Tuesday, July 17, 2012

लड़कियों के लिए क्यों तंग कर दीगई है जमीन?

सलीम अख्तर सिददीकी 
जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था, तब एक वीडियो फुटेज बार-बार दिखाया जाता था, जिसमें तालिबान कुछ महिलाओं को उनके ‘कथित’ जुर्म की सजा सरेआम छड़ी से पीटकर दे रहे थे। तालिबान की उस हरकत की जबरदस्त आलोचना की गई थी। गुवाहटी के जो वीडियो फुटेज हैं, वे उन फुटेज के सामने ज्यादा अमानवीय हैं। इसकी वजह यह है कि तालिबानी निरंकुश शासक थे। उनका विरोध नामुमकिन न सही, मुश्किल जरूर था। हम उन्हें लगभग असभ्य की श्रेणी में रखते थे। आज भी रखते हैं। हम लोकतांत्रिक और सभ्य देश होने का दावा करते हैं। यहां आम नागरिक भी किसी पर ज्यादती होने पर हस्तक्षेप का हक रखता है। गुवाहटी में एक मासूम लड़की पर हो रही ज्यादती रोकने में किसी नागरिक ने अपने इस हक का इस्तेमाल नहीं किया। वह भी तब, जब लड़की के साथ ज्यादती करने वाले ‘तालिबानी’ नहीं थे। तालिबानी तो वे लोग बन गए थे, जो एक लड़की का ‘चीरहरण’ होता देखकर चुप रहे।
कुछ साल पहले नए साल के अवसर पर बंगलूरू के एक पब में घुसकर कुछ लड़कियों को इसलिए पीटा गया था, क्योंकि एक धार्मिक संगठन की नजर में वे भारतीय संस्कृति को कलंकित कर रही थीं। हालांकि वह खुद लड़कियों को सरेआम पीटकर भारतीय संस्कृति के मुंह पर तमाचा मार रहे थे। उनसे तब भी सवाल किया गया था कि महिलाओं को पीटना कौन-सी भारतीय संस्कृति है? इसी बीती 31 दिसंबर को जब पूरा देश नए साल का जश्न मना रहा था, तो गुड़गांव की एक पॉश कही जाने वाली जगह पर एक लड़की के साथ 20 से ज्यादा लोगों ने इसी तरह की वहशियाना हरकत की थी, जैसी गुवाहाटी में की गई है। तब भी उस लड़की को बचाने में समाज सामने नहीं आया था। दिल्ली में कारों में गैंग रेप की घटनाएं लगातार हो रही हैं। गुवाहाटी की घटना पिछली घटनाओं का ‘एक्शन रिप्ले’ भर है। एक मासूम लड़की को भीड़ के सामने 15-20 लड़के नोंचते-खसोटते हैं। भीड़ तमाशा देखती रहती है। वह मदद के लिए चिल्लाती है, लेकिन कोई हाथ मदद के लिए नहीं बढ़ता। किसी को भी उस पर दया नहीं आती। शर्मनाक यह भी कि लड़की ने मीडिया से भी मदद की गुहार लगाई, लेकिन वह उसे बेइज्जत होते शूट तो करता रहा, लेकिन ‘ड्यूटी’ पर होने की वजह से कुछ करने में ‘असमर्थ’ था। मीडिया को भी तय करना पड़ेगा कि उसकी जिम्मेदारी में किसी मरते आदमी को बचाना प्राथमिकता है या उसे मरते हुए कैमरे में कैद करना?
किसी के सामने वहिशयाना हरकत होती रहे और वह खड़ा तमाशा देखता रहे यह असंवेदनशील होने की इंतहा है। क्या वाकई समाज कायर हो गया है? आखिर ऐसी घटनाओं के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठती? लड़की के साथ जिस तरह की हरकत हुई है, उससे लड़की की दिमागी हालत का अंदाजा ही लगाया जा सकता है। क्या वह अपनी जिंदगी सामान्य तरह से जी पाएगी? क्या समाज ने एक लड़की को जीते-जी नहीं मार दिया है? क्या वह किसी पुरुष पर भरोसा कर पाएगी? लड़कियों का घर से निकलना क्यों गुनाह हो गया है? क्या वे किसी पार्टी में नहीं जा सकतीं? इस घटना ने अंतहीन सवाल पैदा किए हैं, जिनका जवाब समाज को देना है।
समाजशास्त्रियों के लिए यह रिसर्च का विषय है कि आखिर इस तरह के मामले उन बड़े शहरों में ही क्यों हो रहे हैं, जो कथित रूप से प्रगतिशील और सभ्य होने का दंभ भरते हैं?  दरअसल, समाज की यह तटस्थता घरों में दी जाती रही उस तालीम का नतीजा है, जिसमें बार-बार पढ़ाया जाता है कि किसी के पचड़े में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है, अपने काम से काम रखा करो। कुछ तालीम का असर, कुछ खुदगर्जी और कुछ पुलिस के रवैये ने ऐसा माहौल बना दिया है कि यदि कोई किसी के लिए मदद के लिए आगे आना भी चाहे, तो वह बहुत बातें सोचकर बढ़ते कदमों को पीछे खींच लेता है। पीछे खींचे गए कदम आतताइयों के हौसले बुलंद करती है, जिसका नतीजा गुवाहाटी जैसी घटनाओं के रूप में सामने आता है। इस मामले में अभी कम से कम छोटे शहरों और कस्बों का समाज इतना खुदगर्ज नहीं हुआ है कि वह किसी लड़की को सरेआम बेइज्जत होता देखता रहे। और यही वह समाज है, जिस पर बड़े शहरों के प्रगतिशील लोग औरतों को प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हैं। 
समाज में ऐसा वातावरण बना दिया गया है कि जो लड़कियां जींस-टीशर्ट में पबों में जाती हैं, वे यकीनी तौर पर भोगने वाली वस्तु हैं। इस घटना के बाद सवाल लड़की पर भी उठाए जाएंगे। मसलन, वह रात को पब में क्या कर रही थी, वह भी इतनी छोटी उम्र की लड़की? यह भी कहा जाएगा कि आजकल की लड़कियां भी कम नहीं हैं। सवाल उसकी डेÑस पर भी उठाए जाएंगे। कुछ उसके चरित्र पर भी उंगली उठा देंगे। सारा दोष लड़की पर ही मढ़ देने वाले भी कम नहीं होंगे। इन सबके बावजूद बड़ा सवाल यह है कि लड़की की गलती हो भी, तो क्या किसी को उसे सरेआम नोंचे-खसोटे जाने का लाइसेंस मिल जाता है? पाबंदियां सिर्फ लड़कियों के लिए ही क्यों हैं? लड़की प्रेम विवाह करे, तो उसे मौत मिलती है। कभी सुनने में नहीं आया कि किसी परिवार ने अपने ‘लाडले’ को मौत की नींद इसलिए सुलाया कि उसने प्रेम विवाह क्यों किया है?
घटना पर असम के पुलिस महानिदेशक जयंत नारायण चौधरी ने जो कहा है, वह भी बेशर्मी की पराकाष्ठा है। वह फरमाते हैं कि  'पुलिस एटीएम मशीन नहीं होती, जिसमें कार्ड की तरह घटना का ब्योरा डाला जाए और मुजरिम हाथ आ जाए।' लखनऊ में एक दारोगा थाने में एक महिला से बलात्कार करने की कोशिश करता है। जब पुलिस ही महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बनाएगी, तो वही होगा, जो बागपत के एक गांव असारा की एक पंचायत में हुआ है। वहां पंचायत ने 40 साल से कम उम्र की महिलाओं पर अकेले बाजार आदि में जाने पर पाबंदी आयद करने का फरमान जारी किया है। इस फरमान की आलोचना हो रही है, होनी भी चाहिए। लेकिन जब पुलिस ही महिलाओं के साथ हुए उत्पीड़न पर उदासीनता बरते, तो समाज के वे लोग मजबूत होंगे ही, जो महिलाओं को परदे में रखने की कवायद करते हैं।
जब लड़कियों को सताया जाएगा, तो कन्या भ्रूण हत्याओं में इजाफा होगा। यह भी अकारण नहीं है कि जब भी लावारिस नवजात शिशु पड़ा पाया जाता है, तो वह शिशु लड़की ही होता है। देखा जाए, तो लड़कियों को दुनिया में आने जसे रोका ही इसलिए जाता है, क्योंकि उनके साथ ‘इज्जत’ नत्थी कर दी गई है। यही वजह है कि उनके लिए ड्रेस कोड निर्धारित किए जाते हैं। उनकी हर गतिविधि पर नजर रखी जाती है। सोच बनती जा रही है कि लड़कियां अपनी तरफ से भले ही कोई गलत कदम न उठाएं, लेकिन उनके साथ कहीं भी कुछ हो सकता है, इसलिए लड़की न होना ही अच्छा है। गुवाहाटी जैसी घटनाओं के बाद यह सोच और ज्यादा पुख्ता होगी।
(लेखक जनवाणी से जुड़े हैं)

3 comments:

  1. सार्थक और जरुरी पोस्ट आँखें खोलने में सक्षम आभार

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  2. बेहतरीन लेखन के लिए आभार!

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  3. सही लिखा सलीम भाई । लड़कियों के प्रति दोहरी मानसिकता को हम अभी तक नहीं मिटा पाएं हैं ।
    रोहित कौशिक

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