सलीम अख्तर सिद्दीकी
वह भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहा डे-नाइट क्रिकेट मैच था। पाकिस्तान बैटिंग कर रहा था। मैच बेहद रोमांचक हो चला था। आखिरी ओवर चल रहा था और पाकिस्तान को जीतने के लिए अंतिम ओवर में 16 रन बनाने थे। सांसें अटकी हुई थीं। मैदान पर तनाव पसरा था, लेकिन उससे ज्यादा तनाव मैच देखने वालों के चेहरे पर नजर आ रहा था। ऐसा लगता था, जैसे पूरा शहर ही मैच देखने में व्यस्त हो गया था। शहर में ट्रैफिक कम हो गया था। पान और चाय वालों की दुकानों में लगे टीवी सैट के सामने लोगों की भीड़ जमा थी। घरों के ओर जाते लोग भीड़ लगी देखकर उसका हिस्सा बनते जा रहे थे। वाकया ऐसी ही एक पान की दुकान का है। अंतिम ओवर की पहली गेंद खाली गई, तो लोगों ने गहरी सांस ली। दूसरी गेंद पर चौका लगा, तो भीड़ में सन्नाटा पसर गया। अब 4 गेंदों पर 12 रन बनाने थे। तीसरी गेंद पर खिलाड़ियों ने दो रन बनाए। लक्ष्य लक्ष्य तीन गेंदों पर 10 रन का रह गया था। चौथी गेंद पर खिलाड़ी ने तगड़ा शॉट लगाया। गेंद आसमान में छूती हुई दर्शकों के बीच जा गिरी। सन्नाटा और गहरा हो गया। उस सन्नाटे को तोड़ती हुई एक आवाज उभरी, ‘ओ बेटे क्या छक्का मारा है।’ फौरन ही कई चेहरे आवाज की दिशा में घूम गए और उसे घूरकर देखने लगे। वह कोई 12-13 का एक लड़का था, जिसकी वह आवाज थी। उसके कपड़ों पर लगे काले तेल के धब्बे बता रहे थे कि वह आॅटोमोबाइल का काम सीखने वाला बच्चा था। उसके हाथ में खाने का टिफिन था। लड़के ने जब कुछ लोगों को अपनी ओर घूरते देखा तो वह सहम गया। शायद उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसने एक बढ़िया शॉट की तारीफ करके क्या गलती कर दी। अभी वह सोच ही रहा था कि एक लगभग 25-26 साल के लड़के ने उससे कड़ककर पूछा, ‘क्या नाम है बे तेरा?’ लड़के ने सहम कर जवाब दिया, ‘पप्पू’। नाम पूछने वाले के चेहरे पर सवालिया निशान उभरा। उसने फिर कहा, ‘यह तो तेरा प्यार का नाम होगा, असली नाम बता?’ लड़के ने जवाब दिया, ‘सुरेश’। सवालकर्ता को उसकी पहचान पर फिर भी शक रहा। उसने फिर पूछा, ‘कहां रहता है तू?’ लड़के ने मोहल्ले का नाम बताया। सवाल करने वाले को अभी भी उसकी पहचान पर शक हो रहा था। लड़का समझ गया था कि उससे इतने सवाल क्यों किए जा रहे हैं? अब उसने प्रति प्रश्न किया, ‘आप इससे क्या लेते हो, मेरा नाम क्या है और कहां रहता हूं। मैं समझ रहा हूं कि तुम्हारा मकसद क्या है? पाकिस्तानी खिलाड़ियों की तारीफ करने वालों को आप वही क्यों समझते हैं, जो मुझे समझ रहे हैं?’ सवालकर्ता ने खामोश होकर अपना ध्यान टीवी पर लगा दिया था। पाकिस्तान लक्ष्य पूरा करने में नाकामयाब रहा था। सड़कों पर फिर से ट्रैफिक बढ़ गया था।
बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति @मोहन भागवत जी-अब और बंटवारा नहीं .
ReplyDeleteइन पूर्वाग्रहों से हम सभी को बाहर आना होगा .
ReplyDeleteहौसला अफजाई के लिए शुक्रिया शालिनी और शिखा जी।
ReplyDeleteप्रभावी !!!
ReplyDeleteजारी रहें,
शुभकामना !!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज)
सच को उकेरती रचना
ReplyDeleteऐसे अनुभव तो अक्सर होते ही हैं, चाहे आप कितना ही अपनी टीम को सपोर्ट करो, तब भी।
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