सलीम अख्तर सिद्दीकी
मैं एक मध्यमर्गीय परिवार के एक लड़के की शादी में शरीक था। रात के लगभग नौ बजे थे, जब मैं विवाह मंडप में पहुंचा था। कुछ देर पहले ही बाराती नाचते-गाते शादी हॉल तक पहुंचे थे। उनकी धमाचौकड़ी से सड़क पर जाम लग गया था। मैंने किसी परिचित की तलाश में नजरें इधर-उधर दौड़ाईं, लेकिन निराशा हाथ लगी। कुछ देर बाद मैंने उधर का रुख किया, जहां खाने का इंतजाम था। खाने वाली जगह पर बला की भीड़ थी। जगह कम और आदमी ज्यादा थे। मैंने प्लेट उठाई और लगभग जंग-सी लड़ते हुए उसमें अपने लिए वह डाला, जो आसानी से मिल सकता था। मैं अपनी प्लेट उठाए कुछ खुली जगह में आ गया। मैं खाते हुए आसपास का जायजा ले रहा था। कुछ लोगों ने अपनी प्लेट में इतना कुछ डाला हुआ था, जिसे देखकर नहीं लगता था कि वह इसको खा पाएंगे। मुझे यह भी मालूम था कि जब उनसे खाया नहीं जाएगा, तो वे उसका क्या करेंगे। कई लोगों ने मेरे सामने ही किया भी ऐसे ही। इसी बीच मेरी नजर एक 10-12 साल के लड़के पर पड़ी, जिसकी बॉडी लैंग्वेज से लग रहा था कि वह बिन बुलाया मेहमान है। उसने अपनी प्लेट में अच्छा-खासा खाना डाला हुआ था और बहुत तेजी के साथ खा रहा था। मेरे पास एक किशोरवय लड़का और आदमी आकर खड़े हुए। लड़के ने खाना खा रहे लड़के की तरफ इशारा किया और आदमी तेजी के साथ उसकी ओर बढ़ा। लड़का खाने में व्यस्त था। उसकी तंद्रा तब टूटी, जब आदमी का थप्पड़ उसे पड़ा। उसने अचकचा कर आदमी की तरफ देखा। खाते-खाते उसका मुंह चलना बंद हो गया। लग रहा था, जैसे सोच रहा हो कि मुंह में भरा खाना गले की नीचे उतारे या उसे उगल दे। यह सब देखते हुए कुछ लोग उनके करीब पहुंच चुके थे। आदमी ने लड़के के हाथ से प्लेट छीनने के लिए हाथ बढ़ाया तो एक आदमी ने उसका हाथ रोकते हुए कहा, भाई साहब, अब तो इसे खाने दीजिए, वैसे भी खाना बेकार हो जाएगा। आदमी ने तल्खी से जवाब दिया, आप नहीं जानते, यह चौथा है, जिसे मैंने खाना खाते हुए पकड़ा है। लड़का रुआंसा हो गया था। आदमी ने प्लेट उसके हाथ से छीनकर पास में रखे डस्टबिन में डाल दी थी। मैंने डस्टबिन पर नजर डाली, उसमें इतना खाना पड़ा हुआ था, जिसे कम से कम बीस आदमी खा सकते थे। वहां रखे सभी डस्टबिन की यही हालत थी। उनमें बुलाए गए मेहमानों ने खाना डाला था, बिन बुलाए मेहमानों ने नहीं।
saleem_iect@yahoo.co.in
09045582472
मैं एक मध्यमर्गीय परिवार के एक लड़के की शादी में शरीक था। रात के लगभग नौ बजे थे, जब मैं विवाह मंडप में पहुंचा था। कुछ देर पहले ही बाराती नाचते-गाते शादी हॉल तक पहुंचे थे। उनकी धमाचौकड़ी से सड़क पर जाम लग गया था। मैंने किसी परिचित की तलाश में नजरें इधर-उधर दौड़ाईं, लेकिन निराशा हाथ लगी। कुछ देर बाद मैंने उधर का रुख किया, जहां खाने का इंतजाम था। खाने वाली जगह पर बला की भीड़ थी। जगह कम और आदमी ज्यादा थे। मैंने प्लेट उठाई और लगभग जंग-सी लड़ते हुए उसमें अपने लिए वह डाला, जो आसानी से मिल सकता था। मैं अपनी प्लेट उठाए कुछ खुली जगह में आ गया। मैं खाते हुए आसपास का जायजा ले रहा था। कुछ लोगों ने अपनी प्लेट में इतना कुछ डाला हुआ था, जिसे देखकर नहीं लगता था कि वह इसको खा पाएंगे। मुझे यह भी मालूम था कि जब उनसे खाया नहीं जाएगा, तो वे उसका क्या करेंगे। कई लोगों ने मेरे सामने ही किया भी ऐसे ही। इसी बीच मेरी नजर एक 10-12 साल के लड़के पर पड़ी, जिसकी बॉडी लैंग्वेज से लग रहा था कि वह बिन बुलाया मेहमान है। उसने अपनी प्लेट में अच्छा-खासा खाना डाला हुआ था और बहुत तेजी के साथ खा रहा था। मेरे पास एक किशोरवय लड़का और आदमी आकर खड़े हुए। लड़के ने खाना खा रहे लड़के की तरफ इशारा किया और आदमी तेजी के साथ उसकी ओर बढ़ा। लड़का खाने में व्यस्त था। उसकी तंद्रा तब टूटी, जब आदमी का थप्पड़ उसे पड़ा। उसने अचकचा कर आदमी की तरफ देखा। खाते-खाते उसका मुंह चलना बंद हो गया। लग रहा था, जैसे सोच रहा हो कि मुंह में भरा खाना गले की नीचे उतारे या उसे उगल दे। यह सब देखते हुए कुछ लोग उनके करीब पहुंच चुके थे। आदमी ने लड़के के हाथ से प्लेट छीनने के लिए हाथ बढ़ाया तो एक आदमी ने उसका हाथ रोकते हुए कहा, भाई साहब, अब तो इसे खाने दीजिए, वैसे भी खाना बेकार हो जाएगा। आदमी ने तल्खी से जवाब दिया, आप नहीं जानते, यह चौथा है, जिसे मैंने खाना खाते हुए पकड़ा है। लड़का रुआंसा हो गया था। आदमी ने प्लेट उसके हाथ से छीनकर पास में रखे डस्टबिन में डाल दी थी। मैंने डस्टबिन पर नजर डाली, उसमें इतना खाना पड़ा हुआ था, जिसे कम से कम बीस आदमी खा सकते थे। वहां रखे सभी डस्टबिन की यही हालत थी। उनमें बुलाए गए मेहमानों ने खाना डाला था, बिन बुलाए मेहमानों ने नहीं।
saleem_iect@yahoo.co.in
09045582472
सुन्दर बात
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ReplyDeleteउपभोक्ता वादी संस्कृती के चलते आज हमारे शादी ब्याह एक शो ऑफ कि चीज बन कर रेह गये है ...
लंबे लंबे खाने के मेनु, हर शादी मे चार-पांच फन्क्शन , हर फंक्शन के लिये अलग अलग कपडो कि तैयारीया,,,,,,बस येही सब होता ही आजकल शादी या किसी सुभअवसर मे भोज के मौको पर..
बात ये नाही ही कि पार्टी करने वाला उन गरीब बच्चो को खिला नही सकता ,,,,,बात ये ही कि वो अपनी तमाम मेहनत कि कमाई ओर कभी कभी तो उधार लेकर ये सब बे-जरुरती इंतेजामात करके समाज मे अपने दंभ को भी दर्शाता है ,,,,,,,,,,,,,,,,,कि ,,देखो मेरे पास भी अच्छा खासा पैसा है ,,,,,,,,,,,,लेकीन कही अंतर्मन मे वो इस दिखावे को फिजूलखर्ची ओर अपना नुकसान भी मानता है .........ओर अंततः ये कुंठा बाहर निकलती है उन बिन बुलाये मेहमानो पर.........या फिर इन दिखावो के बोझ ढोने के कारण घरेलू तनाव ओर बाद मे पत्नी ओर बच्चो के साथ कलह मे.
बहरहाल ,,,,,,,बहुत हि मार्मिक लिखा है आपने....सोचने को मजबूर करता है .
मै भी कभी कभी लिखता हू........कभी पधारीये,,,आपकी आलोचना का इंतेजार रहेगा ....
शुक्रिया .
Vishvnath
http://vishvnathdobhal.blogspot.in/2012/11/blog-post_9154.html