सलीम अख्तर सिद्दीकी
शहर में तीन दिन से लगे कर्फ्यू के बाद सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक के लिए उसमें ढील दी गई थी। हालात पर नजर रखते हुए लोग आहिस्ता-आहिस्ता घरों से निकलने लगे। मैं भी अपने एक पत्रकार मित्र के साथ कोतवाली में एसएसपी की प्रेस वार्ता में शामिल होने के लिए जा रहा था। 12 बजते-बजते सड़कों पर ट्रैफिक भरपूर हो गया था। अभी हम आधे रास्ते में ही थे कि अचानक माहौल बदल गया। डरे हुए लोग भागने लगे। थोड़ी देर में ही भगदड़ की स्थिति बन गई। कई लोगों को रोककर पूछा, क्यों भाग रहे हो? जवाब किसी के पास नहीं था। देखते ही देखते शहर सुनसान नजर आने लगा। हम जैसे-तैसे कोतवाली तक पहुंचे। वहां का नजारा भी अजीब था। पूरी कोतवाली लोगों से भरी हुई थी। सबके चेहरों पर दहशत तारी थी। एक सिपाही से पूछा, ‘इन्हें किस जुर्म में गिरफ्तार किया गया है?’ सिपाही मेरे पत्रकार मित्र को जानता था। उसने मेरे ऊपर एक गहरी नजर डाली और हथेली पर खैनी रगड़ते हुआ बोला, ‘कर्फ्यू तोड़ने के जर्मु में।’ हम आगे बढ़े। कोतवाल के सामने लोगों की लाइन लगी हुई थी। कर्फ्यू तोड़ने के जुर्म में लोगों के चालान किए जा रहे थे। अब जिस शख्स की बारी थी, वह कोई 60 साल का बुजुर्ग था। एक एसआई ने कड़ककर उसका नाम पूछा। उसने नाम बताया। एसआई ने फिर सवाल किया, ‘क्या है तुम्हारे पास?’ बुजुर्ग ने लरजते हुए जवाब दिया, ‘मेरे पास ‘कट्टा’ है जनाब।’ यह सुनकर सभी की नजरें बुजुर्ग की ओर उठीं। बुजुर्ग ने माजरा समझकर सफाई पेश की, ‘हुजूर यह आटे का कट्टा है। घर में आटा नहीं था, उसे ही लेने निकला था, इतने में भगदड़ मच गई और पुलिस जीप ने मुझे रोककर जीप में डाल दिया।’ बुजुर्ग सफाई पेश कर रहा था। लेकिन लग नहीं रहा था एसआई उसकी सफाई पर ध्यान दे रहा था। वह तत्परता से उसका चालान काट रहा था। एसआई ने एक सिपाही को इशारा किया। उसने बुजुर्ग को उस भीड़ में ले जाकर बैठा दिया, जिनके चालान काट दिए गए थे और जेल भेजा जाना था। तभी एसएसपी ने कोतवाली में प्रवेश किया और ऐलान किया कि कुछ नहीं हुआ है। दो सांडों के लड़ने की वजह से भगदड़ मची थी।
शहर में तीन दिन से लगे कर्फ्यू के बाद सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक के लिए उसमें ढील दी गई थी। हालात पर नजर रखते हुए लोग आहिस्ता-आहिस्ता घरों से निकलने लगे। मैं भी अपने एक पत्रकार मित्र के साथ कोतवाली में एसएसपी की प्रेस वार्ता में शामिल होने के लिए जा रहा था। 12 बजते-बजते सड़कों पर ट्रैफिक भरपूर हो गया था। अभी हम आधे रास्ते में ही थे कि अचानक माहौल बदल गया। डरे हुए लोग भागने लगे। थोड़ी देर में ही भगदड़ की स्थिति बन गई। कई लोगों को रोककर पूछा, क्यों भाग रहे हो? जवाब किसी के पास नहीं था। देखते ही देखते शहर सुनसान नजर आने लगा। हम जैसे-तैसे कोतवाली तक पहुंचे। वहां का नजारा भी अजीब था। पूरी कोतवाली लोगों से भरी हुई थी। सबके चेहरों पर दहशत तारी थी। एक सिपाही से पूछा, ‘इन्हें किस जुर्म में गिरफ्तार किया गया है?’ सिपाही मेरे पत्रकार मित्र को जानता था। उसने मेरे ऊपर एक गहरी नजर डाली और हथेली पर खैनी रगड़ते हुआ बोला, ‘कर्फ्यू तोड़ने के जर्मु में।’ हम आगे बढ़े। कोतवाल के सामने लोगों की लाइन लगी हुई थी। कर्फ्यू तोड़ने के जुर्म में लोगों के चालान किए जा रहे थे। अब जिस शख्स की बारी थी, वह कोई 60 साल का बुजुर्ग था। एक एसआई ने कड़ककर उसका नाम पूछा। उसने नाम बताया। एसआई ने फिर सवाल किया, ‘क्या है तुम्हारे पास?’ बुजुर्ग ने लरजते हुए जवाब दिया, ‘मेरे पास ‘कट्टा’ है जनाब।’ यह सुनकर सभी की नजरें बुजुर्ग की ओर उठीं। बुजुर्ग ने माजरा समझकर सफाई पेश की, ‘हुजूर यह आटे का कट्टा है। घर में आटा नहीं था, उसे ही लेने निकला था, इतने में भगदड़ मच गई और पुलिस जीप ने मुझे रोककर जीप में डाल दिया।’ बुजुर्ग सफाई पेश कर रहा था। लेकिन लग नहीं रहा था एसआई उसकी सफाई पर ध्यान दे रहा था। वह तत्परता से उसका चालान काट रहा था। एसआई ने एक सिपाही को इशारा किया। उसने बुजुर्ग को उस भीड़ में ले जाकर बैठा दिया, जिनके चालान काट दिए गए थे और जेल भेजा जाना था। तभी एसएसपी ने कोतवाली में प्रवेश किया और ऐलान किया कि कुछ नहीं हुआ है। दो सांडों के लड़ने की वजह से भगदड़ मची थी।
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