Wednesday, February 19, 2014

आतंकवाद पर दोगलापन


सलीम अख्तर सिद्दीकीयह इसी देश में संभव हो सकता है कि एक पूर्व प्रधानमंत्री के कातिलों की पहले फांसी की सजा माफ की जाए और उसके बाद उन्हें रिहा भी कर दिया जाए। एक तरफ यह ऐसा हो रहा है, तो दूसरी ओर अफजल गुरु को फांसी दिए जाने का शोर हर ओर से उठता है और आखिरकार उसके घर वालों के बताए बगैर उसे फांसी पर लटका दिया जाता है। हद यह कि उसकी लाश भी उसके परिजनों को नहीं दी जाती। आखिर आतंकवाद पर यह दोगलापन क्यों है? उस भाजपा का तो कहना ही क्या, जिसको सुकून तभी आया, जब अफजल को फांसी दे दी गई। भाजपा का दोगलापन देखिए कि वह राजीव गांधी के कातिलों को माफ किए जाने पर ऐसे चुप्पी साधे है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। यही भाजपा किसी मुसलिम का आतंकवाद में लिप्त होने का नाम आने भर से उसे सरेआम फांसी पर लटका देने की मांग करने लगती है। लेकिन मालेगांव, मक्का मसजिद और समझौता एक्सप्रेस में बम धमाके करके सैकड़ों लोगों की जान लेने वाली साध्वी प्रज्ञा, प्रकाश पुरोहित और असीमानंद जैसे आतंकवादी उसे संत लगते हैं। कैसी विडंबना है कि बहुत सारे मुसलिम नौजवान उस जुर्म की सजा भुगत रहे हैं, जो उन्होंने किया ही नहीं।  आखिर आतंकवाद पर कब तक दोगलापन किया जाता रहेगा?

3 comments:

  1. दोगले लोग और जहरीली राजनीति!!!

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  2. कल 21/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  3. सब राजनीति के लिए हो रहा है। सारा दोगलापन राजनीति के लिए ही हो रहा है वो के लिए हो रहा है। राहुल ने कहा जब एक प्रधानमंत्री को न्याय नहीं मिल रहा। हम पूछते हैं क्यों नहीं मिल रहा जब दस साल से आपकी सरकार है और हत्यारे फांसी की सजा पाकर जेल में बंद हैं। क्या आप दोषी नहीं हो।
    हम तो आम आदमी की तरह सोचते हैं जिसके पास कोई पावर नहीं फिर भी अपने पिता के हमलावरों को छोड़ नहीं सकता।
    न्याय मांगने से थोड़े मिलेगा, फिर आप तो शक्तिशाली हो। छीन लो। ऐसे हत्यारों को तो कानून हाथ में लेकर भी मार देना पड़े तो गैरकानूनी नहीं। जिसने देश पर देश की अस्मिता पर हमला किया हो उसकी हत्या करने के लिए सोचना क्या।

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