सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
पता नहीं इश्क कमीना होता है या नहीं लेकिन अनुराधा बाली या फिजा और चन्द्रमोहन या चांद मौहम्मद का नाटक देखने के बाद लगता कि इश्क वाकई कमीना ही नहीं बेशर्म और बेहया भी होता है। सुबह-सुबह अखबार में जब इन दोनों की हंसती-मुस्कराती तस्वीर पर नजर पड़ी तो यही लगा कि शायद फिर से फिजा या चांद कोई बकवास की होगी। लेकिन खबर पढ़कर मालूम हुआ कि कुछ माफी-तलाफी का किस्सा है। फिजा ने चांद को और चांद ने फिजा को क्या-क्या नहीं कहा। मीडिया में ये दोनों उपहास का कारण बने रहे। लेकिन लगता है इन दोनों में शर्म नाम की कोई चीज नहीं है। बेशर्मी और बेहयाई की मिसाल कायम करने वाले ये दोनों मौहब्बत और इस्लाम का मजाक उड़ा रहे हैं। तलाक के साथ मेहर की रकम लौटाने का दावा करने वाले चांद अब पता नहीं किस मुंह से कह रहे हैं कि उन्होंने फिजा को तलाक नहीं दिया है। जिस फिजा ने चांद की कथित बेवफाई को लेकर आसमान सिर पर उठा लिया था, अब वह कैसे चांद को माफी देने की सोच रही है। यदि फिजा चांद को माफी देने की सोच रही है, उसे माफी देने से पहले यह सोचना चाहिए कि जो शख्स अपनी उस पत्नि का नहीं हुआ, जो अपने परिवार और समाज का दबाव के आगे फिजा को छोड़कर कायरों की तरह अज्ञातवास में चला गया, ऐसा कमजोर शख्स फिर कभी धोखा नहीं देगा, इसकी क्या गारंटी है। फिजा बीबी आपको यह भी सोचना चाहिए कि आपने एक बसे-बसाए घर को उजाड़कर अपना घर बसाने की सोची थी। हो सकता है, कल किसी और फिजा पर चांद ने डोरे डालकर आपको अलग कर दिया जो क्या होगा।
जब दोनों ने अपना धर्म छोड़कर इस्लाम कबूल करके शादी करने की बात की थी तब ही उनकी नीयत का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था। इस्लाम में दूसरी शादी किन्हीं अहम वजहों से और सशर्त ही की जा सकती है। इनमें संतान न होने, पत्नि का अत्याधिक बीमार होना वजह हो सकती है। युद्व में हुईं विधवाओं को सहारा देने कि लिए भी एक से अधिक शादी का प्रावधान रखा गया था। इसमें भी शर्त यह है कि पत्नि दूसरी शादी की इजाजत दे और पति दोनों पत्नियों को बराबरी का दर्जा दे।
जब चांद ने फिजा को तलाक दिया था तो उलेमाओं ने तलाक पर शरीयत की बातें शुरु कर दीं थीं। अब, जब दोनों फिर से एक होने की बात कर रहे हैं तो हो सकता है कि मीडिया फिर उलेमाओं से उत्पन्न हुई नई स्थिति पर उनकी राय मांगें। मेरा तो उलेमाओं को सलाह है कि वे इस मसले से दूर ही रहें तो बेहतर है। क्योंकि शरीयत की बात तब आती है, जब कोई सही मायनों में इस्लाम की शरण में आया हो। अभी तो यही नहीं पता कि असलियत क्या है ? दोनों ने सही मायनों में इस्लाम कबूल किया था या नहीं ? यदि इस्लाम कबूल किया था तो किस मुफ्ती के सामने किया था ? निकाह किस मौलाना ने पढ़वाया था ? गवाह कौन लोग थे ? वकील किसे बनाया गया था ? यदि निकाह हुआ था तो निकाहानामा कहां है ? सच्चाई सबके सामने है। अनुराधा आज भी मांग में सिंदूर और कलाई पर कलावा बांधे नजर आती है। चन्दमोहन भी कलाई पर कलावा बांधते हैं। इस संवेदनशील और इस्लाम को मजाक समझे जाने वाले मु्द्दे पर उलेमाओं को संयम से काम लेना चाहिए। खामोशी अख्तियार करना ही बेहतर हो सकता है। दो लोगों के बीच की प्रेम कहानी में बेवजह इस्लाम को घसीटना इस्लाम की तौहीन के अलावा कुछ नहीं है। उलेमाओं को कुछ ऐसा प्रावधान करना चाहिए कि केवल शादी, खासकर दूसरी शादी के लिए इस्लाम कबूल करने वाले लोग इस्लाम को केवल शादी करने का साधन न बना सकें।
आपकी बात सोलह आने सच है, जिस तरह अमेरिका या कनाडा जाने के लिए लोग कागज़ी शादी का सहारा लेते हैं बिलकुल वैसे ही इस्लाम को इस्तेमाल किया जाता है दूसरी शादी के लिए, इस्लाम सिर्फ एक टेक्नीकल सहजता देने का जरिया बन रहा है, इसका विरोध होना ही चाहिए, इस रास्ते चल कर ना जाने कितने घर उजड़ रहे हैं
ReplyDeletejanab, chand aur fija ke isk ko dekhkar yo aisa hi lagta hai
ReplyDeleteशैल जी की बात से पुरी तरह से सहमत हुँ.
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट....
क्या कहा जाये-जाने क्या प्लानिंग हो इसके पीछे.
ReplyDeleteइसे आप इश्क कहेंगे; इश्क को क्यों बदनाम करते हो भाई।
ReplyDeleteइसे आप इश्क कहेंगे; इश्क को क्यों बदनाम करते हो भाई।
ReplyDeleteaap log kuch bhee kahen..ulema ko door rahana chaiye.
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