सलीम अख्तर सिद्दीकी
मेरठ-बागपत सीमा पर वाहन चेकिंग सख्ती से जारी है। बिल्कुल पास ही ढाबा, चारपाई पर चाय की चुस्कियों के बीच देखा एक मोटर साइकिल आकर रुकी। चालक युवक ने दो सिगरेट लीं और मुझसे थोड़े फासले पर पड़ी एक अन्य चारपाई पर बैठ गए। एक सिगरेट साथी की ओर बढ़ाई। उसने सिगरेट लेते हुए सवालिया नजरों से कहा, यहां क्यों रुक गया? देख नहीं रहा कितनी सख्त चेकिंग है? तो क्या हुआ मेरे पास लाइसेंस है, मैं चलाता हूं। कागज मोटर साइकिल में होंगे, हेलमेट भी है। उसने बेबसी से कहा, ˜कागज ही तो नहीं हैं। साथी युवक ने सलाह दी, इंतजार कर लेते हैं, चेकिंग भी कब तक चलेगी? आगे भी तो चेकिंग मिल सकती है, अभी 60 किलोमीटर आगे और जाना है। साथी ने लापरवाही से कहा, अरे यार कोई आगे मिलेगा, तो 100-50 रुपये ही तो लेगा पुलिस वाला, दे देंगे। चल खड़ा हो। दूसरा बोला, बात 100-50 की नहीं है, इतना कहकर उसने आसपास नजर डाली। इस बीच मैं चाय पीकर कमर सीधी करने के लिए चारपाई पर लेट चुका था। मैंने आंखें बंद कर रखी थीं, शायद उन्हें लगा मैं सो रहा हूं। मेरे तवज्जो उनकी ओर ही थी। उसने फुसफसाहट भरे अंदाज में कहा, आवाज कानों तक पहुंच ही गई। ˜दरअसल, यह मोटर साइकिल चोरी की है। साथी युवक की हैरत भरी सिसकारी उभरी, क्या कह रहा है तू। ˜बात यह है कि किसी पर मेरे 20 हजार रुपये थे। एक साल से टरका रहा था। एक हफ्ते पहले उसके पास तकादे के लिए गया था, तो उसने कहा कि अभी पैसे नहीं हैं, जब तक पैसे नहीं दे देता, तुम मोटर साइकिल ले जाओ। मुझे बात जंच गई और मैं मोटर साइकिल ले आया। कल ही पता चला है कि यह चोरी की है। इसे वापस देने जाना है। मैं उठकर बैठ गया था। मैंने देखा साथी युवक के चेहरे पर चिंता थी। दूसरा इधर-उधर नजरें दौड़ा रहा था। उसकी नजर एक पेंटर की दुकान पर पड़ी। साथी से कहा, चल हो गया काम। साथी हजार सवाल चेहरे पर लिए चल दिया। दोनों मोटर साइकिल लेकर पेंटर की दुकान पर पहुंचे। पेंटर से कुछ बातचीत हुई। पेंटर काम में जुट गया। मोटर साइकिल की हेडलाइट के ऊपर लगे कवर पर कुछ लिखने लगा था। काम होने के बाद उन्होंने पेंटर को कुछ रुपये दिए। मोटर साइकिल का रुख मेरी तरफ हुआ, तो उस पर अंग्रेजी में बड़े-बड़े अक्षरों में प्रेस लिखा नजर आया। मैं टहलता हुआ वहां जा पहुंचा, जहां चेकिंग चल रही थी। फासला मुश्किल से 200 गज का था। चंद लम्हों में वे दोनों भी वहां पहुंच गए। एक सिपाही ने इशारा किया, लेकिन ˜प्रेस लिखा देखकर वह दूसरे वाहन रोकने लगा। मोटर साइकिल चेकिंग कर रहे दारोगा के पास जाकर रुकी और चालक युवक बोला, कैसे हैं सर? यहां कब पोस्टिंग हुई? दरोगा ने उसे पहचानने की कोशिश करते हुए जवाब दिया, ठीक हूं, दो महीने हो गए हैं। इधर कहां जा रहे हैं? वह बेफिक्री से बोला, जरा बागपत तक जाना है, वापसी में थाने में मिलता हूं। इतना कहकर उसने मोटर साइकिल आगे बढ़ा दी। वह मेरे करीब से गुजरे, तो आवाज आई, देखा बीस रुपये का कमाल।
मेरठ-बागपत सीमा पर वाहन चेकिंग सख्ती से जारी है। बिल्कुल पास ही ढाबा, चारपाई पर चाय की चुस्कियों के बीच देखा एक मोटर साइकिल आकर रुकी। चालक युवक ने दो सिगरेट लीं और मुझसे थोड़े फासले पर पड़ी एक अन्य चारपाई पर बैठ गए। एक सिगरेट साथी की ओर बढ़ाई। उसने सिगरेट लेते हुए सवालिया नजरों से कहा, यहां क्यों रुक गया? देख नहीं रहा कितनी सख्त चेकिंग है? तो क्या हुआ मेरे पास लाइसेंस है, मैं चलाता हूं। कागज मोटर साइकिल में होंगे, हेलमेट भी है। उसने बेबसी से कहा, ˜कागज ही तो नहीं हैं। साथी युवक ने सलाह दी, इंतजार कर लेते हैं, चेकिंग भी कब तक चलेगी? आगे भी तो चेकिंग मिल सकती है, अभी 60 किलोमीटर आगे और जाना है। साथी ने लापरवाही से कहा, अरे यार कोई आगे मिलेगा, तो 100-50 रुपये ही तो लेगा पुलिस वाला, दे देंगे। चल खड़ा हो। दूसरा बोला, बात 100-50 की नहीं है, इतना कहकर उसने आसपास नजर डाली। इस बीच मैं चाय पीकर कमर सीधी करने के लिए चारपाई पर लेट चुका था। मैंने आंखें बंद कर रखी थीं, शायद उन्हें लगा मैं सो रहा हूं। मेरे तवज्जो उनकी ओर ही थी। उसने फुसफसाहट भरे अंदाज में कहा, आवाज कानों तक पहुंच ही गई। ˜दरअसल, यह मोटर साइकिल चोरी की है। साथी युवक की हैरत भरी सिसकारी उभरी, क्या कह रहा है तू। ˜बात यह है कि किसी पर मेरे 20 हजार रुपये थे। एक साल से टरका रहा था। एक हफ्ते पहले उसके पास तकादे के लिए गया था, तो उसने कहा कि अभी पैसे नहीं हैं, जब तक पैसे नहीं दे देता, तुम मोटर साइकिल ले जाओ। मुझे बात जंच गई और मैं मोटर साइकिल ले आया। कल ही पता चला है कि यह चोरी की है। इसे वापस देने जाना है। मैं उठकर बैठ गया था। मैंने देखा साथी युवक के चेहरे पर चिंता थी। दूसरा इधर-उधर नजरें दौड़ा रहा था। उसकी नजर एक पेंटर की दुकान पर पड़ी। साथी से कहा, चल हो गया काम। साथी हजार सवाल चेहरे पर लिए चल दिया। दोनों मोटर साइकिल लेकर पेंटर की दुकान पर पहुंचे। पेंटर से कुछ बातचीत हुई। पेंटर काम में जुट गया। मोटर साइकिल की हेडलाइट के ऊपर लगे कवर पर कुछ लिखने लगा था। काम होने के बाद उन्होंने पेंटर को कुछ रुपये दिए। मोटर साइकिल का रुख मेरी तरफ हुआ, तो उस पर अंग्रेजी में बड़े-बड़े अक्षरों में प्रेस लिखा नजर आया। मैं टहलता हुआ वहां जा पहुंचा, जहां चेकिंग चल रही थी। फासला मुश्किल से 200 गज का था। चंद लम्हों में वे दोनों भी वहां पहुंच गए। एक सिपाही ने इशारा किया, लेकिन ˜प्रेस लिखा देखकर वह दूसरे वाहन रोकने लगा। मोटर साइकिल चेकिंग कर रहे दारोगा के पास जाकर रुकी और चालक युवक बोला, कैसे हैं सर? यहां कब पोस्टिंग हुई? दरोगा ने उसे पहचानने की कोशिश करते हुए जवाब दिया, ठीक हूं, दो महीने हो गए हैं। इधर कहां जा रहे हैं? वह बेफिक्री से बोला, जरा बागपत तक जाना है, वापसी में थाने में मिलता हूं। इतना कहकर उसने मोटर साइकिल आगे बढ़ा दी। वह मेरे करीब से गुजरे, तो आवाज आई, देखा बीस रुपये का कमाल।
इस देश में बीस,पचास,सौ रूपये देकर इससे बड़ा कमाल भी किया जा सकता है|
ReplyDeleteट्रक में कुछ भी भरकर ले जाईये, साइड में बैठे क्लीनर के हाथ में पचास के नोटों की एक गड्डी दे दीजिये ताकि वह हर चौराहे पर जैसे ही कोई पुलिस वाला रुकने का इशारा करे उसके पास ट्रक धीमा होते ही एक पचास का नोट दे दे फिर कोई नहीं रोकेगा ट्रक को|
भले ही उसमे कुछ भी भरा हो!! आरडीएक्स भी क्यों ना हो !!
यह लधुकथा जहां एक ओर प्रेस लिखे वाहनों के दुरुपयोग का सटीक चित्रण करती है वहीं दूसरी ओर पुलिस की लापरवाही को भी दर्शाती है । ऐसे लोगों के कारण ही कई बार पत्रकारों को भी चैकिंग से गुजरना पड़ता है । ऐसे लोगों के कारण ही अब प्रत्येंक प्रेस लिखे वाहन को संदेह ही नजर से देखा जाने लगा है -रोहित कौशिक
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