Wednesday, May 11, 2016

केरल की तुलना सोमालिया से करना अज्ञानता की पराकाष्ठा

सलीम अख्तर सिद्दीकी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर अपनी अज्ञानता और अपरिपक्वता का परिचय दिया है। केरल की एक जनसभा में उन्होंने केरल की तुलना सोमालिया से कर डाली। सोमालिया दुनिया का संभवत: सबसे बदहाल देश है। अकाल और आतंकवाद से पीड़ित इस देश में भुखमरी से रोज ही लोग मरते हैं। ये हालात कैसे प्रधानमंत्री को केरल में दिखाई दे गए, समझ से परे है। सोमालिया की बहुसंख्यक आबादी भूख, प्यास और भयंकर सूखे की चपेट में है। गत दो दशकोें में 20 लाख लोग अनाज की कमी से तड़प-तड़प कर मर चुके हैं, जिनमें बच्चों की संख्या 30 हजार बताई जाती है। जबकि ऐसा नहीं है कि सोमालिया में प्राकृतिक संपदा नहीं है। लेकिन पश्चिमी देशों ने साजिशन एक जरखेज देश को सोमालिया को बंजर में तब्दील कर दिया। सोमालिया में तेल, यूरेनियम, गैस एवं सोने की खानें बड़ी मात्रा में मौजूद हैं।  सोमालिया की सीमा से सटे देश इथोपिया की मदद से ब्रिटेन, इटली एवं फ्रांस ने यहां का रुख किया और यहां की संपदा पर कब्जा करने के लिए सबसे पहले कृषि व्यवस्था में परिवर्तन किया। दरअसल, खेती और पशुपालन सोमालिया के लोगों का मूल पेशा था। वे खेतों में केमिकल्स का इस्तेमाल नहीं करते थे। यही कारण था कि अगर कभी बारिश नहीं भी होती थी, तो उनके खेतों में इतना अनाज पैदा हो जाता था कि उनका गुजर-बसर हो सके। इन तीनों देशों ने सबसे पहले उनके इसी मूल संसाधन पर घात लगाई और ऐसी कृषि व्यवस्था तय की कि जमीनें एक विशेष केमिकल की आदी हो गर्इं और फिर धीरे-धीरे उनमें विशेष प्रकार के अनाज पैदा करने की क्षमता ही शेष रह गई। यूनिसेफ के सर्वे के अनुसार, 68 प्रतिशत जमीन बंजर होने की प्रबल आशंका है। जब जमीन से हर प्रकार का अनाज पैदा होने की क्षमता खत्म हो गई, तो पश्चिमी देशों ने यहां खेतों में पैदा होने वाला अनाज कम दामों पर खरीद कर वैश्विक मंडियों में महंगे दामों में बेचने की ठेकेदारी भी ले ली। दूसरी ओर यहां बरसों तक बारिश नहीं हुई। नतीजतन, भीषण सूखा पड़ा और पैदावार लगभग खत्म हो गई। कुछ हिस्सों में घरेलू आमदनी केवल इतनी रह गई थी कि पीने का पानी हासिल किया जा सके। इस प्रकार सोमालिया समेत अफ्रीका के कई देश धीरे-धीरे गरीबी के दलदल में फंसते चले गए। गरीबी की मार थी ही, पश्चिम के ठेकेदार अपनी साम्राज्यवादी नीतियों पर सख्ती से अमल कर रहे थे। अंजाम यह हुआ कि पूरा सोमालिया गृहयुद्ध के दलदल में फंसता चला गया।
इनपुट ‘चौथी दुनिया’ से साभार

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