सलीम अख्तर सिद्दीकी
शीर्ष सरकारी पदों पर रहे लोगों की किताब जब भी आती है, उस पर विवाद न हो, ऐसा कम ही हुआ है। पद पर रहते कुछ बातें सार्वजनिक करना देशहित में नहीं होता। पद से हटने के बाद दिल को कचोटती वे बातें जब किताबों या लेख आदि के जरिये बाहर आती हैं, तो उनकी चर्चा होती है। किसी काल का ऐसा सच भी सामने आता है, जिसकी किसी को भनक भी नहीं होती।
टर्निंग पॉइंट्स: अ जर्नी थ्रू चैलेंजेस
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में आम धारणा है कि वह शांतचित्त और विवादों से दूर रहने वाले शख्स हैं। पिछले सप्ताह ही उनकी किताब 'टर्निंग पॉइंट्स: अ जर्नी थ्रू चैलेंजेस' आई, तो कई वे बातें सामने आर्इं, जिससे कलाम कुछ लोगों की नजर में वह ‘पाखंडी’ बन गए, तो कुछ लोग ऐसी सच्चाई से रूबरू हुए, जिसे कलाम खुद नहीं कहते, तो कभी सामने नहीं आती।
कलाम का सच
यह नहीं सोचा गया था कि अब्दुल कलाम की कोई किताब आएगी और उस पर विवाद हो जाएगा। अब तक माना जाता था कि 2004 में सोनिया गांधी इसलिए प्रधानमंत्री नहीं बन पार्इं थीं, क्योंकि अब्दुल कलाम को उनके विदेशी मूल के होेने पर ऐतराज था। लेकिन उनकी किताब कहती है कि यदि सोनिया अपना दावा पेश करतीं, तो कलाम को उन्हें शपथ दिलाने में कोई आपत्ति नहीं थी। अब्दुल कलाम के व्यक्तित्व को देखते हुए उनकी विश्वसनीयता पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। यदि 2004 में राष्ट्रपति रहते हुए इस मुद्दे पर उन्होंने कुछ नहीं कहा था, तो इसका मतलब नहीं है कि वह झूठ बोल रहे हैं।
सिर्फ इतना ही नहीं, भाजपा के सबसे पसंदीदा राष्ट्रपति रहे अब्दुल कलाम ने भाजपा को यह कहकर असहज कर दिया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कलाम को सलाह दी थी कि वह दंगों के बाद गुजरात न जाएं। कलाम ने वाजपेयी की सलाह को नजरअंदाज करते हुए गुजरात का दौरा किया। हालांकि कलाम की यह सदाशयता ही रही कि उन्होंने गुजरात दंगों पर न तो उस समय और न ही किताब पर ऐसी कोई प्रतिक्रिया दी, जिससे विवाद होता। यहां तक कि नरेंद्र मोदी की आलोचना भी कभी नहीं र्ष सरकारी पदों पर रहे लोगों की किताब जब्दी की आलोचना भी कभी नहीं की।
यह बात गले से नहीं उतरती कि देश का गृहमंत्री विमान अपहरण जैसे बड़े मामले की छोटी सी छोटी बात से अनजान हो। जब पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी की किताब ‘माई कंट्री माई लाइफ’ आई, तो उसमें उन्होंने लिखा कि कंधार विमान अपहरण मामले में वह विदेश मंत्री के कंधार जाने के फैसले से अनजान थे। पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज ने यह कहकर विवाद की आग और भड़का दी थी कि फैसले की बैठक में आडवाणी मौजूद थे। आडवाणी ने 1998 में भाजपानीत की सरकार के बनने और फिर एक साल बाद उस सरकार के गिरने की प्रक्रिया में दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन पर भी सवाल खड़े किए थे। आडवाणी का कहना था कि सरकार बनाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी को न्यौता देने में केआर नारायणन के दस दिन का विलंब किया था। आडवाणी के अनुसार त्रिशंकु संसद की सूरत में सिर्फ उस व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करने की बात कही थी, जो राष्ट्रपति को सहयोगी दलों की ओर से प्रस्तुत समर्थनपत्रों के माध्यम से राष्ट्रपति को बहुमत हासिल करने की अपनी क्षमता के प्रति आश्वस्त करने में सफल हो। इस पर आडवाणी ने नारायण की यह कहकर आलोचना की थी कि दो पूर्व राष्ट्रपतियों आर वेंकटरमन और शंकर दयाल शर्मा ने बिना समर्थन के आशवस्त हुए सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था, जिसका अनुसरण नारायण ने नहीं किया था। पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन ने भी अपनी किताब में गुजरात दंगों का जिक्र करके तत्कालीन केंद्रीय राजग सरकार और गुजरात सरकार को असहज कर दिया था।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत अर्जुन सिंह की आत्मकथा अभी बाजार में नहीं आई है, लेकिन विवाद शुरू हो गया है। अपनी आत्मकथा 'ए ग्रेन आॅफ सैंड इन दि आवरग्लास आॅफ टाइम' में उन्होंने जो कुछ लिखा है, उससे विवादों का पिटारा खुलना ही था। उनका कहना है कि तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री पीवी नरसिम्हाराव ने भोपाल गैस कांड के आरोपी वारेन एंडरसन को छुड़वाने में अहम भूमिका निभाई थी। इस मामले में वह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को क्लीन चिट देते हैं। वह एक और धमाका करते हैं कि 1987 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह राजीव गांधी को हटाकर उन्हें यानी अर्जुन सिंह को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे। किताब में यह भी दावा किया गया है कि नरसिम्हाराव नहीं चाहते थे सोनिया गांधी कांगे्रस की अध्यक्ष बनें। अर्जुन सिंह की किताब में बाबरी मसजिद विध्वंस का जिक्र न होता, यह संभव नहीं था। अयोध्या मामले पर अर्जुन सिंह कहते हैं कि नरसिम्हाराव आरएसएस प्रमुख बाला साहेब देवरस से सीधे संपर्क में थे, इसका मैंने विरोध किया था। 4 दिसंबर, 1992 की बैठक में मैंने उन्हें बता दिया था कि किसी भी दिन अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया जाएगा। अर्जुन सिंह कहते हैं कि 6 दिसंबर 1992 को राव ने अपने स्टॉफ से यह कहकर एक कमरे में बंद कर लिया था कि उन्हें परेशान न किया जाए। खास बात यह है कि किताब के लेखक अर्जुन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव में से कोई भी जीवित नहीं है।
जिनाह का जिन
भाजपा के नेता जसवंत सिंह एक नहीं, दो बार किताबों की वजह से विवाद में घिरे। 2006 में उनकी एक किताब आई थी, 'ए काल टू आॅनर..इन सर्विस आॅफ इमजेट इंडिया'। इस किताब में उन्होंने लिखा था कि पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में एक ऐसा शख्स था, जो अमेरिका को सूचनाएं देता था। इस पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें उस शख्स की पहचान बताने का चैलेंज दिया था। हालांकि जसवंत ने अपनी बात के पक्ष में जो तथ्य दिया था, वह बहुत ही लचर था। उन्होंने बिना हस्ताक्षर वाले एक पत्र का हवाला देते हुए कहा था कि उस पत्र से पैदा हुए शक के आधार पर ऐसा लिखा था।
2009 में जसवंत सिंह की एक और किताब आई थी, 'जिन्ना, इंडिया, पार्टीशन, इंडिपेंडेंस'। इसमें उन्होंने भारत में लगभग खलनायक का दर्जा रखने वाले पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिनाह की जमकर तारीफ की थी। भाजपा के नेता और जिनाह की तारीफ, ये दोनों अलग-अलग बातें हैं। जिनाह की ही तारीफ की होती थी, तो फिर भी गनीमत थी। उन्होंने भारत विभाजन का असली जिम्मेदार जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल को बताया था। उन्हें 19 अगस्त 2009 को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था। हालांकि एक साल से भी कम समय में 24 जून 2010 को उनकी भाजपा में वापसी हो गई थी। मजे की बात यह है कि जसंवत सिंह, अर्जुन सिंह ओर कुलदीप नैयर की किताबों में पीवी नरसिम्हाराव निशाने पर रहे ।
शीर्ष सरकारी पदों पर रहे लोगों की किताब जब भी आती है, उस पर विवाद न हो, ऐसा कम ही हुआ है। पद पर रहते कुछ बातें सार्वजनिक करना देशहित में नहीं होता। पद से हटने के बाद दिल को कचोटती वे बातें जब किताबों या लेख आदि के जरिये बाहर आती हैं, तो उनकी चर्चा होती है। किसी काल का ऐसा सच भी सामने आता है, जिसकी किसी को भनक भी नहीं होती।
टर्निंग पॉइंट्स: अ जर्नी थ्रू चैलेंजेस
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में आम धारणा है कि वह शांतचित्त और विवादों से दूर रहने वाले शख्स हैं। पिछले सप्ताह ही उनकी किताब 'टर्निंग पॉइंट्स: अ जर्नी थ्रू चैलेंजेस' आई, तो कई वे बातें सामने आर्इं, जिससे कलाम कुछ लोगों की नजर में वह ‘पाखंडी’ बन गए, तो कुछ लोग ऐसी सच्चाई से रूबरू हुए, जिसे कलाम खुद नहीं कहते, तो कभी सामने नहीं आती।
कलाम का सच
यह नहीं सोचा गया था कि अब्दुल कलाम की कोई किताब आएगी और उस पर विवाद हो जाएगा। अब तक माना जाता था कि 2004 में सोनिया गांधी इसलिए प्रधानमंत्री नहीं बन पार्इं थीं, क्योंकि अब्दुल कलाम को उनके विदेशी मूल के होेने पर ऐतराज था। लेकिन उनकी किताब कहती है कि यदि सोनिया अपना दावा पेश करतीं, तो कलाम को उन्हें शपथ दिलाने में कोई आपत्ति नहीं थी। अब्दुल कलाम के व्यक्तित्व को देखते हुए उनकी विश्वसनीयता पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। यदि 2004 में राष्ट्रपति रहते हुए इस मुद्दे पर उन्होंने कुछ नहीं कहा था, तो इसका मतलब नहीं है कि वह झूठ बोल रहे हैं।
सिर्फ इतना ही नहीं, भाजपा के सबसे पसंदीदा राष्ट्रपति रहे अब्दुल कलाम ने भाजपा को यह कहकर असहज कर दिया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कलाम को सलाह दी थी कि वह दंगों के बाद गुजरात न जाएं। कलाम ने वाजपेयी की सलाह को नजरअंदाज करते हुए गुजरात का दौरा किया। हालांकि कलाम की यह सदाशयता ही रही कि उन्होंने गुजरात दंगों पर न तो उस समय और न ही किताब पर ऐसी कोई प्रतिक्रिया दी, जिससे विवाद होता। यहां तक कि नरेंद्र मोदी की आलोचना भी कभी नहीं र्ष सरकारी पदों पर रहे लोगों की किताब जब्दी की आलोचना भी कभी नहीं की।
यह बात गले से नहीं उतरती कि देश का गृहमंत्री विमान अपहरण जैसे बड़े मामले की छोटी सी छोटी बात से अनजान हो। जब पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी की किताब ‘माई कंट्री माई लाइफ’ आई, तो उसमें उन्होंने लिखा कि कंधार विमान अपहरण मामले में वह विदेश मंत्री के कंधार जाने के फैसले से अनजान थे। पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज ने यह कहकर विवाद की आग और भड़का दी थी कि फैसले की बैठक में आडवाणी मौजूद थे। आडवाणी ने 1998 में भाजपानीत की सरकार के बनने और फिर एक साल बाद उस सरकार के गिरने की प्रक्रिया में दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन पर भी सवाल खड़े किए थे। आडवाणी का कहना था कि सरकार बनाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी को न्यौता देने में केआर नारायणन के दस दिन का विलंब किया था। आडवाणी के अनुसार त्रिशंकु संसद की सूरत में सिर्फ उस व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करने की बात कही थी, जो राष्ट्रपति को सहयोगी दलों की ओर से प्रस्तुत समर्थनपत्रों के माध्यम से राष्ट्रपति को बहुमत हासिल करने की अपनी क्षमता के प्रति आश्वस्त करने में सफल हो। इस पर आडवाणी ने नारायण की यह कहकर आलोचना की थी कि दो पूर्व राष्ट्रपतियों आर वेंकटरमन और शंकर दयाल शर्मा ने बिना समर्थन के आशवस्त हुए सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था, जिसका अनुसरण नारायण ने नहीं किया था। पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन ने भी अपनी किताब में गुजरात दंगों का जिक्र करके तत्कालीन केंद्रीय राजग सरकार और गुजरात सरकार को असहज कर दिया था।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत अर्जुन सिंह की आत्मकथा अभी बाजार में नहीं आई है, लेकिन विवाद शुरू हो गया है। अपनी आत्मकथा 'ए ग्रेन आॅफ सैंड इन दि आवरग्लास आॅफ टाइम' में उन्होंने जो कुछ लिखा है, उससे विवादों का पिटारा खुलना ही था। उनका कहना है कि तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री पीवी नरसिम्हाराव ने भोपाल गैस कांड के आरोपी वारेन एंडरसन को छुड़वाने में अहम भूमिका निभाई थी। इस मामले में वह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को क्लीन चिट देते हैं। वह एक और धमाका करते हैं कि 1987 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह राजीव गांधी को हटाकर उन्हें यानी अर्जुन सिंह को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे। किताब में यह भी दावा किया गया है कि नरसिम्हाराव नहीं चाहते थे सोनिया गांधी कांगे्रस की अध्यक्ष बनें। अर्जुन सिंह की किताब में बाबरी मसजिद विध्वंस का जिक्र न होता, यह संभव नहीं था। अयोध्या मामले पर अर्जुन सिंह कहते हैं कि नरसिम्हाराव आरएसएस प्रमुख बाला साहेब देवरस से सीधे संपर्क में थे, इसका मैंने विरोध किया था। 4 दिसंबर, 1992 की बैठक में मैंने उन्हें बता दिया था कि किसी भी दिन अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया जाएगा। अर्जुन सिंह कहते हैं कि 6 दिसंबर 1992 को राव ने अपने स्टॉफ से यह कहकर एक कमरे में बंद कर लिया था कि उन्हें परेशान न किया जाए। खास बात यह है कि किताब के लेखक अर्जुन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव में से कोई भी जीवित नहीं है।
जिनाह का जिन
भाजपा के नेता जसवंत सिंह एक नहीं, दो बार किताबों की वजह से विवाद में घिरे। 2006 में उनकी एक किताब आई थी, 'ए काल टू आॅनर..इन सर्विस आॅफ इमजेट इंडिया'। इस किताब में उन्होंने लिखा था कि पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में एक ऐसा शख्स था, जो अमेरिका को सूचनाएं देता था। इस पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें उस शख्स की पहचान बताने का चैलेंज दिया था। हालांकि जसवंत ने अपनी बात के पक्ष में जो तथ्य दिया था, वह बहुत ही लचर था। उन्होंने बिना हस्ताक्षर वाले एक पत्र का हवाला देते हुए कहा था कि उस पत्र से पैदा हुए शक के आधार पर ऐसा लिखा था।
2009 में जसवंत सिंह की एक और किताब आई थी, 'जिन्ना, इंडिया, पार्टीशन, इंडिपेंडेंस'। इसमें उन्होंने भारत में लगभग खलनायक का दर्जा रखने वाले पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिनाह की जमकर तारीफ की थी। भाजपा के नेता और जिनाह की तारीफ, ये दोनों अलग-अलग बातें हैं। जिनाह की ही तारीफ की होती थी, तो फिर भी गनीमत थी। उन्होंने भारत विभाजन का असली जिम्मेदार जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल को बताया था। उन्हें 19 अगस्त 2009 को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था। हालांकि एक साल से भी कम समय में 24 जून 2010 को उनकी भाजपा में वापसी हो गई थी। मजे की बात यह है कि जसंवत सिंह, अर्जुन सिंह ओर कुलदीप नैयर की किताबों में पीवी नरसिम्हाराव निशाने पर रहे ।
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