Friday, November 28, 2008

शर्म मगर नेताओं को नहीं आती

मुंबई पर आतंकी हमला उन बेशर्म नेताओं के मुंह पर एक करारा तमांचा है, जो आतंकवाद पर भी राजनैतिक रोटियां सेंकने में मशगूल रहे और आतंकियों ने देश पर सबसे बड़ा आतंकी हमला कर दिया। मगर नेताओं को शर्म आती। यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि यहां त्रासदी में भी वोट तलाशे जाते हैं। इसीलिए बगैर किसी जांच और निष्कर्ष से पहले ही बयानबाजी शुरु हो जाती है। देश के इस संकट को भी हमारे राजनैतिक दल भुनाने की फिराक में लग गए हैं। कुछ दल इस हमले को एटीएस द्वारा की जा रही मालेगांव धमाकों की जांच को बाधित करने के रुप में देख रहे हैं तो कुछ राजनैतिक दलों और धार्मिक संगठनों की बांछे यह जानकर खिल गयी हैं कि आतंकी हमले में चिर-परिचित दुश्मन पाकिस्तान का हाथ होने की शंका जतायी जा रही है। आतंकियों को पता है कि भारत में हर चीज को वोटों और धार्मिक की नजर से देखा जाता है, इसलिए उनके लिए भारत ÷सॉफ्ट टारगेट' बन गया है। सवाल यह है कि नित नए आतंकी हमलों के बावजूद भी इतनी लाहपरवाही कैसे हुई कि बहुत ही आसानी से आतंकी देश पर सबसे बड़ा हमला करने में कामयाब हो गए ? हमला भी अति सुरक्षित समझे जाने वाले इलाकों में हुआ। जब देश के अति सुरक्षित समझे जाने वाले इलाके ही आतंकियों की पहुंच में है तो उन इलाकों की बात कौन करे, जिनकी सुर+क्षा रामभरोसे रहती है।
सवाल यह नहीं है कि आतंकी हमला पाकिस्तान की शह पर हमारे ही देश के कुछ लोगों के सहयोग से हुआ अथवा मालेगांव की जांच को बाधित करने के उद्देश्य से हुआ। सवाल यह है कि आतंकवाद पर सभी राजनैतिक दल पूर्वाग्रहों से बचते हुए इस समस्या के समाधान के लिए कब एकजुट होंगे ? सभी राजनैतिक दलों को यह समझ लेना चाहिए कि वोटों की खातिर देश को दांव पर लगा देना भी आतंकी सरीखी हरकत है। यदि नेताओं ने जल्दी ही आतंकवाद पर राजनीति बन्द नहीं की तो वो ये समझ लें कि आतंकवाद की आग उनकी चौखट तक भी आ सकती है। कुछ आरएसएस नेताओं की हत्या की साजिश की खबरों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। सिर्फ पाकिस्तान और मुसलमानों पर ही ध्यान केन्द्रित करने वाली भाजपा और तथाकथित हिन्दू धार्मिक संगठनों को अब चेत जाना चाहिए। क्योंकि अब उनसे भी अधिक ÷हार्ड लाइनर' धार्मिक हिन्दू संगठन अस्तित्व में आ चुके हैं, जो ÷सॉफ्ट हिन्दुत्व' से उकता चुके हैं।
आतंकवाद पर कड़ा कानून बनाने से किसी को परहेज होना नहीं चाहिए। लेकिन मुश्किल फिर वही है कि यहां कड़े कानून बनाने की मांग करने वालों पर ही जब कड़े कानून के तहत कार्यवाई होती है तो वे तिलमिला जाते हैं। मालेगांव विस्फोट के आरोपियों पर मकोका लगाए जाने पर भाजपा की आपत्ति इसका ताजातरीन उदारहण है। यह तो नहीं हो सकता कि किसी एक वर्ग को कड़े कानून से अलग कर दिया जाए और एक वर्ग पर उसका भरपूर इस्तेमाल किया जाए।
आतंकवाद से निपटने के लिए यह बहुत जरुरी है कि इस पर राजनीति बन्द हो। एक कड़ा कानून बने, जिसका इस्तेमाल निष्पक्षता से किया जाए। आतंकवाद को धार्मिक चश्मे से देखना बन्द किया जाए। आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच के लिए संघीय जांच एजेंसी का गठन वक्त की जरुरत है। प्रदेशों की पुलिस द्वारा आतंकवाद के मामलों की जांच करने से समस्या सुलझने के बजाय उलझती ज्यादा है। इस हमले का एक दुखद पहलू एटीएस चीफ हेमंत करकरे का शहीद होना है। उनकी शहादत से ही इस आशंका बल मिल रहा है कि यह आतंकी हमला मालेगांव विस्फोट की जांच को प्रभावित करने के लिए किया गया है। इसमें दो राय नहीं कि हेमन्त करकरे के न रहने से मालेगांव विस्फोट की जांच पर असर पड़ सकता है। देश पर संकट है। यही वक्त है, जब देश की जनता धर्म के खोल से बाहर निकलकर केवल भारतीय होने का सबूत दे। एक ऐसी पहल का आगाज करें, जिसमें आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद सहित सभी मुस्लिम धार्मिक संगठन एक मंच से आतंकवाद का प्रतिकार करके सही अर्थों में देशभक्त होने का सबूत दें।

1 comment:

  1. vineet from dla meerut
    ye us jaati se taalukh rakhe hai jaha samvednai mar chuki hai aur sacchchai har kadam dam todti hai

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