मुंबई में आतंकी हमले से देश की जनता में नेताओं के बाद सबसे ज्यादा गुस्सा पाकिस्तान पर है। प्रत्येक आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान पर इल्जाम आयद किये जाते हैं। इसमें दो राय नहीं कि पाकिस्तान आतंकवाद की धुरी बना हुआ है। लेकिन इस बात को भी समझें कि पाकिस्तान को आतंकवाद की धुरी बनाया किसने है ? 1979 में जब रुस ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था तो सबसे ज्यादा परेशानी अमेरिका को हुई थी। अमेरिका ने ही पाकिस्तान में पढ़े और बढ़े तालिबान को अफगानिस्तान मे जेहाद के लिए भेजा था। इस जेहाद की कमान उसी ओसामा-बिन-लादेन के हाथों में थी, जो आज अमेरिका के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द और कमजोर नस है। पाकिस्तान की मदद से ही अमेरिका ने तालिबान को हथियारों से मालामाल किया था। वे ही दिन थे जब, सूडान, नाइजीरिया, इंडोनेशिया और सउदी अरब जैसे मुस्लिम देशों के मुसलमान जेहाद के नाम अफगानिस्तान में रुसी फौज से लड़े थे। इस बीच अफगानी शरणार्थियों की एक बहुत बड़ी तादाद मय आधुनिक हथियारों के पाकिस्तान आ गयी थी। रुस को अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा। रुसी सेना अपने जो हथियार अफगानिस्तान में छोड़ कर भागी थी, उन पर तालिबान का कब्जा हो गया। अमेरिका ने अपना मतलब निकल जाने के बाद खंडहर में तब्दील हो चुके अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ दिया। ओसामा की अमेरिका से यही नाराजगी थी कि उसने तालिबानियों से किये वायदों को फरामोश कर दिया था। एक वक्त वह भी आया, जब तालिबान अमेरिका के लिए ही भस्मासुर बन गए। 9/11 के बाद अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ जंग के नाम पर पहले अफगानिस्तान पर हमला किया और उसके बाद दुनिया की सभी अपीलों और दलीलों को खारिज करके झूठी और मनघढ़ंत सूचनाओं को आधार बनाकर इराक पर हमला किया। ओसामा पकड़ा नहीं जा सका। सद्दाम हुसैन को फांसी दे दी गयी। लेकिन आतंकवाद खत्म नहीं हुआ, बल्कि आतंकवादियों को नए तर्क और बहाने मुहैया हो गए। दुनिया को आतंकवाद की सुनामी में फंसाने वाले जार्ज बुश को शिकस्त मिली। अमेरिका की आतंकवाद के खिलाफ जंग आज भी जारी है। लेकिन आतंकवाद कम होने के बजाय बढ़ता चला गया। इसलिए यह कहा जा सकता है कि केवल किसी देश पर हमला बोल कर आतंकवाद को खत्म नहीं किया जा सकता। यदि ऐसा होता तो अफगानिस्तान और इराक पर हमले के बाद आतंकवाद खत्म होने के बजाय बढ़ता नहीं।
मुंबई पर आतंकी हमले के बाद कुछ लोगों की राय है कि पाकिस्तान में चल रहे आतंकी ट्रेनिंग कैम्पों को भारत नष्ट करे। सवाल यह है कि ÷मंदी के आतंक' के माहौल में क्या पाकिस्तान पर हमला करना आसान है ? वो भी तब, जब पाकिस्तान भी परमाणु बमों से लैस है और हमें यह भी नहीं मालूम कि परमाणु बमों को एक्टिव करने वाले कम्प्यूटर के ÷की-बोर्ड' पर किसकी उंगलियां रखी हैं। पाकिस्तान एक कमजोर देश है। हताशा और निराशा की हालत में वह कुछ भी कर सकता है। 2001 में संसद पर हमले के बाद भी दोनों देशों की फौजें आमने-सामने आ गयी थीं। कहते हैं कि उस समय भी पाकिस्तान ने अमेरिका से यही कहा था कि अपनी सुरक्षा के लिए वह परमाणु ताकत का इस्तेमाल भी कर सकता है। आखिरकार भारतीय फौज को बगैर लड़े ही बारुदी सुरंगें बिछाने और फिर उन्हें हटाने के दौरान अपने आठ सौ जवान गंवाने के बाद वापस बैराकों में वापस बुलाना पड़ा था। उस वक्त उसी दल की सरकार थी, जो आज पाकिस्तान पर हमला करने की सलाह दे रही है। इस बात को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि पाकिस्तान में अमेरिका के सहयोग से आतंकियों की जो खेप तैयार हुई थी, उसकी कमान पाकिस्तान के हुक्मरानों के हाथों से निकल चुकी है। आतंकवाद की लड़ाई मे पाकिस्तान सबसे कमजोर कड़ी बन गया है। वे हथियार जो जेहाद के नाम पर आतंकवादियों के हाथों में पकड़ाये गए थे, उन का रुख अब उन्हीं लोगों की तरफ है, जो उनके पोषक रहे हैं। पाकिस्तान पर हमला आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला कदम हो सकता है। हमें अमेरिका या अन्य किसी देश की तरफ देखने के बजाय अपने देश की सुरक्षा को पुख्ता करने को सबसे ज्यादा तरजीह देनी चाहिए। हमारी सुरक्षा तभी पुख्ता हो सकती है, जब सभी राजनैतिक दल दलगत राजनीति से उठकर एकजुटता का प्रदर्शन करेंगे।
अन्त मे एक बात और। यह बात समझ से परे है कि नेताओं के प्रति गुस्सा दिखाने वाली जनता ने हालिया विधान सभा के चुनावों में अपना गुस्सा वोटिंग से परहेज देकर क्यों नहीं किया ? दिल्ली और राजस्थान विधानसभा के चुनाव तो हमले के फौरन बाद हुऐ हैं। इन दोनों राज्यों में साठ प्रतिशत के लगभग हुआ मतदान इस बात का संकेत हैं कि देश की बहुसंख्यक जनता में लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ही विश्वास है। यदि जनता वाकई नेताओं से उब चुकी होती तो मतदान का प्रतिशत इतना क्यों होता ?
170, मलियाना, मेरठ
09837279840
saleem_iect@yahoo.co.in
सलीम जी,
ReplyDeleteआपका लेख विचारोत्तेजक है. और साथ ही साथ सोचने पर मजबूर करता है कि
(१) क्या सचमुच हमारी जनता राजनेताओं से विमुख हो गई है?
(२) क्या आतंकवाद का हल केवल एक और सरकारी आतंकवादी कार्यवाही है?
आज जब अमेरिकी संप्रभुता को सारे देश स्वीकार कर रहे हैं वहीं आपका इशारा है कि यही समय है कि जब यह भी सोचा जाना चाहिये कि आतंकवाद के बढावे में अमेरिका की भूमिका क्या है.
मेरे अपने मत में मुख्यत: आतंकवादी घटनाओं में संलिप्तता में देखा जाये तो या वो गरीब मुसलमान है जो रोटी/बोटी/कश्मीरी बीवी की जुगत में बंदूक थाम लेता है या वो है जो मुजाहिर होने का दाग धोने के लिये कौम पर कुर्बान होने के लिये तैयार किया जाता है.
कभी मेरे ब्लॉग पर आईये स्वागत है.
मुकेश कुमार तिवारी
पाकिस्तान पर हमला विकल्प नहीं है, सहमत हूं,लेकिन पाकिस्तान पर सलेक्टिव अटैक किया जाना चाहिए, उसके उन इलाकों पर जहां आतंकी पनाह लिए हैं, विशेषकर पाक-अधिकृत कश्मीर के इलाकों पर। खतरे कई हैं, पाकिस्तान इसे अपनी संप्रभुता पर हमला मान कर पूर्ण लड़ाई शुरु कर सकता है लेकिन इस मसले पर हमें अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी का समर्थन मिल सकता है। पाकिस्तान ऐसी हालत में फिर से एटम बम की धमकी देगा, लेकिन दुनियां उसे ऐसा करने नहीं देगी।
ReplyDeleteदिक्कत ये है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र का ठेका भी हमने उठा रखा है। इस डर से कि कहीं हमने कड़ी कार्रवाई की तो वहां सेना सत्ता में आ जाएगी या दाढ़ीवाले कब्जा कर लेंगे-ये उसी मानसिकता को ढ़ोना है जिसका शिकार भारतीय शासक वर्ग पचास के दशक के बाद रहा था और तीसरी दुनियां के देशों का प्रेसर ग्रुप बनाने का स्वप्न देखता था। अतीत में पाकिस्तान के लोकतांत्रिक नेताओं ने भी भारत के खिलाफ काम करने में कोई कसर छोड़ी थी? ये जुल्फिकार अली भुट्टो ही थे जिन्होने हजार साल घास की रोटी खाकर इस्लामिक बम बनाने की बात की थी।
तो फिर चारा क्या है? हम ये उम्मीद करते रहें कि पाकिस्तान में लोकतंत्र मजबूत होगा,आईएसआई, सेना उनके अधीन होगी, फिर हम उनसे बात कर मामला सुलटा लेगें? मैं ये मानता हूं कि युद्ध के अपने खतरे हैं,एटमी युद्ध तक हो सकता है लेकिन पाकिस्तान मुलायम बातों से मानने वाला नहीं। तो फिर हम हर धड़ी इजरायल की तरह युद्ध के लिए तैयार रहें?अपने जीडीपी का 15 फीसदी कमांडो तैयार करवाने में लगाते रहें...हर स्कूल-कॉलेज को सैनिक ट्रेनिंग कैप बना दें..या फिर पाकिस्तान पर हर महीने मिसाईल अटैक करते रहें ये मानकर कि अमेरिका उन्हे एटम बम का इस्तेमाल नहीं करने देगा? समाधान कहीं नहीं दिख रहा सलीम भाई...इस चक्कर में,लंबी प्रक्रिया में पूरी हिंदू जनता का तालीबानी करण हो रहा है इस अपूरणीय क्षति की भरपाई कौन करगा...सदियों लग जाएंगे इस डैमैज को पाटने में....इश्वर करें...ऐसा न हो।
बहुत कम लिखने और बोलने वाले है चाहे वे प्रिट मीडिया में हो या इलैकटोनिक मीडिया मे जो आतकवादं के मसले पर एक अलग नजरिया भी रखते हो। सलीम भाई आपका ये लेख उन्ही में से एक है।
ReplyDelete