सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
आजकल बहुत से ब्लॉग धर्म पर बहस कर रहे हैं। संघी की विचारधारा का एक ऐसा गिरोह है, जो धर्म पर बेमतलब की बहस को बढ़ावा देता है। स्चच्छ संदेश : हिन्दुस्तान की आवाज के नाम से ब्लॉग चलाने वाले सलीम खान अपने ब्लॉग पर इस्लाम की पैरवी करते नजर आते हैं तो संघी विचारधारा के लोग उनके पीछे पड़ जाते हैं। किन्हीं रचना ने अपने ब्लॉग पर लिखा कि वह इस्लाम धर्म अपनाने को तैयार हैं। लेकिन उन्होंने कुछ शर्तों क साथ इस्लाम धर्म कबूलने की बात कही है। मैं रचना जी से बहुत ही एहतराम और अदब से कहना चाहता हूं कि धर्म और प्यार समर्पण मांगता है, इनमें शर्तें नहीं लगायी जाती हैं। दरअसल, बहुत सारे लोग कुछ गुमराह मुसलमानों के आचरण को देखकर यह मान लेते हैं कि यही इस्लाम है। जबकि ऐसा नहीं हैं। इस्लाम में शराब पीने और ब्याज लेने का हराम करार दिया गया है। अब यदि कोई मुसलमान ये दोनों काम करता है तो यह इस्लाम की गलती नहीं है। ये उसके अपने आचरण हैं। जैसे कोई सनातन धर्म को मानने वाला गाय का गोश्त खाता है तो यह सनातन धर्म की गलती नहीं है। यदि जैन धर्म से ताल्लुक रखने वाला आदमी जीव हत्या करता है तो वह जैन धर्म के विपरीत काम करता है। इससे जैन धर्म की शिक्षाएं गलत नहीं हो जाती हैं। इस्लाम कहता है कि 'जिसने भी किसी एक बेगुनाह का कत्ल किया, उसने पूरी इंसानियत का कत्ल किया।' अब अगर कोई मुसलमान बम बांधकर बेगुनाह लोगों के बीच जाकर फट जाए तो इसमें इस्लाम की गलती कैसे है। ऐसा भी नहीं है कि मुसलमानों ने ऐसी कायरतापूर्ण कार्यवाईयों का समर्थन किया हो। आतंकवाद के खिलाफ उलेमा फतवा जारी कर चुके हैं।
धर्म कोई बुरा नहीं हैं। इसको मानने वाले बुरे हैं। दिक्कत तब शुरु होती है, जब हर कोई अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताकर दूसरे धर्म में खामियां निकालता है। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो खुर्दबीन लेकर धार्मिक पुस्तकों का पोस्टमार्टम करते हैं। एक धारणा बना ली गयी है कि इस्लाम में औरतों की बहुत दुर्गति है। चार शादियां करते हैं। यहां मैं बता दूं कि इस्लाम में चार शादियां का प्रावधान ऐयाशी के लिए किन्हीं हालातों के तहत रखा गया है। अब अगर कोई इस्लाम में दी गयी सुविधा का गलत इस्तेमाल किया जाए तो इसमें इस्लाम क्या करे ? क्या देश के संविधान में भी दी गयी कुछ रियायतों को गलत इस्तेमाल नहीं होता ? इस्लाम ने ही औरत को सबसे पहले आजादी दी। इस्लाम ने ही सबसे पहले इंसानों को गुलाम बनाकर रखने की परम्परा को खत्म करने की शुरुआत की। इस्लाम औरत को नंगेपन से बचने की सलाह देता है। क्या सनातन धर्म नंगेपन की इजाजत देता है ? रचना जी कहती हैं कि इस्लाम अपनाने के बाद वह जींस भी पहनेंगी और और स्कर्ट भी। उनसे सवाल है कि क्या मुस्लिम युवतियां जींस नहीं पहनती हैं ? क्या वे नौकरी नहीं करतीं ? इस्लाम किसी पर जोर जबरदस्ती नहीं करता है। अब यह मत कहना कि तालिबान क्या कर रहे हैं ? यह बात मैं पहले ही कह चुका हूं कि एक मुसलमान का गैर इस्लामी आचरण इस्लाम नहीं है। संघी गिरोह से एक सवाल यह भी है कि क्या सनातन धर्म जींस और स्कर्ट पहनने की इजाजत देता है ? यदि हां तो फिर हमारे संघी भाई क्यों स्कूल कॉलेजों में ड्रेस कोड लागू कराने के लिए धरन-प्रदर्शन करते है ? क्यों वे पबों में जाकर जींसधारी युवतियों को मारते-पीटते हैं ? क्या फर्क है उनमें और तालिबान में ?
दरअसल, इस्लाम के उदय से ही इस्लाम को खत्म करने की साजिशें की जा रही है। क्योंकि इस्लाम धर्म ने ही शोषण और असमानता को खत्म करने का बीड़ा सबसे पहले उठाया था। यही वजह रही कि डेढ़ सदी की अन्दर ही इस्लाम धर्म दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। एक ताजा सर्वे के अनुसार दुनिया का हर चौथा आदमी इस्लाम को मानने वाला है। आखिर इस्लाम में ऐसा कुछ तो है, जिससे आकृषित होकर दुनिया के बहुत सारे लोग आज भी इस्लाम को अपनाते हैं। मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि इस्लाम में कुछ ऐसे लोगों ने भी घुसपैठ की है, जो मुसलमानों को सही इस्लाम के बजाय ऐसी बातें सिखा रहे हैं, जिनका इस्लाम सख्ती से विरोध करता है। आज का तथाकथित जेहाद ऐसा ही गैर इस्लामी कृत्य है। जेहाद उस वक्त किया जाता है, जब मुसलमानों को अपने धर्म के अनुसार जीने का हक छीना जाए। मुझे नहीं लगता कि आज दुनिया में कहीं भी मुसलमानों को अपने धार्मिक फर्ज अदा करने से रोका जाता हो। हां, फ्रांस जैसे कुछ देश जरुर हिजाब आदि पर पाबंदी लगाकर मुसलामनों को उकसाते रहते हैं। लेकिन वह इतनी बड़ी बात नहीं है कि जेहाद किया जाए। एक बात और मैं और कहना चाहता हूं कि इस्लामी देशों में रहने वाले गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भी धार्मिक आजादी मिलनी चाहिए। इस्लाम किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की इजाजत भी नहीं देता है। साफ कहा गया है कि 'दूसरे धर्म को बुरा मत कहो।'
आस्ट्रेलिया में भारतीय, भारत में बिहारी
इस्लाम विरोध ही भाजपा का हिन्दुत्व
दूसरे धर्म की 'बहु' मंजूर, 'दामाद' नहीं
आखिर हिंसा से नहीं बच सका मेरठ
इसलाम के असली दुश्मन तालिबान
सत्य वचन ..... :)
ReplyDeleteलेकिन कितना भी बुरा गिरोह हो तुम जैसे अरबी और देशद्रोही विचारधाराओं वालो से तो बेहतर ही है ........
कौन सा धर्म बेहतर है? इस पर चलने वाली बहस अंततः अंधकूप तक ले जाएगी। क्यों कि आज अपने को बेहतर बताने के स्थान पर लोग दूसरे के नुक्स निकालने में लगे हैं। सारे समाज में यही हो रहा है, राजनीति में यही हो रहा है। वही यहाँ भी धर्म संबंधी बहस में परिलक्षित होगा।
ReplyDeleteबदलना है तो समाज बदलें, इंसान को इंसान बनाने की कवायद करें।
maarane ki deta hai . jabaradasti dusare dharm manane valo ki jan lene deta hai :) hasane ko dil chahata hai aapaki bat par ? jis dhram ke maanane valle dusare ki bat tak nahi sun sakate unhe dusaro ko ray dene ka hak nahi hota janab
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ReplyDeleteकुछ हिन्दू गाय खाते है, कुछ जैनी भी जीवहत्या और मांसाहार में शामिल हैं पर ये लोग यह सब हिंदुत्व या जिनत्व के नाम पर तो कतई नहीं करते. न धर्म की आड़ लेते हैं. जबकि आंतकवादी, तालिबानी, बेगुनाहों, औरतों बच्चों बूढों को मार डालने वाले मुसलमान यह सब इस्लाम के नाम पर करते हैं. खातूनों पर इसलाम के नाम पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं, इस्लाम के नाम पर चार शादियाँ कर ऐयाशी करते हैं, इस्लाम के नाम पर मुस्लिम देशों में गैर मुस्लिमों को तीसरे दर्जे का नागरिक माना जाता है.
ReplyDeleteक्या मैं हिन्दू होकर पाकिस्तान, इरान या किसी अरब देश में खुले तौर पर इस्लाम को गलत ठहरा सकता हूँ 'स्वच्छ' की तरह? क्या मैं किसी मुस्लिम देश में रमजान के दौरान खुले मैं कुछ खा पी सकता हूँ? आप हिन्दुओं के बीच रहकर उनके धर्म को गाली दे सकते हैं, उन्हें भड़काने के लिए गाय खुले आम गाय खा सकते हैं, उनके देवताओं का मजाक उड़ा सकते हैं, मिराज में उनके गणेश प्रतिमाओं को पत्थर मार कर तोड़ सकते हैं आपपर कोई कार्यवाही नहीं होगी.
पर किसी मुस्लिम देश के किसी व्यस्त इलाके में इतना ही पूछ कर देख लीजिये की बताओ इस्लाम में शराब और गीत संगीत को कहाँ हराम और नाजायज़ बताया है? अगर आप पांच मिनट भी जीवित रह जाएँ तो खुदा का शुक्रिया कहियेगा.
यही फर्क है.
सलीम भाई, इस बार आपने बहुत संयत लहज़े में अपनी बात रखी है… लेकिन जैसा कि ab inconvenienti ने कहा, "सहनशीलता" ही हिन्दुत्व की सबसे बड़ी ताकत भी है और कमजोरी भी। ब्लॉग जगत पर यह सारा झमेला और बवाल तभी से मचना शुरु हुआ था, जब से कथित स्वच्छ ने वेदों में से उद्धरण देकर (आपके शब्दों में खुर्दबीन लेकर) कुरान से उसकी तुलना शुरु की। आप उसकी पहली पोस्ट से देख सकते हैं, कि हर बार वह वेदों और कुरान की तुलना करता है, कुरान को श्रेष्ठ बताता है, कोई साहब अपने किसी कथित से "अवतार" को श्रेष्ठ बताते हैं… सारा विवाद वहीं से शुरु हुआ। बात साफ़ है, हम तो कभी किसी से नहीं कहते कि रामायण पढ़ो, गीता पढ़ो वही सबसे श्रेष्ठ है? फ़िर कोई दूसरा हमें कैसे उपदेश दे सकता है कि ये देखो इसमें ये लिखा है और हमारे ग्रन्थ में ये लिखा है इसलिये तुलनात्मक रूप से हमारा वाला ज्यादा अच्छा है। अरे भाई अच्छा है तो अपने पास रखो ना… सारा पुण्य तुम्हीं कमा लो… हमें नहीं चाहिये। उम्मीद है कि आप उन्हें यह बात समझायेंगे और शायद आपकी बात सुन भी लें…। इस्लाम की तारीफ़ करना है, पड़े करते रहो हमें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन उसकी तुलना हमारे किसी धर्मग्रन्थ से मत करो… हमें मालूम है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है…। यदि सभी लोग अपनी सीमाएं जान जायें तो कभी विवाद नहीं होगा, दिक्कत ये है कि सीमा उल्लंघन की पहल हमेशा अ-स्वच्छ की ओर से ही हुई है… फ़िर भले ही आपकी नज़र में हम "गिरोह" हों…
ReplyDeleteधर्म की बजाय इंसान को इंसानियत मानवीयता का पाठ पढ़ना चाहिए ....
ReplyDeleteSuresh ji se sahmat.
ReplyDeleteसलीम अख्तर सिद्दीक़ी जी सलाम,
ReplyDeleteआप ने बहुत सुंदर बात लिखी है कि धर्म और प्यार समर्पण मांगता है, इनमें शर्तें नहीं लगायी जाती हैं। आप की इस बात ओर आप के लेख से मै सॊ प्रतिशत सहमत हुं, लेकिन आज कल यहा ऎसी बहुत सी बहस चल निकली है, जिस का कोई सर पेर नही,
अब मेरे दोस्तो मे पाकिस्तनी दोस्त भी है, लेकिन कभी हमारि धर्म पर बहस नही हुयी, सब मिल कर अपने अपने त्योहार मनाते है.
आप का धन्यवाद
आपने ठीक लिखा पर सुरेश चिलुनकर जी की बात पर भी गौर फरमाईये | आपको संघी गिरोह तो नजर आ गया लेकिन सलीम व कैरानावी का गिरोह नजर नहीं आया | संघियों के साथ उनकी भी तो आलोचना कीजिए |
ReplyDeleteRatan Singh Shekhawat से सहमत कैरानवी की भी आलोचना किजिये,
ReplyDeleteक्यूंकि वह कहता है तुम कुप्रचार करना छोड दो मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगा
क्यूकि उसने चिपलूकर जैसे दंगा अभिलाषी को फेल किया रेल में सवार किया, पास किया उस पोस्ट में जो उसे देशहित में लगी हिन्दू-मुस्लिम को जोड के दिखाया
क्यूंकि कैरानवी ब्लाग में अपना कैराना लेके आया था फिर वह हमारा इस्लाम के खिलाफ कुप्रचार देख के अपना कैराना भूल गया
क्यूंकि वह नमाजी नहीं हाजी नहीं, गुनहगार होते हुये भी मौलाना क्यूं कहलाने लगा
क्यूंकि वह चार दिन की इस्लाम शिक्षा होते हुये भी हमसे नहीं हारता
क्यूंकि वह चाणक्य को भी पढता है, वेदों को भी पुराण को भी
क्यूकि वह जाखड को अपना दोस्त कहता है, खण्डेलवाजी को अपना गुरू कहता है
क्यूंकि ब्लागवाणी से उसका हक दिलाने blog.blogvani.com पर जाखड के अतिरिक्त कोई नहीं गया
क्यूंकि कैरानवी से हमने कभी नहीं पूछा उसने 3 पोस्ट में रैंक1 ब्लाग कैसे बना लिया
क्यूंकि कैरानवी उर्दू में अपना रूत्बा बताता है हमने कभी नहीं पूछा क्या
क्यूंकि कैरानवी को हाल ही मैं एक हिन्दी मासिक का एडिटर बनाया गया, हममे से सब जानते हैं लेकिन मुंह नहीं खोलते
क्यूंकि कैरानवी कहता है वह कुप्रचारी को 3 हफतों में पागल कर सकता है, अब तो 1-1 दिन में करने लगा, हमने उससे कभी ना पूछा 3 हफते क्यूं कहते हो कम ना ज्यादा
क्यूंकि कैरानवी ने अपने इदारों को भी नहीं छोडा कोई नही पूछता किसको कैसे
क्यूंकि कैरानवी मक्कारी,गद्दारी, वफादारी, बेशर्मी हर तरह का गुण रखता है और नीचे से वार करता है, जो हमने कभी देखा ही नहीं था,
उपरोक्त कारण कम लगें तो और गिनाये जा सकते हैं, फिर आपने कैरानवी की आलोचना क्यूं नहीं की, क्या इस लिये कि आप हक की बात नहीं कर रहे,
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केवल एक सवाल मेरे प्रचार लिंक से कुप्रचारी क्यूं घबराते हैं बिना सोचे बताईये वह नक्शे सुलैमानी यह है
signature:
कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा? हैं या यह big Game against Islam है?
antimawtar.blogspot.com (Rank-1 Blog)
छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्लामिक पुस्तकें
islaminhindi.blogspot.com (Rank-2 Blog)
डायरेक्ट लिंक
@ चिपलूनकर जी जहां कोई अवतार बताता है, वहां यह भी तो लिखा है कि 'यह big game against islam? है' आपने कई बार फिर अपने चेलों से कहलवाने लगे कि इस्लाम के अलावा कुछ लिख कर दिखाओ, पढो ध्यान रहे आपने कहीं लिखा था कि आपके लेख रददी में डाल दिये जाते थे इसलिये ब्लागिंग में आये, कैरानवी पहले भी एडिटर था आज भी एडिटर है,
ReplyDelete............................
Suresh Chiplunkar जी कुप्रचारी लोग हमें कुछ लिखने की कहां फुर्सत देते हैं, फिर भी आपको मायूस नहीं करूंगा,…निम्न लेख पिछले हफते का है, पढ लो कैरानवी जागती आंखों कैसे सपने देख लेता है, पढकर बताइयेगा किस श्रेणी अर्थात रचनात्मक, सुधारात्मक या राजनीति-समाज में आयेगा, अगर आपने नेस्ले का दूध नहीं पी रखा तो कमेंटस से हाजिरी लगाइयेगा, सांकल खुली है यह कोई जनानियों की दुकान / मकान (ढह गया 13 की छाया पड गयी, तुम जैसे 66 को जलील कर गई) थोडे ही ना है कि किसी को गाली दी और दरवाजा बंद कर लिया, पढते जाओ कैरानवी लिंक भेजता जायेगा, आखिर 7 सात पहले हम जर्मन मेगजीन के एडिटर ऐसी नहीं बन गये थे, और 2 महीने पहले हिन्दी मासिक का एडिटर बनाया गया है, नाम सुनोगे तो फडक जाओगे, और भी भेजूंगा तुम पढते जाओ, शर्त यह है कमेंटस से अपनी हाजिरी लगाओ, शेष फिर पहले पहुचो निम्न लेख पर
गाँधी जयन्ती पर आओ याद करें उस पोस्ट को जिस में सर्वोधर्म प्रेम देखने को मिला था
डायरेक्ट लिंक
Garud sahab aur unke cCHELo ,lagta hai aapko naxal se dar nahi lagta,aapko to northeast main bhi kuch nazar nahi aata,aap ko raj thakerey se bhi pyaar hoga jo aap ke hi 'bhaiyyo' ko aap ke desh se hi nikal raha hai,Dekha aapne THAKEREY ka kya Hashar ho raha hai,bechara muslims ko gaali dete dete apne hi ghar main aag laga betha,Is election main apne ghar ki aag bujhane main laga hai ,ISILIYE kehta hoon jab bhi bolo soch samajh kar bolo
ReplyDeleteकैरानवी आप कितने भी बुद्धिमान हो , कितने ही बड़ी मेग्जिन के एडिटर हो कितनी भी किताबे पढ़ते हो | लेकिन तुम्हारे लिखे से साम्प्रदायिक सोहार्द यदि ख़राब होता है तो इन सब का क्या फायदा | अपने धर्म का प्रचार करो , अपने धर्म की बढ़िया बाते बताओ लेकिन दुसरे धर्म का भी सम्मान करो | धर्मो की तुलना कर अपने धर्म को सर्व श्रेष्ठ व दुसरे को बेकार साबित करने कोशिश मत करो | तुम्हारा कोई विरोध नहीं करेगा |
ReplyDelete"स्चच्छ संदेश : हिन्दुस्तान की आवाज के नाम से ब्लॉग चलाने वाले सलीम खान अपने ब्लॉग पर इस्लाम की पैरवी करते नजर आते हैं"
ReplyDeleteपैरवी करते नजर आते हैं? एक बच्चा भी समझ सकता है कि स्पष्ट रूप से अपने धर्म और धर्मग्रंथ को श्रेष्ठ बता कर दूसरे धर्मों और उनके धर्मग्रंथों का अपमान करते नजर आते हैं। सिर्फ आपको नजर नहीं आ रहा है क्योंकि आपने संघ विरोधी चश्मा पहन रखा है और सभी आपको सिर्फ संघी नजर आते हैं। यहाँ पर मैं यह बता दूँ कि मैं न कभी संघी था और न हूँ।
बेहतर तो तब होता जब आप रचना जी से कुछ कहने के स्थान पर स्वच्छ संदेश वाले सलीम को ही समझा पाते कि "इस्लाम किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की इजाजत नहीं देता" और वह दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाना बंद कर देता।
कुछ दिनों से चंद लोगों ने हिन्दी ब्लॉग जगत में आकर इसको को कचराघर बना कर रख दिया है। इनके आने के पहले भी हिन्दी ब्लॉग जगत में हिन्दू सहित सभी धर्मावलम्बी अपने अपने विचार पोस्ट करते थे पर कभी वैमनस्यता फैली क्या? सभी को समझाने के बजाय उन लोगों को आप समझा सकें तो हिन्दी ब्लॉग जगत आपका आभारी रहेगा।
वकिल जिसके पक्ष में खड़ा होता है उसके दोष नहीं गिनाता, उसके अपराध के लिए दुसरे ही दोषी होते हैं.
ReplyDeleteसलीम भाई, सलीम का सलाम कुबूल कीजिये और एक अच्छे लेख के लिए बधाई स्वीकार करें. आपसे और कैरानवी भाई से सहमत. इधर अब एकाध हफ्ते तक नेट पर नहीं आ सकूँगा या बहुत कम आ सकूँगा.
ReplyDeleteपुनः कोटि धन्यवाद !
आपका हमनामी, छोटा भाई
सलीम खान
संयोजक
"हमारी अंजुमन" (विश्व का प्रथम एवम् एकमात्र हिंदी इस्लामी सामुदायिक चिट्ठा)
आपके ब्लॉग के माध्यम से कुछ कहना चाहूँगा
ReplyDeleteतो आओ उस बात की तरफ जो हममें और तुममें यकसां हो और वह बात है...
"भगवान् एक ही है, दूसरा नहीं है. नहीं है, नहीं है, ज़रा भी नहीं है." अर्थात
"एकं ब्रह्मा द्वितीयो नास्ति. नेह्न्ये नास्ति, नास्ति किंचन." (वेदांत का ब्रह्मसूत्र)
और
"नहीं है कोई माबूद (उपास्य) सिवाय अल्लाह के" अर्थात
"ला-इलाहा-इल्लल्लाह..."
कैरानवी जमाने भर को लिंक बांटते रहते हैं… आज वे भी एक लिंक को देख लें, पढ़ लें और समझ लें…
ReplyDeletehttp://janadesh.in/InnerPage.aspx?Story_ID=1240
लेकिन कैरानवी, वहाँ पर जरा तमीज से ही जायें, बड़े-बड़े विद्वान बैठे हैं वहाँ… वह पत्रकारों का "जनादेश" है, जिन्होंने एक सीधा-सादा सा प्रश्न पूछा था कि "इस्लाम में गाँधी जैसा व्यक्ति क्यों नहीं पैदा होता?" और यदि होता भी है तो गांधी के हिन्दू फ़ॉलोअर की तरह उसके मुस्लिम फ़ॉलोअर कितने हैं? और गाँधी का जितना प्रभाव हिन्दुओं पर है, उस व्यक्ति का प्रभाव मुसलमानों पर कितना पड़ा?
मजे की बात कि आज तक उस चिठ्ठे पर किसी का जवाब नहीं पहुँचा है…
एक सवाल सुरेश भाई से मेरी तरफ़ से
ReplyDelete"साउथ अफ्रीका या सूडान में कोई ऐश्वर्या रॉय जैसी खुबसूरत और गोरी महिला क्यूँ नहीं मिलती? या नेपाल में कोई ओबामा जैसा व्यक्तित्व क्यूँ नहीं है या हमारी होकी टीम में बल्ले से खेलने वाला कोई खिलाडी क्यूँ नहीं है मिलता?"
नहीं मिलता तो एक बार अपनी जिव्ह्या हो पवित्र करते हुए बोलो
पप्पू कांट डांस ...ला !!!
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विषयांतर: शहीदे आज़म सरदार भगत सिंह के विरोधी थे गांधी जी, और उनकी वकालत की थी मोहम्मद अली जिन्ना ने (भगत सिंह जब असेम्बली में बम फेंकने के जुर्म में जेल में थे तो उनके वकील जिन्ना थे) यह सत्य है नहीं यकीन तो इतिहास के पन्ने पलट लीजिये.
वैसे सवाल सुरेश जी से है फिर भी जवाब सहज है- अफ्रीका या सूडान में ऐश्वर्या राय जैसी गोरी महिला नहीं मिलती क्योंकि इसके लिए जो गुणसूत्र(genes) चाहिए वह उनमें मौजूद नहीं हैं, नेपाल में कोई ओबामा जैसे व्यक्तित्व वाला नहीं मिलता (यदि बात लम्बाई और रंग रूप की हो रही है) तो जवाब फिर वही है कि जो गुणसूत्र(genes) चाहिए वह उनमें मौजूद नहीं हैं.
ReplyDelete"इस्लाम में गाँधी जैसा व्यक्ति क्यों नहीं पैदा होता?"
तो क्या मान लिया जाय कि "जो गुणसूत्र(genes) चाहिए वह उनमें (मुसलमानों में) मौजूद नहीं हैं"?
चिपलूनकर जी इस लिंक पर तो सांकलों में ताले भी पडे हुये हैं, कोई खुले दरवाजे का लिंक हो तो दो, रौंद के रख देगा कैरानवी, रौंदता रहा है तुम उन जनाजों में शरीक भी हुये हो, अल्बेदार से लेके रचना दादी तक यही कहानी चली आ रही है,
ReplyDeleteलेख देख नहीं सका, लेकिन इसका छोटा सा जवाब वहां मेरी तरफ लिख आओ कि इस्लाम को मजबूरी का नाम महात्मा गांधी की आवश्यकता नहीं थी, जिसकी थी उसके बारे में दयानिधि श्री
देवदास गांधी, जो दिवंगत महात्मा गांधी के पुत्र हैं, अपने एक निबंध में लिखते हैं‘‘एक महान शक्तिशाली सूर्य के समान ईश्वर-दूत हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने अरब की मरूभूमि को उस समय रौशन किया, जब मानव-संसार घोर अंधकार में लीन था और जब आप इस दुनिया से विदा हुए तो आप अपना सब काम पूर्ण रूप से पूरा कर चुके थे, वह पवित्रतम काम जिससे दुनिया को स्थायी लाभ पहुंचने वाला था....
सलीम जी बहुत दुःख हुआ ये देख के की आप जैसे एक सच्चे इंसान(मुसलमान बाद में) जब इंसानियत की पैरवी करते हुए सच सामने लाये तो लोगों ने आपके ब्लॉग को भी अखाडा बना डाला और मजबूरी ये की अपनी सही और इमानदारी से कही गयी बात को लोगों तक पहुँचने के लिए हमें टिप्पणिओं की वैसाखी का सहारा लेना ही लेना पड़ता है. आपकी बात से सहमत हूँ, काश कोई ऐसा मसीहा/अवतार फिर आये जो सिर्फ इंसानियत का अवतार हो हिन्दू या मुसलमान का नहीं.
ReplyDeleteकैरानवी मियां ताला लिंक पर नहीं तुम्हारे दिमाग पर पड़ा हुआ है.लिंक तो पूरी तरह खुला हुआ है. तुम्हारी समझ में न आया हो तो अलग बात है. जहाँ तक बात रौंदने की है तो कबीरदास जी तुम्हारे जैसों के लिए ही कह गए है-
ReplyDelete"माटी कहे कुम्हार से , तू क्या रौंदे मोये"
एक दिन ऐसा आएगा मैं रौंदूंगी तोये"
तो मियां बडबोलापन छोडो और लिंक पर विचार करो
http://janadesh.in/InnerPage.aspx?Story_ID=1240
yae haen rachna ki post kaa last paraagraph
ReplyDeleteअगर ये सब बाते करना किसी नारी के लिये ठीक नहीं हैं और उसको इन प्रश्नों को कर का अधिकार ही नहीं तो भैया सलीम नारी को लेकर चिंतित ना हो क्युकी उसकी स्थिति हर धर्म मे कोई ज्यादा अच्छी नहीं और अपनी स्थिति को सुधारने के लिये नारी ख़ुद सक्षम हैं इसके लिये नारी के सुधार की बात करने के बहाने मुस्लिम धर्म के प्रचार को ना आगे बढाये । नारी को अपनी धर्म की बातो से दूर ही रखे।
हेडिंग मे जो बशर्ते हैं वो कहता हैं " नारी अब अपनी जिन्दगी अपनी शर्तो पर जीना चाहती हैं "
aur yae haen
ReplyDeleteshyadaa ki post jhaan usnae bhi yahii baat kahii haen
yae post bhi naari blog par hi haen
jab do dharmao ki naariyaan ek hi baat ko kehtee haen to kahii to kuchh hogaa yaa dharm ki baat karna hi naari kae liyae galat haen
अख्तर साहब,आप चुप क्यूं हैं,गांधी जी जैसी शख्सियत(व्यक्तितव)इस्लाम मैं क्यूं नही लेख पर आपको बोलना चाहिये,
ReplyDeleteगांधी जी की हिन्दुस्तान को आवश्यकता थी तो उसे मिला उनके कारण आज तिरंगा लहरा रहा है, मैंने गांधी जयंति पर महात्मा जी को याद भी किया था,
हमें जिसकी आवश्यकता थी हमें वह व्यक्तितव मिला जिसके कारण 53 झंडे तो मिल भी चुके,
आप अनुभव में हमसे अधिक हो कुछ तो बोलो कि लोग कहेंतें है कि आज गालिब गजलसरा ना हुआ,
कुछ उपरोक्त कमेंटस में गलत लिख गया हूं तो आप डिलिट कर दिजिये, या मुझे बताइये में कर दूंगा,
क्षमा के साथ विदा
सिद्दीकी साहब शुक्रिया
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट है सदभाव के लिए
ऐसे आलेख ज़रूरी है
Maulana Kadir ke bare me kya khyal hai uske parche ke upar bhi kuch likhoge ya nahi
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