सलीम अख्तर सिद्दीकी
ये तानाशाही नहीं तो और क्या है? मध्य प्रदेश के बड़वाणी जिले के आईएएस अधिकारी और बड़वानी के जिला कलेक्टर अजय सिंह गंगवार ने यह गलती कर दी कि उन्होंने फेसबुक पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तारीफ कर दी। उनका ऐसा करना गजब हो गया। भला बताइए, मोदी युग में जवाहर लाल नेहरू की तारीफ कैसे हो सकती है? इसका खामियाजा गंगवार को उठाना पड़ा। गंगवार को भोपाल में सचिवालय में उप सचिव के तौर पर स्थानांतरित कर दिया गया।
क्या किसी सरकारी अधिकारी को किसी राजनेता की तारीफ करने का हक नहीं है? ये बात अरसे से महसूस की जा रही है कि मोदी सरकार अभिव्यक्ति की आजादी पर किसी भी तरह पाबंदी लगाना चाहती है। गंगवार को सजा देने का मतलब यह है कि अब कोई अधिकारी दूसरे राजनीतिक दलों की तारीफ करने से पहले सौ बार सोचेगा। खासतौर से किसी कांग्रेसी नेता की। यानी पिछले दरवाजे से अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने की तैयारी कर ली गई है। गंगवार ने लिखा था, ‘मुझे उन गलतियों का पता होना चाहिए जो नेहरू को नहीं करनी चाहिए थीं। क्या यह उनकी गलती है कि उन्होंने हमें 1947 में हिंदू तालिबानी राष्ट्र बनने से रोका। क्या आईआईटी, इसरो, बार्क, आईआईएसबी, आईआईएम खोलना उनकी गलती है? क्या यह उनकी गलती है कि उन्होंने आसाराम और रामदेव जैसे बुद्धिजीवियों की जगह होमी जहांगीर का सम्मान किया?’
इस पोस्ट में ऐसा कुछ भी नहीं कि गंगवार को सजा दी जाती। आखिर जवाहर लाल नेहरू ने देश को दूसरा ‘पाकिस्तान’ बनने से रोका है, से कौन गलत ठहरा सकता है। आजादी के फौरन बाद हिंदू महासभा, आरएसएस और कांग्रेस में मौजूद कट्टर हिंदुत्ववादी देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना देखने लगे थे। वे पाकिस्तान का उदाहरण देकर कहते थे कि हम भी भारत को हिंदू स्टेट बनाएंगे। लेकिन नेहरू ने ऐसा नहीं होने दिया। यही वह टीस है, जो संघ परिवार को रह-रह कर सालती है। अब जब देश में एक ऐसे आदमी की सरकार आई है, जो कहता है कि हां मैं एक कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी हूं, तो खतरा तो पैदा हो ही गया है कि देश को एक बार फिर हिंदू राष्ट्र बनाने की ओर धकेला जाए।
ये तानाशाही नहीं तो और क्या है? मध्य प्रदेश के बड़वाणी जिले के आईएएस अधिकारी और बड़वानी के जिला कलेक्टर अजय सिंह गंगवार ने यह गलती कर दी कि उन्होंने फेसबुक पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तारीफ कर दी। उनका ऐसा करना गजब हो गया। भला बताइए, मोदी युग में जवाहर लाल नेहरू की तारीफ कैसे हो सकती है? इसका खामियाजा गंगवार को उठाना पड़ा। गंगवार को भोपाल में सचिवालय में उप सचिव के तौर पर स्थानांतरित कर दिया गया।
क्या किसी सरकारी अधिकारी को किसी राजनेता की तारीफ करने का हक नहीं है? ये बात अरसे से महसूस की जा रही है कि मोदी सरकार अभिव्यक्ति की आजादी पर किसी भी तरह पाबंदी लगाना चाहती है। गंगवार को सजा देने का मतलब यह है कि अब कोई अधिकारी दूसरे राजनीतिक दलों की तारीफ करने से पहले सौ बार सोचेगा। खासतौर से किसी कांग्रेसी नेता की। यानी पिछले दरवाजे से अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने की तैयारी कर ली गई है। गंगवार ने लिखा था, ‘मुझे उन गलतियों का पता होना चाहिए जो नेहरू को नहीं करनी चाहिए थीं। क्या यह उनकी गलती है कि उन्होंने हमें 1947 में हिंदू तालिबानी राष्ट्र बनने से रोका। क्या आईआईटी, इसरो, बार्क, आईआईएसबी, आईआईएम खोलना उनकी गलती है? क्या यह उनकी गलती है कि उन्होंने आसाराम और रामदेव जैसे बुद्धिजीवियों की जगह होमी जहांगीर का सम्मान किया?’
इस पोस्ट में ऐसा कुछ भी नहीं कि गंगवार को सजा दी जाती। आखिर जवाहर लाल नेहरू ने देश को दूसरा ‘पाकिस्तान’ बनने से रोका है, से कौन गलत ठहरा सकता है। आजादी के फौरन बाद हिंदू महासभा, आरएसएस और कांग्रेस में मौजूद कट्टर हिंदुत्ववादी देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना देखने लगे थे। वे पाकिस्तान का उदाहरण देकर कहते थे कि हम भी भारत को हिंदू स्टेट बनाएंगे। लेकिन नेहरू ने ऐसा नहीं होने दिया। यही वह टीस है, जो संघ परिवार को रह-रह कर सालती है। अब जब देश में एक ऐसे आदमी की सरकार आई है, जो कहता है कि हां मैं एक कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी हूं, तो खतरा तो पैदा हो ही गया है कि देश को एक बार फिर हिंदू राष्ट्र बनाने की ओर धकेला जाए।
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