सलीम अख्तर सिद्दीकी
वे तीन दिन पहले फिर आए थे। पिछले कुछ सालों से मुसलसल आ रहे हैं। उनका हमेशा यही इसरार होता है कि मैं उनके साथ धार्मिक प्रचार के लिए कुछ दिनों के लिए दूसरे शहर में चलूं। लेकिन मैंने इसके लिए अपने को कभी इस काबिल नहीं माना कि मैं ऐसा भी कर सकता हूं। वे मेरी इस बात को नहीं समझते। मुझे भी उनकी बहुत बातें समझ में नहीं आतीं। कभी मुझे ऐसा भी नहीं लगा कि उनमें ऐसी कोई बात है, जिससे मुतास्सिर होकर उनकी बात मान लूं। उनमें वह बातें मौजूद थीं, जिसे मेरा धर्म सख्ती से मना करता है। इतना जरूर है कि वे धर्म के इबादत हिस्से वाले को शिद्दत से मानते थे। धर्म के दूसरे हिस्सों के लिए उनकी कोई अहमियत नहीं थी। मैं धर्म के उन हिस्सों पर जोर देता रहा हूं, जो इंसानियत के लिए हैं। शायद मेरे और उनके बीच यही एक दीवार थी। इस बार उनका इसरार कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था। मैंने उन्हें टालने के लिए आज का दिन दे दिया था। सुबह के वक्त मैं अपनी बैठक में बैठा अखबारों को देख रहा था। पड़ोसी देश की एक खबर पर मेरी बार-बार नजर जा रही थी। जेहन बार-बार यही सोच रहा था कि मेरे धर्म के मानने वाले लोग कैसे एक 14 साल की बच्ची को इसलिए गोली मार सकते हैं, क्योंकि वह अपने मुल्क में लड़कियों की तालीम की अलख जगा रही है। सितमजरीफी यह कि मेरे धर्म के नाम पर ऐसा किया गया था। मेरा धर्म तो हर हाल में तालीम की हिमायत करता है। दिल को सुकून देने वाली बात यह भी लगी कि पड़ोसी मुल्क की अवाम जख्मी लड़की के हक में आगे आ गई थी। इबादतगाहों में उसकी जिंदगी के लिए दुआएं की जा रही थीं, लेकिन कट्टरपंथी अब भी कह रहे हैं कि अगर लड़की जिंदा बच गई, तो फिर मारेंगे। बहरहाल, यह सब पढ़ ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवाजा खोला तो वही लोग थे। दुआ सलाम हुई। मैं अंदर चाय के लिए कहने चला गया। वापस आया, तो उनमें से एक साहब उसी खबर को पढ़ रहे थे। यह देखकर मैंने कहा, ष्ठ€ट्टबताइए कितनी गलत हरकत की है, इस बच्ची की गलती क्या है?ष्ठ€ट्ठ उन साहब ने मेरी बात को अनसुनी-सी करते हुए कहा, अरे! यह सब तो चलता ही रहता है। यह हमारा काम नहीं है। आप बताइए आपकी क्या तैयारी है।मैंने उनसे आॅफिस से छुट्टी न मिलने की बात कही। हकीकत में ऐसा था भी। एक साहब ने कहा, देखिए, जब हम इस काम में निकलते हैं, तो सब खुद ही सही हो जाता है। सब ऊपर वाले पर छोड़ देना चाहिए अभी मैं कोई दूसरा बहाना बनाने की सोच ही रहा था कि उन साहब की फोन की घंटी बज उठी, जो मुझे सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ देने की सलाह दे रहे थे। फोन की बातचीत से लग रहा था कि कुछ गड़बड़ है। बाद में पता चला कि जिस ट्रक से उन्होंने बिना टैक्स का अपना माल बाहर भेजा था, वह चेकपोस्ट पर पकड़ा गया था। उन्होंने धार्मिक प्रचार पर जाना तीन दिन के लिए मुल्तवी कर दिया था।
अरे मेरा कमेन्ट कहाँ गया???
ReplyDeleteकठमुल्लावाद और कट्टरपंथ हमारी सबसे बड़ी समस्याए हे सर जी में तो यहाँ तक भी महसूस कर रहा हूँ की इन्ही कठ्मुल्लाओ ( कुछ बिना दाढ़ी वाले पढ़े लिखे भी )और कट्टर पन्तियो के कारण ही दंगे पंगे ब्लास्ट विभाजन की तो खेर बात छोडिये ही वो तो अलग मुद्दे हे ये सब तो कभी कभार की बात हे आम जन जीवन की बात करे तो सर ये भी देखिये जो में साफ़ साफ देख रहा हूँ की हम मुस्लिमो के घर घर में कलेश बढ़ता जा रहा हे क्यों ? आज खुशनसीब ही होगा वो मुस्लिम परिवार जो आज की तारीख में भाई भाई के झगड़े सास बहु ननद के झगड़े पडोसी पडोसी के झगड़े जायदाद के झगड़े यानि कम से कम एक पंगे का सामना नहीं कर रहा हे इसके अलवा आपसी पन्थो के झगड़े और गेर मुस्लिमो से पंगे तो हे ही - इसके अलवा हमारे बहुत से पढ़े लिखे लोग मुस्लिम महफ़िलो में किस कदर मुर्खता और जहालत की बाते करते हे आप और में जानते ही हे जिन साहब की आप बात कर रहे हे ऐसे लोग को में भी बचपन से देखता आया हूँ इस्लाम के किसी समाजवादी मूल्यों से इनका दूर का भी रिश्ता नहीं होता सिर्फ इस बात पर ही इनका अधिक जोर रहता हे की इस्लाम के सामने बाकि सब मज़हब बेकार हे नतीजा जबरदस्त असहिष्णुता के रूप में ही सामने आता हे जो गेर मुस्लिमो से भी ज्यादा हमारा अपना नुकसान कर रही हे
ReplyDeleteये देखिये सलीम सर ये हमारे घर घर की बात होती जा रही हे ऐसा नहीं हे की ये सब गेर मुस्लिमो में नहीं होता जरुर होता होगा लेकिन हमारे यहाँ क्या इस परकार की घटनाय क्या कुछ ज्यादा ही नहीं हो रही हे ?दूसरी बात हम जो रात दिन गेर मुस्लिमो पर बेहतर होने का दावा करते हे उसका क्या ? ये देखिये नवभारत ब्लॉग पर आपके शहर मेरठ की ही खबर
ReplyDeleteऊंचा सद्दीक नगर निवासी 70 वर्षीय कसीरन को सोमवार को हार्ट अटैक के बाद साकेत स्थित एक हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। उनकी गंभीर हालत को देखते हुए क्रिटिकल केयर यूनिट (सीसीयू) में इलाज किया जा रहा था। अस्पताल के कर्मचारियों के अनुसार कसीरन की हालत गंभीर होने के बावजूद उनके बेटे प्रॉपर्टी विवाद में उलझे हुए थे। कसीरन के नाम ऊंचा सद्दीक नगर में एक मकान है। जिसकी मौजूदा कीमत करीब 18 लाख है। कसीरन के बेटे साबू और इस्लामुद्दीन का आरोप है कि उनके भाई साजिद, निजामुद्दीन, शमसुद्दीन व हकीमुद्दीन पहले से ही उनकी मां के मकान पर कब्जा करना चाहते थे। मां की प्रॉपर्टी के लिए हॉस्पिटल में भिड़े बेटे, चले लात-घूंसे ---'' मुझे ये लग रहा हे की ये सब घटनाओ की बाढ़ हमारे यहाँ 2 कारणों से आ रही हे एक तो कट्टर पन्तियो और कठ्मुल्लाओ दुआरा फेलाई गयी असहिष्णुता और दूसरो की बात बिलकुल ही न सुनने की जिद और दुसरे की इसी कारण हमारे यहाँ उदारवादी नरम मोहज्ज़ब बड़े लोगो की हो रही कुछ कमी जो हर जगह आग पर पानी डालते हो नतीजा सामने हे ना हमारी आपस में ही बन पा रही हे न ही गेर मुस्लिमो से ये बहुत खतरनाक बात हे