तेलंगाना मुद्दे पर लोकसभा में हुई बहस को देखने सुनने का जनता को पूरा अधिकार था। ये भारतीय लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि जिस उद्देश्य से लोकसभा का चैनल शुरू किया गया था, उसका एक अहम दिन भारतीय जनता ने गंवा दिया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि चैनल पर लोकसभा की कार्यवाही के प्रसारण को जानबूझकर बंद किया गया होगा। हालांकि सरकार ने स्पष्टीकरण दिया है कि तकनीकी कारणों से ऐसा हुआ है। मान लीजिए कि यह सहमति बन गई थी कि इस प्रसारण से आंध्र प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति खराब होती तो फिर इसके लिए स्पष्टीकरण की जरूरत नहीं थी। हालांकि आंध्र में आप जो देख रहे हैं, उससे खराब स्थिति और क्या हो सकती थी। राज्य के मुख्यमंत्री इस्तीफा दे चुके हैं और एक बड़े इलाके में विरोध और बंद हो रहे हैं। इससे एक और बात साबित होती है कि अभी देश के व्यवस्थापकों में लोकतंत्र की पारदर्शिता की समझ बहुत पिछड़े स्तर की है। वो समझदार नहीं हैं। मुझे नहीं लगता कि प्रमुख विपक्षी दल भाजपा इस मामले से अनभिज्ञ होगी। भाजपा से तो बहुत अच्छे तरीके से बात की गई होगी। इससे पहले भी संसद में अहम मसलों पर यूपीए का भाजपा के साथ सहयोग रहा है। तेलंगाना के मुद्दे पर भी भाजपा को विश्वास में लिया गया था, भले ही पार्टी राजनीतिक कारणों से कुछ भी कहे। तेलंगाना का मुद्दा राजनीतिक कारणों से ही लटका हुआ है अन्यथा इसे तो 1956 में ही बन जाना चाहिए था।
बीबीसी में प्रमोद जोशी
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