यार्थी और उसके बचपन बचाओ आन्दोलन से जुड़े गुर्गो का एक ही काम है कि आतंकवादी मिश्निरियों के अनाथालयों तक बच्चों को पहुंचाने के लिये काम करना। इस सबके पीछे इनका एक ही मकसद है बच्चो को येन केन प्रकारेन मजबूर करके ईसाई मिश्निरियों के अनाथालयों के कैद खानों तक भेजकर उन्हें नक्सली ईसाई आतंकवादी बनवाकर कुत्ते की मौत मरवाया जाये।
कुख्यात ईसाई आतंकवादी गिरोह वल्र्ड विजन के दलाल कैलाश सत्यार्थी के पुतले में आग लगाते हुए हिन्दुस्थान निर्माण दल के अध्यक्ष शैलेन्द्र जैन और वानर सेना के अध्यक्ष श्री संजीव राठौड ने कहा कि विदेशी मुद्रा अधिनियम के अन्तर्गत विदेशी अनुदान का इस्तेमाल आतंकवाद और धर्मान्तरण के लिये नहीं किया जा सकता। हाल ही में भारत सरकार द्वारा विदेशी अनुदान का इस्तेमाल आतंकवाद और धर्मान्तरण के लिये किया जाना पाकर,हजारों ईसाई मिश्निरी संस्थाओं का अनुदान रोका है। जिसमें आतंकवादी मिश्निरियों से पैसा लेकर उनके लिये काम कर रही कैलाश सत्यार्थी की संस्था बचपन बचाओ आन्दोलन भी शामिल है।
इस अवसर पर हिन्दू संगठनो भारत सरकार को ज्ञापन देकर मांग की कि वो कैलाश सत्यार्थी को यह विदेशी पुरस्कार लेने की अनुमति न दे। इसी के साथ कैलाश सत्यार्थी और उसके नक्सली मिश्निरी आतंकवादी गुरू अग्निवेश का नार्को टेस्ट कराकर उसके सभी गिरोहो की सी बी आई जांच भी कराये।