शेष नारायण सिंह
गुजरात के २००२ नरसंहार प्रोग्राम में बहुत लोग मारे गए थे । सारे काण्ड एक से बढ़ कर एक क्रूर थे .लेकिन नरोदा पटिया में जिस तरह से लोगों को मारा गया वह वहशत की सारी सीमायें पार करने वाला था . गुजरात सरकार के ट्रांसपोर्ट विभाग में काम करने वाले एक सुभाष चन्द्र दरजी ने वहां की एक चाल में जलते हुए टायरों के टुकड़े या और कोई अति ज्वलन शील चीज़ फ़ेंक देते थे . जिस चाल पर उन्होंने यह कारनामा किया ,उसी चाल से करीब ५८ लोगों की मौत की जानकारी है . नरोदा पटिया के नरसंहार में ९५ लोग मारे गए थे . जिन लोगों ने नरोदा पटिया के क़त्ले-आम को मीडिया के लिए कवर किया था उनमें से कई लोगों ने बताया कि सुभाष चन्द्र दरजी २००२ नर संहार का सबसे खूंखार हत्यारा था . लेकिन जब राज्य सरकार ने जांच का काम शुरू किया तो उसके खिलाफ एफ आई आर तक नहीं दर्ज किया. लिहाजा वह छुट्टा घूमता रहा और इस बात का उदाहरण बना रहा कि मोदी नाल रहोगे तो मौज करोगे॥ लेकिन कानून के लम्बे हाथ से इतना खूंखार अपराधी कब तक बच सकता था . जब तीस्ता सीतलवाड की कोशिश के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात नरसंहार २००२ के मामलों में राज्य सरकार की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाया और उनकी जांच को रद्द किया तो इतिहास के इस सरकारी प्रायोजित नरसंहार की परतें खुलना शुरू हो गयीं . बेस्ट बेकरी से शुरू हो कर अब तक कई मामलों में सच्चाई सामने आने का काम शुरू हो गया है. नरोदा पटिया मामले में भी गुजरात सरकार की जांच में उल्टा सीधा किये जाने के आरोप थे जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट की विशेष जांच टीम ( एस आई टी ) जांच का ज़िम्मा लिया और सुभाष चन्द्र दरजी के खिलाफ दिए गए आम लोगों के बयानों कके बाद उसे पकड़ कर तरीके से पूछ ताछ की . नतीजा यह हुआ कि उसने सारी सच्चाई उगल दी. अब दुनिया जानती है कि नरोदा पटिया में जितने लोग मारे गए थे , लगभग सभी की हात्य इसी आदमी की वजह से हुई थी . कुछ को इसने खुद ही जिंदा जलाया था और कुछ को मारने वालों ने इस से प्रेरणा ली थी. नरसंहार के बाद यह सरकार और मोदी के ख़ास बन्दों में गिना जाने लगा और बदमाशी के ज़रिये वसूली का धंधा करने लगा . इसके व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर उस इलाके में और भी कुछ लोगों ने बदमाशी को एक पेशे के रूप में अपनाया. इसकी ताक़त इतनी बढ़ गयी थी कि यह गुजरात सरकार में किसी के भी अटके काम करा देता था , नरेंद्र भाई का ख़ास आदमी माना जाता था और उम्मीद कर रहा था कि एक दिन कहीं से चुनाव जीत कर सम्मान की जिन्दगी बिताने लगेगा . इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया और न्याय की ताक़त का अंदाज़ इस अपराधी को भी लग गया और गुजरात सरकार में बैठे इसके आकाओं को भी .अदालतें सुभाष चन्द्र दरजी के अपराध को इतना गंभीर मान रही हैं कि उसे कहीं से ज़मानत नहीं मिल रही है . निचली अदालत से ज़मानत की अर्जी खारिज होने के बाद, उसने गुजरात हाई कोर्ट में ज़मानत की प्रार्थना की थी जो कि खारिज हो गयी है . यानी अब अगर उसे ज़मानत लेनी है तो सुप्रीम कोर्ट जाना होगा.हाई कोर्ट इस अपराधी की ज़मानत की सुनवाई के दौरान जो कहा है वह दरजी के अपराध को सही परिप्रेक्ष्य में रख देता है .हाई कोर्ट ने कहा कि दरजी का सामूहिक हत्या का अपराध ऐसा है जिसका समकालीन सामाजिक इतिहास में कोई और कोई जोड़ नहीं है .उसके अपराध की गंभीरता के मदद-ए-नज़र उसे खुला छोड़ना ठीक नहीं है . अजीब बात यह है कि दरजी के वकील ने हाई कोर्ट से गुजारिश की है कि उसके जेल में होने की वजह से उसकी पत्नी को बहुत ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है . कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा है. हालांकि उसके अपराध के लिए उसकी पत्नी की परेशानी से खुश होने की ज़रुरत नहीं है लेकिन यह दिमाग में रखा जाए तो बेहतर होगा कि जिन लोगों के परिवार वालों को दरजी ने जला कर मार डाला था उनके ऊपर क्या गुज़र रहा होगा.करीब २ साल से जेल में बंद सुभाष चन्द्र दरजी की केस का प्रचार किया जाना चाहिए कि राजनीतिक नेता मामूली आदमी को इस्तेमाल करके उस से अपराध तो करवा लेता है लेकिन जब वह अपराधी आदमी सज़ा पा जाता है तो उसके राजनीतिक आका उसके परिवार को नहीं पूछते . राजनीतिक अपराध करवाने वाले बहुत गुरु होते हैं . जो अपराधी बेकार हो जाते हैं या जिन्हने जेल की सज़ा हो जाती है उन्हें राजनीतिक आका लोग भूल जाते हैं और नए अपराधी पाल लेते हैं. गुजरात में इस तरह की बहुत सारी घटनाएं हो रही हैं . अपराध जगत के लोग और पुलिस में जी हुजूरी करने वालों की जो जमात है , उसे गुजरात सरकार और उसेक राजनीतिक आकाओं के असली रूप का अंदाज़ हो रहा है. जो भी अपराधी पुलिस की पकड़ में आ जा रहा है, नेता लोग उसे डंप करने में ज्यादा वक़्त नहीं लगा रहे हैं . सुभाष दरजी का मामला भी उसी तरह का एक केस है. सबक यह है कि राजनेता को खुश करने के लिए अपराध करने वाला तभी तक खुश रहता है जब तक कि वह पकडा नहीं जाता . ज्यों ही वह पकडा जाता है उसके परिवार के सामने भीख माँगने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता .बहर हाल यह ज़रूरी है कि गुजरात नर संहार के सारे मामलों की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक ऐसी जांच एजेन्सी के हवाले कर दी जाए जो गुजरात सरकार के प्रभाव क्षेत्र से बाहर हो . इस एजेन्सी को उस वक़्त गुजरात सरकार में जिम्मेदारी के पदों पर रहे अफसरों और नेताओं की भूमिका की भी जांच की जानी चाहिए क्योंकि जो भी मामले सामने आ रहे हैं सब में सत्ता प्रतिष्ठान के शामिल होने के सबूत साफ़ नज़र आ रहे हैं. ज़ाहिर गुजरात नर संहार की योजना २००२ में मुसलमानों को मार डालने तक की नहीं सीमित थी . उसमें यह भी निहित था कि कैसे मुसलमानों को हमेशा के लिए दहशत का शिकार बना दिया जाए और सुभाष दरजी टाइप लोग इस खेल के मामूली मोहरे थे .
शेष नारायण जी, की यह बात विचार करने योग्य है कि ''गुजरात नर संहार की योजना २००२ में मुसलमानों को मार डालने तक की नहीं सीमित थी . उसमें यह भी निहित था कि कैसे मुसलमानों को हमेशा के लिए दहशत का शिकार बना दिया जाए और सुभाष दरजी टाइप लोग इस खेल के मामूली मोहरे थे''
ReplyDeleteशेष जी हमेंशा की तरह इस लेख पर भी बधाई के पात्र हैं,
तीस्ता सीतलवाड़ कौन सी?
ReplyDeleteवोई वाली जिसे सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के तहत गठित “स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम” (SIT) ने झूठा पाया था?
जिसके बारे में सुरेश चिपलूनकर ने निम्न पोस्ट लिखी थी?
http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2009/04/teesta-setalvad-gujrat-riots-supreme.html
मिंया सलीम आपने लिखा "बहर हाल यह ज़रूरी है कि गुजरात नर संहार के सारे मामलों की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक ऐसी जांच एजेन्सी के हवाले कर दी जाए जो गुजरात सरकार के प्रभाव क्षेत्र से बाहर हो...."
ReplyDeleteभैया, मै कहूंगा कि आप खुदा का तो नहीं मगर इस देश की तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का और इस देश के कुछ जयचंदों का शुक्रिया अदा करो कि आपकी और आपके जैसे मुस्लिम विरादारो की सोच के अनुरूप ही सब कुछ प्रक्रिया चल रही है !
मत भूले कि जो लोग हवा में बीज बोते हैं उन्हें बवंडर की फसल ही मिलती है. हिंदुओं ने सैकड़ों वर्षों से जिस बर्बरता को सहा, उसकी ज़ोरदार प्रतिक्रिया नहीं की. उसी बर्बरता को आज उन्हें सहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है! गुजरात दंगे भी उसी बवंडर की फसल का एक नतीजा था !
भारत मे मुसलमान कहीं भी असुरक्षित नही है,कई जगहों में तो हिंदुओं से ज़्यादा मजे में हैं. अगर अपवाद को छोड़ दिया जाए तो भारत के मुसलमानो को भारतवासी होने का मलाल नही है और हम उनके लिए सोचते हैं कि चाहे जैसा भी हो हमारा भाई ही है! पाकिस्तान में हिंदुओं का जो भी हाल आप देख रहे हैं वो एक जग ज़ाहिर सी बात है ! इसमें कोई संदेह नहीं है कि हालात इससे भी ज़्यादा गंभीर हैं ! ज़िम्मेदार हैं इस्लामी जेहाद जिसके हिसाब से हर ग़ैर मुसलमान काफ़िर है ! उनमें आज इंसानियत का घोर अभाव है! वो एक हाथ में क़ुरआन और एक हाथ में तलवार की नीति पर चल रहे हैं! किसी की हिम्मत कि भारतीय मुस्लमानों का मज़हब बदलने की बात करदे? क़यामत आ जाएगी ! हज की सब्सिडी दी जाती है ! मुस्लिम सिविल कोड है उनका ! एक तसलीमा ने हिन्दुओ पर होने वाले अत्याचार ही को लिखा था लज्जा मे,शर्म तो नही आई पर फतवा ज़रूर आ गया !
क्या पाकिस्तानी हिंदु अपने को पाकिस्तानी सवीकार कर पाते हैं ?क्या वो लोग ऐसे ही जीते है जैसे कोई भारत में जीता है? उनके लिए ऐसी मुसीबत किसने खड़ी की ? अशिक्षित जनता(खासकर मुसलमान और अल्पज्ञानी भारतीय नेताओं ने धर्मनिर्पेक्षता का जो राग स्वतंत्रता के बाद अलापा, उसका परिणाम ये कटुसत्य है ! आम आदमी कितना धर्मनिर्पेक्ष है और इस्लाम कितना शांतिप्रिय धर्म ये सर्वविदित है ! वास्तविकता में धर्मनिर्पेक्षता का अस्तित्व मात्र भाषणों में ही है ! हमारे ये नेता तो इसी सिधांत पर चलते है कि अगर तुम्हारे दो पड़ोसी आपस में लड़ रहे हैं, एक-दूसरे के पक्के दुश्मन हैं, तो तुम्हें उन दोनों से कोई खतरा नहीं हो सकता! .उसी तरह हिंदू और मुसलमान आपस में ही लड़ते रहे तो सरकार से क्या लड़ेंगे? क्या कहेंगे कि हमारा ये हक है, हमारा वो हक है तो तीसरा फायदा उन लोगों को पहुंचता है जिनका कारोबार उसकी वजह से तरक्की करता है, बस कुछ मौलवियों की यह क्वैशे पूरी होती रहे कि कोई उनकी आजादी में दखलंदाजी ना करे !
जिस तरह से तुम लोग अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए चुन-चुनकर गडे मुर्दे उखाड़ते हो, हम भी उखाड़ सकते है मगर बात फिर वहीं अटक कर रहजाती है कि कलयुग अपने चरम पर है इंसानियत घट रही है, और धर्मावालाम्बी बढ़ रहे है !
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ReplyDeleteआप जैसे हिन्दुस्तानी मुसलमानों से एक बात और कहना चाहूँगा कि गडे मुर्दे उखाड़ने से कोई फायदा नहीं होने वाला ! यदि इसमें( गुजरात दंगो ) दोष हिन्दुओ का है तो मुसलमान कोई संत महात्मा नहीं है, मत भूलो कि आग मुसलामनों ने ही सुलगाई थी पाकिस्तानी मुसलमानों की सोच भी काफी कुछ आप जैसी ही है और उस सोच का तनिक हश्र देख लो, क्या हो रहा है !!
ReplyDeleteab is mudde ko jyada uchhalne se dukh aur ghanna hi failegi..so stop that...
ReplyDeleteवाह ... क्या ज़माना है ... हिन्दुओं के जान की कोई कीमत नहीं ... हिन्दुओं को जिंदा जलाना कोई नरसंहार नहीं ....
ReplyDeleteहिन्दुओं की जान कोई value नहीं क्यों?
बाकी गोदियाल जी से पूरी तरह सहमत हूँ ..
LAGTA HAI UMAR KAIRANVI AUR SHESH NARAYAN ME KUCH PAK RAHA HAI EK BAKBAS KO LIKH DETA AUR DUSRA US PAR DAD DE DETA HAI.
ReplyDeleteYE SHESH NARAYAN GUJRAT DANGO KE BARE ME TO BAR BAR LIKHTA HAI PAR MIRAJ KE BARE ME NAHI AUR JAMMU KI AMINA BHI ISKO YAAD NAHI RAHTI HAI
ये शेष नारायण हो सकता है किसी उमर या सलीम का ही क्षद्म नाम हो ...
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